पोषक तत्वों से भरा खेकसा हो रहा विलुप्त, सोनभद्र के आदिवासी क्षेत्रों में कभी थी बहुतायत उपज

सोनभद्र में आदिवासियों का पौष्टिक व पोषक तत्वों से भरा खेकसा विलुप्त होता जा रहा है। दक्षिणांचल के जंगलों में पू्र्व में बहुतायत में मिलने वाला खेकसा की खेती को बढ़ावा देने का जिम्मा बागवानी विशेषज्ञ उपजिलाधिकारी दुद्धी रमेश कुमार ने उठा लिया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 08:00 AM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 08:00 AM (IST)
पोषक तत्वों से भरा खेकसा हो रहा विलुप्त, सोनभद्र के आदिवासी क्षेत्रों में कभी थी बहुतायत उपज
सोनभद्र में आदिवासियों का पौष्टिक व पोषक तत्वों से भरा खेकसा विलुप्त होता जा रहा है।

सोनभद्र, जेएनएन। सोनभद्र में आदिवासियों का पौष्टिक व पोषक तत्वों से भरा खेकसा विलुप्त होता जा रहा है। दक्षिणांचल के जंगलों में पू्र्व में बहुतायत में मिलने वाला खेकसा की खेती को बढ़ावा देने का जिम्मा बागवानी विशेषज्ञ उपजिलाधिकारी दुद्धी रमेश कुमार ने उठा लिया है। उन्होंने अपने बंगले में इसकी खेती की है और अब किसानों को खेकसा की खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। खेकसा को ककोड़ा या वन करेला भी कहा जाता है।

उपजिलाधिकारी दुद्धी की प्रेरणा से मनबसा गांव के किसान अशोक सिंह ने उसकी खेती की है। उन्होंने बताया कि उनके पिता खेकसा की खेती करते थे लेकिन धीरे-धीरे यह विलुप्त हो गया। एसडीएम ने बनाया कि वनवासी सेवा आश्रम म्योरपुर में इस पौधे के संरक्षण और प्रवर्धन के बारे में सुभ्रा बहन से चर्चा की गई है। बताया कि खेकसा का पौधा छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के जंगलों में बहुतायत पाया जाता है। इसके ऊपर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में शोध हुआ है और वहां से इसकी कई प्रजाति निकाली गई है। किसानों को वहां से इसके बीज उपलब्ध कराकर के पौधे तैयार कराएं जाएंगे। साथ ही साथ किसान जंगल से भी प्लांटिंग मटेरियल प्राप्त करके अपने खेतों में लगा सकते हैं। ध्यान रखना होगा कि फूल आने के दौरान नर व मादा पौधे की पहचान करना जरूरी है। नर और मादा फूल अलग-अलग पौधे पर आते हैं। इसका रोपण 1:9 के अनुपात में नर और मादा का पौधा लगाया जाता है। जिससे कि ज्यादा से ज्यादा फलन हो। खेत में नर की संख्या ज्यादा होगी तो अच्छी पैदावार नहीं होगी।

सब्जी के रूप में करते हैं इस्तेमाल

रेणुकूट, दुद्धी और कोन में लगने वाले बाजार कहीं न कहीं खेकसा दिख ही जाएगा। इसके फल का इस्तेमाल सब्जी के रूप में किया जाता है। आदिवासी इसके फल का भोजन के रूप में इस्तेमाल जुलाई से अक्टूबर के मध्य करते हैं। बाजार में यह 100 से 150 रुपये प्रति किलो बिकता है।

प्रोटिन, वसा, फाइबर से भरपूर खेकसा

जिला कृषि अधिकारी पियूष राय ने बताया कि प्रति सौ ग्राम खेकसा में 17 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है, जो अंडे से भी ज्यादा है। इसके अलावा इसमें फाइबर अधिक होता है। इसकी भुजिया बनाकर लोग खाना बहुत पसंद करते हैं। इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों में स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने की क्षमता होती है।

खेकसा के औषधीय गुण

- अंक व मधुमेह के लिए फायदेमंद

- गर्भवती महिलाओं के लिए बेहतर

- कैंसर की बीमारी रोकने में कारगर

- खांसी, बवासीर व बुखार को करे दूर

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