Health Tips : दांतों की सड़न से सिर्फ चेहरा नहीं, पाचन-पोषण व मानसिक समस्या भी संभव

पूरे विश्व में लगभग 50-60 फीसद बच्चे दांतों में कीड़ा लगने की बीमारी से परेशान हैं। भारत में भी लगभग 50 फीसद बच्चे इसके शिकार हैं। विकसित देश हों या विकासशील दोनों प्रकार के देशों में यह एक गंभीर सार्वजनिक समस्या है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 05:19 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 05:19 PM (IST)
Health Tips : दांतों की सड़न से सिर्फ चेहरा नहीं, पाचन-पोषण व मानसिक समस्या भी संभव
पूरे विश्व में लगभग 50-60 फीसद बच्चे दांतों में कीड़ा लगने की बीमारी से परेशान हैं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। बच्चों के दांतों में कीड़ा लगना तथा दंतक्षय होना एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या है। कीड़ों की वजह से दांतों में सड़न की समस्या को ही कैविटी कहते हैं। इसकी वजह से बच्चों का शारीरिक ही नहीं, मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। बच्चों के दांतों को अगर कैविटी से बचाना है तो लंबे समय तक उन्हें बोतल से दूध न पिलाएं। बोतल हटाते ही उन्हें पानी से कुल्ला करा दें। बच्चे के मुंह में पहला दांत आते ही उसे ब्रश कराना शुरू कर दें। यह कहना है काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान में दंत विज्ञान विभागाध्यक्ष व डीन प्रोफेसर विनय कुमार श्रीवास्तव का। जागरण से वार्ता में उन्होंने बच्चों के स्वास्थ्य में दांतों की भूमिका पर विस्तृत चर्चा की।

कहा कि पूरे विश्व में लगभग 50-60 फीसद बच्चे दांतों में कीड़ा लगने की बीमारी से परेशान हैं। भारत में भी लगभग 50 फीसद बच्चे इसके शिकार हैं। विकसित देश हों या विकासशील, दोनों प्रकार के देशों में यह एक गंभीर सार्वजनिक समस्या है। कैविटी की समस्या जब छह वर्ष से कम अवस्था के बच्चे में पाई जाती है तो इसे अर‌्ली चाइल्डहुड कैरीज या नर्सिंग बाटल कैरीज भी कहा जाता है। इसका प्रसार बहुत तेजी से होता है।

कैविटी बनने के प्रमुख कारण--

- बच्चों के आहार में शर्करा एवं स्टार्च का अधिक मात्रा में होना

-लंबे समय तक बोतल के द्वारा दूध पीना

- शहद अथवा अन्य मीठे पैसिफायर का प्रयोग

- मुंह एवं दांत स्वच्छ न रखना

- बच्चों के मुंह में कीटाणुओं का स्तर उच्च होना

- बच्चों के दांतों की बाहरी ठोस परत इनैमल की मोटाई कम होना

- पानी में फ्लोराइड की कमी

- अभिभावकों में जानकारी की कमी एवं जानकारी होने पर भी लापरवाही करना

कैविटी के दुष्परिणाम-

अधिकांश माता-पिता बच्चों के दांतों की सड़न को अनदेखा कर देते हैं। इससे कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

-पक्के दांतों का समय से पहले आ जाना

- दांतों का टेढ़ा-मेढ़ा होना

- बच्चों को बोलने में परेशानी होना

- चेहरे की सुंदरता में कमी

- बच्चों का पाचन बिगड़ जाना

- भोजन को ठीक प्रकार से चबा न पाने की वजह से पोषण में कमी

- बच्चों की शारीरिक वृद्धि प्रभावित होना

- माता पिता एवं बच्चों दोनों का मानसिक तनाव बढ़ना

सावधानियां- माता-पिता यदि कुछ बातों का ध्यान रखें एवं कुछ आसान उपाय अपनाएं तो बच्चों में दांतों की सड़न को रोका अथवा कम किया जा सकता है--

- पहला दांत मुंह में दिखने के साथ ही ब्रश कराना शुरू करें

- फ्लोराइड टूथपेस्ट का दिन में दो बार प्रयोग करें

-तीन साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लोराइड टूथपेस्ट न कराएं

- तीन साल से कम उम्र के बच्चे के लिए चावल के दाने के बराबर तथा इससे अधिक उम्र को मटर के दाने के बराबर टूथपेस्ट देना चाहिए।

- यदि आप फ्लोराइड की अधिकता वाले क्षेत्र में रहते हैं तो फ्लोराइड टूथपेस्ट का प्रयोग न करें

- आवश्यकता पड़ने पर डेंटल फ्लास का प्रयोग करना सिखाएं

- यदि बच्चा सोते समय बोतल का प्रयोग करता है तो मीठी चीजें न दें।

-बोतल से पीने के बाद पानी से कुल्ला कराएं

- बच्चों को नियमित रूप से पौष्टिक आहार फाइबर फूड्स जैसे गाजर, मूली, सेब आदि खिलाएं

- प्रत्येक छह माह पर बच्चों के दांतों की जांच बाल दंत विषेशज्ञ से कराएं।

उपचार- बच्चों के दांतों में कीड़ा लगने की स्थिति में तुरंत बाल दंत विशेषज्ञ से उपचार कराएं।

सामान्य रूप से -

- दांतों में मसाला भरना

- रूट कैनाल ट्रीटमेंट, स्टेनलेस स्टील कैप लगाना

- अत्यधिक सड़े दांतों काे उखाड़ना

- समयपूर्व गिरे अथवा उखड़े दांतों के स्थान पर स्पेस मेंटेनेंस देकर जगह को सुरक्षित रखना ताकि दांत सही जगह पर ही आएं।

- यदि बच्चा अंगूठा चूसता है या मुंह से सांस लेता है तो उन्हें हैबिट ब्रेकिंग एंप्लायंस दिया जा सकता है।

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