भगोड़े नित्यानंद के समर्थकों ने फर्जी ट्रस्ट बनाकर वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के धर्मशाला पर किया कब्जा

दुष्कर्म के आरोपित भगोड़े स्वयंभू बाबा नित्यानंद व उसके समर्थकों की नजर एक दशक पहले ही मणिकर्णिका घाट स्थित भिखारी धर्मशाला पर पड़ गई थी।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Fri, 13 Dec 2019 12:38 PM (IST) Updated:Fri, 13 Dec 2019 03:08 PM (IST)
भगोड़े नित्यानंद के समर्थकों ने फर्जी ट्रस्ट बनाकर वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के धर्मशाला पर किया कब्जा
भगोड़े नित्यानंद के समर्थकों ने फर्जी ट्रस्ट बनाकर वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के धर्मशाला पर किया कब्जा

वाराणसी, जेएनएन। दुष्कर्म के आरोपित भगोड़े स्वयंभू बाबा नित्यानंद व उसके समर्थकों की नजर एक दशक पहले ही मणिकर्णिका घाट स्थित भिखारी धर्मशाला पर पड़ गई थी। गंगा किनारे मौजूद धर्मशाला को हड़पने के लिए धर्मशाला के लिए पुरानी संस्था मणिकर्णिका सेवाश्रम के नाम में हेरफेर करके एक नई संस्था मणिकर्णिका सेवा आश्रम बनाकर कूटरचना करते हुए सहायक निबंधक फम्र्स, सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एवं चिट्ज के यहां नवीनीकरण करा लिया। भाजपा नेता गुलशन कपूर की शिकायत पर जब सहायक निबंधक के यहां आपत्ति दर्ज कराई तो नवीनीकरण को निरस्त कर दिया गया। 

नित्यानंद के समर्थकों ने तत्कालीन कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण के यहां वाद दाखिल किया। कमिश्नर ने नौ अक्टूबर 2017 को अपने आदेश में सहायक निबंधक के निरस्तीकरण को सही ठहराते हुए अपील निरस्त कर दी थी। नित्यानंद से जुड़े लोग मामले को अदालत में ले गए। 

सेवाश्रम को सेवा आश्रम बना दिया

आजादी के पहले की बात है। मणिकर्णिका घाट पर एक भिक्षुक लीलाधर रहते थे। एक दिन वह बिड़ला धर्मशाला में विश्राम करने पहुंचे तो कर्मचारियों ने यह कहकर भगा दिया कि यह स्थान शवदाह में आए लोगों के विश्राम के लिए है भिखारियों के लिए। भिक्षुक लीलाधर को यह बात लग गई और उन्होंने उसी मणिकर्णिका घाट पर प्रण लिया कि एक धर्मशाला भिक्षा के रुपये से बनवाएंगे। मेहनत रंग लाई। नगर निगम ( तब म्युनिस्पल बोर्ड) से जमीन मांगी। नगर निगम ने भी भिक्षुक की इच्छा को देखते हुए घाट किनारे जमीन दी। 1941 में धर्मशाला बनकर तैयार हो गया। 

29 जनवरी 1947 को एक ट्रस्ट का निर्माण किया गया जिसका नाम रखा गया मणिकर्णिका सेवाश्रम, काशी। इस ट्रस्ट में लीलाधर के साथ ही सेठ मेघराज, सेठ बजरंग लाल कनोड, श्रीराम बिहारी शुक्ला, नंदकिशोर प्रहलादका, श्री बाबू ठाकुरदास एडवोकेट शामिल थे। नगर निगम के दस्तावेजों में इनके नाम के साथ ही संपत्ति मालिक के रूप में म्युनिस्पल बोर्ड का नाम दर्ज था। समय-समय पर ट्रस्ट से जुड़े लोगों की मृत्यु होती रही। 

नब्बे के दशक में ही पड़ गई थी नजर : एक-एककर ट्रस्टियों की मौत के बाद वर्ष 1998 में एकमात्र ट्रस्टी बचे थे नंदकिशोर प्रहलादका। दो जनवरी 1998 को उन्होंने नए ट्रस्टी बनाए जिनके नाम थे राधेश्याम खेमका, विनोद कुमार झुनझुनवाला, काशीनाथ चौधरी, नारायण प्रसाद पंसारी। इस बीच नंदकिशोर की भी मृत्यु हो गई लेकिन उनकी मृत्यु से पहले संस्था का नवीनीकरण नहीं हुआ। पंजीयन सोसाइटी एक्ट का पंजीयन नहीं हुआ।

नए सदस्यों ने दक्षिण भारत की संस्था का लगवा दिया बोर्ड : फर्जीवाड़ा करके धर्मशाला को बेचने के फिराक में लगे नए ट्रस्टियों ने अपनी पोल खुलते देखकर दक्षिण भारत के स्वयंभू बाबा नित्यानंद की संस्था को उक्त धर्मशाला की कमान सौंप दी। कर्मचारियों की मिलीभगत से नगर निगम का नाम अभिलेख से नाम हटवा दिया गया। इस बीच जिलाधिकारी के आदेश पर वर्ष 2007 में धर्मशाला को राज्य सरकार की संपत्ति घोषित कर दिया गया। नित्यानंद के समर्थक नित्य पूजानंद उर्फ रंजीत दास, कृष्ण कुमार खेमका, राधेश्याम खेमका, नित्य तूरियानंद उर्फ अर्पित सिंघल और डा. प्रेमकाश लक्कड़ ने 18 नवंबर को मणिकर्णिका  सेवा आश्रम संस्था के नाम पर एक बैठक की गई। संस्था का नवीनीकरण नहीं होने का हवाला देते हुए सहायक निबंधक के यहां मणिकर्णिका सेवा आश्रम के नाम से पुरानी संस्था के नाम पर वर्ष 2008 से 2015 तक का एकमुश्त रुपये जमा किए थे। कूट रचना का खेल पकड़ में आने के बाद नवीनीकरण रद कर दिया गया था। 

तहसील से लेकर नगर निगम तक हड़कंप : भिखारी धर्मशाला को लेकर तहसील और नगर निगम के कर्मचारियों की मिलीभगत का खेल सामने आने पर जिलाधिकारी ने पुराने दस्तावेजों को खंगालना शुरू कर दिया। देखा जा रहा है कि किसकी मिलीभगत से यह काम हुआ जिसके चलते मामला अदालत तक जा पहुंचा। 

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