भारतीय ज्ञान व मूल्यों पर आधारित होगी नई शिक्षा नीति, भारतीय परंपरा व महापुरुषों के संदेशों का होगा समावेश

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (नई दिल्ली) के राष्ट्रीय सचिव प्रो. अतुल कोठारी ने कहा कि नई शिक्षा नीति भारतीय ज्ञान व मूल्यों पर आधारित होगी।

By Edited By: Publish:Tue, 22 Oct 2019 01:37 AM (IST) Updated:Tue, 22 Oct 2019 01:37 AM (IST)
भारतीय ज्ञान व मूल्यों पर आधारित होगी नई शिक्षा नीति, भारतीय परंपरा व महापुरुषों के संदेशों का होगा समावेश
भारतीय ज्ञान व मूल्यों पर आधारित होगी नई शिक्षा नीति, भारतीय परंपरा व महापुरुषों के संदेशों का होगा समावेश

वाराणसी, जेएनएन। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (नई दिल्ली) के राष्ट्रीय सचिव प्रो. अतुल कोठारी ने कहा कि नई शिक्षा नीति भारतीय ज्ञान व मूल्यों पर आधारित होगी। पाठ्यक्रमों में महान भारतीय परंपराएं व महापुरुषों के संदेशों को समावेश किया गया है। प्रो. अतुल सोमवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के केंद्रीय पुस्तकालय के समिति कक्ष में 'वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नई शिक्षा नीति' विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। कहा कि नीतियां बनाना नहीं उसे क्रियान्वयन करना महत्वपूर्ण है।

सैद्धांतिक के स्थान पर प्रायोगिक शिक्षा अधिक अहम है। प्रायोगिक के माध्यम से विद्यार्थी सरलता से सीख लेते हैं। कहा कि सिलेबस नहीं, कंटेंट महत्वपूर्ण होता है। गांधीवादी इंजीनिय¨रग अर्थात स्वच्छता, सफाई, स्वावलंबन को पाठ्यक्रमों में जोड़ने की आवश्यकता है। गुरुजन विद्यार्थियों के आदर्श इससे पहले वह पंत प्रशासनिक भवन स्थित डा. राधाकृष्णन् सभागार में हेड-डीन व प्रबुद्ध वर्ग के साथ बैठक की। इस दौरान उन्होंने अध्यापकों से अपना व्यक्तित्व अनुकरणीय बनाने का सुझाव दिया। कहा कि गुरुजन ही विद्यार्थियों के आदर्श होते हैं। इस बात का अध्यापकों को ध्यान देना होगा।

साथ ही परिसर का परिवेश साफ-सुथरा बनाने का भी सुझाव दिया। अध्यक्षता कुलपति प्रो. टीएन सिंह, संचालन प्रो. निरंजन सहाय व धन्यवाद ज्ञापन डा. पारसनाथ मौर्य ने किया। संगोष्ठी में आइक्यूएसी के समन्वयक प्रो. केएस जायसवाल, कुलसचिव डा. एसएल मौर्य, परीक्षा नियंत्रक डा. कुलदीप सिंह सहित अन्य लोगों ने विचार व्यक्त किया।

नई शिक्षा नीति में अन्य महत्वपूर्ण पहल

- राइट टू एजुकेशन पर पुनर्विचार।

- शारीरिक शिक्षा पर बल।

- शिक्षकों की अस्थायी नियुक्तियों की व्यवस्था समाप्त करने।

- कक्षा आठ तक मातृ भाषा में शिक्षा देने।

-वर्ष में दो बार परीक्षा कराने।

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