न भिखारियों के लिए प्लान और न ही विभाग के पास बजट, वाराणसी में एक दशक से नहीं हुआ सर्वे
वाराणसी में भिखारियों के रहने के लिए न ही कोई भिक्षुक गृह है न ही कोई प्लान है। लंबे अर्से से सर्वे भी बंद है। न सरकार की ओर से कोई बजट जारी हो रहा है न कोई सुध लेने वाला है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। जिले में भिखारियों के रहने के लिए न ही कोई भिक्षुक गृह है, न ही कोई प्लान है। लंबे अर्से से सर्वे भी बंद है। न सरकार की ओर से कोई बजट जारी हो रहा है, न कोई सुध लेने वाला है। मजे की बात है कि समाज कल्याण विभाग में इसका पटल पूर्व की तरह ही यथावत है यानी जिंदा है। बकायदा तीन कर्मचारी भी तैनात हैं। लंबे अर्से से वेतन भी उठा रहे हैं। समाज कल्याण विभाग इस सवाल पर पूरी तरह मौन है। सिर्फ इतना ही कहना है कि बजट नहीं जारी हो रहा है।
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर अहम फैसला देते हुए कहा था कि भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। भीख मांगना लाचारी व विवशता है। ऐसे में भिखारियों के लिए वर्तमान में क्या व्यवस्था है, सवाल तो उठता है।
पहले जनपद में भिखारियों के रहने के लिए बकायदा स्थल तय था। शहर में कभी-कभी वीवीआइपी आगमन के दौरान पुलिस धरपकड़ कर भिक्षुकों को इस केंद्र के हवाले करती थी। अब इस भूमि पर सांस्कृतिक संकुल का निर्माण हो गया। इसके बाद आशापुर में समाज कल्याण विभाग की ओर से संचालित छात्रावास में भिक्षुकों को रखने की व्यवस्था हुई। वर्ष 2002-03 तक सब कुछ ठीक ठाक चला। भिक्षुकों का सर्वे भी होता था पर 2005-06 से सब बंद हो गया।
तीन कर्मचारी को वेतन जारी
भिक्षुक गृह के लिए बकायदा तीन कर्मचारी जिले में दो दशक से तैनात हैं। भिक्षुक गृह में कार्य न होने के कारण छात्रावास से अटैच हैं। नियमित वेतन इनका जारी हो रहा है।
पांच हजार से अधिक भिक्षुक
जिले में कुछ समाजसेवी संस्थाएं भिक्षुकों को लेकर काम कर रही हैं। कुछ बीमार भिक्षुकों को अपने यहां रखकर इलाज, भोजन आदि मुहैया करा रही हैं। इससे जुड़े लोगों का कहना है कि पांच हजार से अधिक भिक्षुक हैं। बहुतायत गंगा घाट, मंदिर के आसपास रहते हैं। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास व दशाश्वमेध घाट पर सर्वाधिक भिक्षुक हैं। भीख में जो मिलता है वहीं खाकर रात में खुले आसमान के नीचे जीवन गुजारते हैं।