संत कबीर के जीवन दर्शन की नींव पर खड़ा होगा स्मारक, वाराणसी के लहरतारा में मिलेगा आकार
वाराणसी में कबीरचौरा मठ मूलगादी की वर्षों पुरानी परिकल्पना जो कबीरदास प्राकट्य स्थली लहरतारा में उनके जीवन दर्शन की नींव पर 18500 वर्ग फीट में 4.25 करोड़ रुपये की लागत से जल्द ही आकार पाएगी। प्रतीकों व संकेतों से मिलते संदेश जिज्ञासु मन के अंतर्मन का आभास कराएगा।
वाराणसी प्रमोद यादव। काशी का नाम आते ही नगर के अधिपति देवाधिदेव महादेव की छवि मन व आंखों के सामने उभर आती है, लेकिन बनारस का रस तो कबीर हो जाने में ही महसूस हो पाता है। सत्य मार्ग पर तर्कों के साथ डिगे रहने का अक्खड़पन, मस्तमिजाजी और फक्कड़पन इस शहर ने उनसे ही सीखा तो अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। जिसे दुनिया को सिखाएगी कबीरचौरा मठ मूलगादी की वर्षों पुरानी परिकल्पना जो उनकी प्राकट्य स्थली लहरतारा में उनके जीवन दर्शन की नींव पर 18,500 वर्ग फीट में 4.25 करोड़ रुपये की लागत से जल्द ही आकार पाएगी।
पंच तत्व का समावेश
संत कबीर ने जीव-आत्मा को श्रमसाधना में बांधना सिखाया और करघे से इसका विवेचन किया। इसके जरिए ही कर्म की प्रधानता का सदा संदेश दिया तो पिंड से ब्रह्मांड तक जगत अस्तित्व के कारणभूत पंचतत्वों यानी क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा... को अपनी बानियों में समाहित किया। उनका समावेश स्मारक के पांच खंडों केऊपरी हिस्से में शिखर, उध्र्वमुखी शंकु, पट्टिकायुक्त गवाक्ष, तिर्यक फलक व प्रच्छाया पट्टिकाओं से किया जाएगा।
दिखेगा मोक्ष मुक्ति का द्वार
जीवन के दैहिक व आध्यात्मिक पक्षों पर आधारित दुनिया के अनूठे स्मारक में मूर्ति की जगह अष्ट कमल दल चरखा डोले... पंक्तियों का मूर्त रूप नजर आएगा। इसमें चरखा शरीर का प्रतीक होगा तो डंडियां, धूप से उभरती छाया में अपनी धुरी पर घूमती नजर आएंगी। शिखर में इटैलियन कांच से निकलती रोशनी आत्म -परमात्मा को एकाकार करते हुए अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करते हुए मोक्ष का दसवां द्वार दिखाएगी।
सात चरणों में समाहित सात लोक
आधार से शिखर तक स्मारक के सात चरण सप्त लोक यथा भूलोक, भवर्लोक, स्वर्लोक, महलोक, जनलोक, तपलोक व सत्यलोक का दर्शन कराएंगे। बाहर से देखने पर स्मारक सप्त कमल दल का आभास देगा जो मनुष्य के सात चक्र यानी मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा व सहस्रार का आभास कराएंगे। वहीं स्मारक के तीन परिक्रमा पथ आत्मिक, मानसिक व दैहिक स्थितियों के प्रतीक होंगे। इनसे साक्षात होते ही कबीर के जीवन दर्शन का पिटारा भी खुलता जाएगा। प्रतीकों व संकेतों से मिलते संदेश जिज्ञासु मन के ताले खोल कर अंतर्मन को आध्यात्मिक तृप्ति का आभास कराएगा।