आस्कर अवार्ड से विश्वपटल पर छाई थी मीरजापुर की बेटी, स्माइल पिंकी अब गुमनामी के अंधेरे में

डाक्यूमेंट्री फिल्म स्माइल पिंकी को वर्ष 2009 में आस्कर अवार्ड मिलने के बाद मीरजापुर की पिंकी शोहरत की बुलंदी पर पहुंच गई। इस मुकाम पर पहुंची पिंकी ने कभी सोचा नहीं होगा कि उसकी जिंदगी भी किसी मैच की बाजी की तरह पलट जाएगी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 03 Sep 2021 09:10 AM (IST) Updated:Fri, 03 Sep 2021 09:10 AM (IST)
आस्कर अवार्ड से विश्वपटल पर छाई थी मीरजापुर की बेटी, स्माइल पिंकी अब गुमनामी के अंधेरे में
डाक्यूमेंट्री फिल्म स्माइल पिंकी को वर्ष 2009 में आस्कर अवार्ड मिला।

मीरजापुर, सतीश रघुवंशी। कटे होंठ वाले बच्चों के जीवन पर आधारित डाक्यूमेंट्री फिल्म स्माइल पिंकी को वर्ष 2009 में आस्कर अवार्ड मिलने के बाद मीरजापुर की पिंकी शोहरत की बुलंदी पर पहुंच गई। उसे 2013 में विंबलडन टेनिस टूर्नामेंट में सर्बिया के नोवाक जोकोविच और ब्रिटेन के एंडी मरे के बीच खेले गए फाइनल मुकाबले के लिए सिक्का उछाल कर टास करने के लिए बुलाया गया था। इस मुकाम पर पहुंची पिंकी ने कभी सोचा नहीं होगा कि उसकी जिंदगी भी किसी मैच की बाजी की तरह पलट जाएगी। पिंकी अब गुमनामी के अंधेरे में गुजर-बसर को मजबूर है।

उसके गांव रामपुर ढबही को गोद लेने के साथ ही पिंकी की पढ़ाई का जिम्मा लेने वाले प्रशासन ने भी उससे मुंह मोड़ लिया है। खुद को चमकाने के लिए हाथ बढ़ाने वाले दर्जनों स्कूल-कालेज भी उस ओर रुख नहीं करते और न ही संस्थाएं अब उसका नाम लेती हैं। दुनिया का यह रूप देखकर पिंकी के चेहरे की स्माइल अब बुझने लगी है। आॢथक तंगी के बीच स्माइल ट्रेन संस्था से मिल रही आॢथक मदद ही उसका एकमात्र सहारा है। दो साल से उसे अपनी फीस देने में भी दिक्कत हो रही है। विद्यालय प्रबंधन ने फीस जमा न कर पाने पर उसका रिजल्ट तक नहीं दिखाया। फिलहाल वो किसी तरह अहरौरा के एक निजी स्कूल में कक्षा दस की पढ़ाई कर रही है। साथ ही खेत और घरेलू काम में माता-पिता का हाथ बंटा रही है।

शासन की ओर से मिली तीन बीघा भूमि पर खेती ही उसकी आजीविका का साधन है। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पिंकी कहती है कि पढ़ाई पूरी कर वह गरीबों और कटे होंठ वाले बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने की पूरी कोशिश करेगी। बुधवार को पूर्वाह्न जब जागरण टीम पिंकी के रामपुर ढबही गांव स्थित घर पर पहुंची तो कुछ भी नया नहीं था। सरकार द्वारा दिए गए आवास में अपने पांच भाई-बहनों व माता-पिता के साथ रह रही पिंकी को दुख है कि लोगों ने उसके नाम का फायदा उठाया।

भूमि के पट्टे संग आवास, हैंडपंप व सड़क की सौगात : ऐसा नहीं है कि सरकार ने उसके और परिवार के लिए कुछ नहीं किया। चुनार तहसील प्रशासन ने उसे गांव में ही खेती के लिए तीन बीघे भूमि का पट्टा आवंटित किया। हालांकि अब उसे भूमि पर काबिज लोगों से मुकदमा लडऩा पड़ रहा है। तत्कालीन एसडीएम चुनार डा. विश्राम सिंह यादव ने दो लाख रुपये की आॢथक मदद भी की थी। साथ ही आवास, हैंडपंप व उसके घर से कुएं तक जाने के लिए आरसीसी रोड तक बनवाई।

बैंक मर्जर से स्माइल ट्रेन से नहीं मिल सकी आॢथक मदद

पिंकी ने बताया कि उसे प्रति माह दस हजार रुपये की धनराशि स्माइल ट्रेन संस्था की तरफ से मिलती है। हालांकि दो महीने से मदद की धनराशि खाते में नहीं पहुंची है। पिता राजेंद्र सोनकर ने बताया कि उसे स्माइल ट्रेन संस्था ने जीवन यापन के लिए एक आटो रिक्शा दिया था जिससे रोजाना दो-तीन सौ रुपये की आमदनी हो जाती थी, हालांकि अब वह आटो बेकार हो गई है।

पिंकी के होंठ की सर्जरी करने वाले डा. सुबोध कुमार सिंह बताते हैं कि आपरेशन के दौरान उससे जुड़ाव हो गया था। उसे मैंने किताबें भेंट की थी। चुनार स्थित द रेडिएंट इंटरनेशनल स्कूल की प्रबंधक कुसुम सिंह ने बताया कि पिंकी ने हमारे विद्यालय में कक्षा आठ तक की शिक्षा ग्रहण की। कोरोना काल के बाद हास्टल बंद कर दिया गया। घर से आने-जाने की समस्या होने पर उसने कहीं और दाखिला ले लिया।

हर माह 10 हजार रुपये की मदद की जा रही है

हम लोग पिंकी के संपर्क में हैं। उसका पूरा सहयोग किया जा रहा है। हर माह 10 हजार रुपये की मदद की जा रही है। स्माइल ट्रेन की मदद से अभी पिंकी का डेंटल ट्रीटमेंट चल रहा है। कई बैंकों का मर्जर होने से आइएफएससी कोड व बैंक अकाउंट चेंज होने के कारण दो माह से मदद नहीं पहुंची होगी, लेकिन अब अकाउंट ठीक कर लिया गया है।

- रेनू मेहता, निदेशक दक्षिण एशिया, स्माइल ट्रेन इंडिया

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