देश की आर्थिक नगरी मुंबई के जोगश्वरी में ब्लैक पाटरी नगर, आजमगढ़ के माटी कला को निखार रहे दस परिवारों के सदस्य
आजमगढ़ के निजामाबाद के परंपरागत हस्तशिल्पी देश की आर्थिक नगरी मुंबई में अपनी कला का डंका बजा रहे हैं। मुंबई में अंधेरी के पास सहकार रोड पर योगेश्वरी के यादव नगर में ब्लैक पॉटरी नगर ही बस गया है।
आजमगढ़ [अनिल मिश्र]। जीआइ सूचकांक(किसी क्षेत्र विशेष के उत्पादों को जियोग्रॉफिकल इंडीकेशन टैग) और ओडीओपी(एक जिला, एक उत्पाद) में चयन के बाद आजमगढ़ के निजामाबाद की ब्लैक पॉटरी अब किसी पहचान का मोहताज नहीं रही है। बावजूद इसके शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि लगभग साढ़े तीन दशक पहले ही निजामाबाद के परंपरागत हस्तशिल्पी देश की आर्थिक नगरी मुंबई में अपनी कला का डंका बजा रहे हैं। मुंबई में अंधेरी के पास सहकार रोड पर योगेश्वरी के यादव नगर में ब्लैक पॉटरी नगर ही बस गया है। जहां हुसेनाबाद निजामाबाद के 10 परिवारों के लगभग 60 से 70 स्वजन अपने हुनर का डंका बजा रहे हैं।
वर्ष 1955-56 में हुसेनाबाद मोहल्ले के हस्तशिल्पी सूरजबलि प्रजापति मुंबई गए। खास बात यह रही कि वे अपने साथ बर्तन बनाने के लिए मिट्टी भी यहीं से ले गए। जोगेश्वरी में कमरा लेकर परिजनों के साथ पहले टेराकोटा(लाल बर्तन जैसे कुल्हड़, दीया आदि) बनाना शुरू किए। समय के साथ जब ब्लैक पॉटरी उत्पाद का समय आया तो उनके स्वजन नई तकनीक अपना लिए। कारोबार बढऩे लगा तो पैतृक गांव से लगभग 10 परिवार वहां पहुंच गए। ब्लैक पॉटरी और टेराकोटा उत्पाद की मांग इतनी बढ़ी के वहां के स्थानीय व्यापारी खरीदने लगे, जिससे साल में लगभग पांच करोड़ रुपये का कारोबार हो जाता है। सूरजबली प्रजापति के निधन के बाद जोगेश्वरी में उनके नाम पर चाल का नामकरण हो गया है।
निजामाबाद से जाती है मिट्टी और निर्मित ब्लैक पॉटरी उत्पाद
मुंबई में ब्लैक पॉटरी और टेराकोटा का बर्तन बनाने के लिए मिट्टी निजामाबाद ही जाती है। जब मांग अधिक होने पर गांव से प्रतिवर्ष 50 से 60 ट्रक उत्पाद यहां से जाता है, जिसमें 40 से 50 किलो तक के 100 से 200 डिब्बा मिट्टी ले जाई जाती है।
ओडीओपी में चयन के बाद ब्लैक पॉटरी और टेराकोटा उत्पाद का दायरा बहुत बढ़ा है
सूकांक के बाद ओडीओपी में चयन के बाद ब्लैक पॉटरी और टेराकोटा उत्पाद का दायरा बहुत बढ़ा है, लेकिन तीन दशक से अधिक समय पहले हुसैनाबाद के हस्तशिल्पी मुुंबई, पूना, नागपुर में रोजगार के सिलसिले में गए लेकिन वहां भी अपना परंपरागत हुनर ही काम आया। उनके निधन के बाद अगली पीढ़ी ने नई तकनीक के साथ कारोबार को बढ़ाया, जो आज हमारी पहचान है और आर्थिक समृद्धि का साधन भी।
--ओमप्रकाश प्रजापति, (हस्तशिल्पी निजामाबाद),जोगेश्वरी, मुंबई।