तिथियों की घट-बढ़ संतुलित करने के लिहाज से लगने वाला अधिक मास आज से शुरू

इस बार आश्विन मास की वृद्धि है और 18 सितंबर से अधिमास लग रहा है। मान्यता है अधिमास में भगवान लक्ष्मी-नारायण धरा पर कृपा बरसाते हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 18 Sep 2020 06:22 AM (IST) Updated:Fri, 18 Sep 2020 01:32 PM (IST)
तिथियों की घट-बढ़ संतुलित करने के लिहाज से लगने वाला अधिक मास आज से शुरू
तिथियों की घट-बढ़ संतुलित करने के लिहाज से लगने वाला अधिक मास आज से शुरू

वाराणसी, जेएनएन। धर्म शास्त्रीय विधान सनातन धर्मियों के लिए संस्कारों का संविधान है। इसका हर कोण जीव जगत के कल्याण का सुखद जोड़ बनाता है। इन सबका ख्याल रखते हुए प्रत्येक मास का प्रावधान किया गया है। इसकी महत्ता बनाए रखने के लिए किसी न किसी देव को समर्पित किया गया है। इसमें तिथियों की घट-बढ़ में संतुलन के लिहाज से पडऩे वाला अधिमास श्रीहरि को समर्पित करते हुए पुरुषोत्तम मास नाम दिया गया। मान्यता है अधिमास में भगवान लक्ष्मी-नारायण धरा पर कृपा बरसाते हैं।

यह बात और है कि मान्यता और परंपरा की आड़ में भ्रांतियां शुभ-अशुभ का हवाला देते हुए इस पक्ष और मास में खरीद-बिक्री के निषेध का हौवा बनाती हैं। इसकी मार बाजार को बेजार करती है। इस बार आश्विन मास की वृद्धि है और 18 सितंबर से अधिमास लग रहा है।

काशी के विद्वतजन बताते हैं कि शास्त्रों में अधिमास में किसी भी वस्तु की खरीद का न तो निषेध उल्लेखित है और न ही बंदिश। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय के अनुसार भारतीय काल गणना पद्धति में अनेक प्रकार के मिश्रित कालमानों से व्यवहार किया जाता है जिसमें वर्ष सौर, मास  चान्द्र (चैत्र, वैसाख आदि) तथा दिन सावन (रविवार ,सोमवार आदि) होता है। इस प्रक्रिया में चैत्रादि 12 महीनों का नाम दो अमावस्याओं के मध्य पडऩे वाली संक्रान्तियों से ही निर्धारित होता है। अत: जिन दो अमावस्याओं के बीच सूर्य की संक्रांति नहीं होती है, उसे कोई नाम नहीं मिल पाने के कारण लोक व्यवहार में अधिकमास, अधिमास, मलमास, मलिम्लुचमास तथा पुरुषोत्तममास आदि नामों से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने जब कुछ अन्य प्रतिबंधों के साथ चैत्र आदि 12 में से किसी महीने में नहीं मरने का ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर पृथ्वी लोक में उपद्रव करते हुए स्वयं को भगवान घोषित कर दिया। तब भगवान विष्णु ने इसे मारने के लिए स्वयं चैत्रादि 12 महीनों के अतिरिक्त अधिकमास रूप में उत्पत्ति की। परंतु कार्य पूॢत के बाद जब अधिमास ने अपने अस्तित्व की भगवान विष्णु से चिंता व्यक्त की तो भगवान विष्णु ने उसे स्वयं अपना नाम देकर पुरुषोत्तममास कहते हुए उसके महत्व को बढ़ा दिया।

काल गणना क्रम में यह स्थिति औसतन प्रत्येक तीसरे वर्ष में 32 महीने, 16 दिन और एक घंटा 36 मिनट के अंतर से उत्पन्न होती है। इस वर्ष आश्विन मास मे पितृपक्ष के बाद 18 सितंबर से अधिक मास का आरंभ हो जा रहा है जो 16 अक्टूबर तक है। अधिमास में फल की प्राप्ति की कामना से किये जाने वाले प्राय: सभी काम वॢजत हैं। इसमें वस्त्र-आभूषण, मकान, नया वाहन और नित्य उपयोग की वस्तुओं आदि की खरीदारी और उपयोग करना भी शुभ होता है।

श्रीकाशी विद्वत परिषद के मंत्री डा. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार अधिमास में भूमि-भवन, वाहन, वस्त्र-आभूषण की खरीदारी निषेध की सूची में नहीं आती।  अखिल भारतीय विद्वत परिषद के महासचिव डा. कामेश्वर उपाध्याय के अनुसार अधिमास के दौरान मुहूर्त चिंतामणि में 21 चीजों का निषेध किया गया है लेकिन प्रतिदिवसीय कार्य और जरूरी चीजों की खरीदारी की जा सकती है।

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार अधिमास का अधिष्ठाता श्रीहरि को कहा जाता है। इस मास में अक्षय पुण्य की प्राप्ति, पापों के क्षय और अंतत: विष्णुलोक की प्राप्ति के लिए श्रीहरि के निमित्त समस्त पूजन विधान के साथ अन्न, वस्त्र, स्वर्ण-रजत, ताम्र आभूषण समेत अन्य वस्तुओं का दान किया जाता है। ऐसे में खरीदारी नहीं की जाएगी तो भला अनुष्ठान की पूर्ति कहां से हो पाएगी।

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