Makar Sankranti 2021 : सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन पर विज्ञान और धर्म हैं एकमत
Makar Sankranti 2021 सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन पर भारत में विज्ञान और धर्म के मत एक जैसे हैं। भारत में वैदिक काल से ही सूरज की इस अवस्था पर विज्ञान के साथ-साथ इसके धार्मिक पहलुओं का भी आकलन किया जाता रहा है।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। Makar Sankranti 2021सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन पर भारत में विज्ञान और धर्म के मत एक जैसे हैं। भारत में वैदिक काल से ही सूरज की इस अवस्था पर विज्ञान के साथ-साथ इसके धार्मिक पहलुओं का भी आकलन किया जाता रहा है। विज्ञान की दृष्टि से कृषि, जलवायु, मौसम, स्वास्थ्य, पारिस्थितिक विविधता, हानिकारक किरणें और ऊष्मा बजट का अध्ययन किया जाता है, जबकि धर्म इसके पीछे देवताओं और दैत्यों के वजूद व दान-पुण्य की बात करता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवताओं का निवास स्थान उत्तरी ध्रुव व दैत्यों का निवास स्थान दक्षिणी ध्रुव है।
बीएचयू में ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय के अनुसार धर्म सिंधु में कहा गया है कि मकर-संक्रांति पर स्नान न करने वाला व्यक्ति जन्म-जन्मांतर रोगी और निर्धन होता है। वहीं विज्ञान भी इससे परे नहीं है, जब वह यह बताता है कि इस दिन हम सूरज के सबसे खतरनाक विकिरणों में से एक अल्ट्रा वायलेट सी से सुरक्षित रहते हैं। इस विधा को समझने से पहले उत्तरायण और दक्षिणायन की अवधारणा को समझना आवश्यक हो जाता है। ठंड के मौसम में सूर्य दक्षिण दिशा, जबकि गर्मी में वह हमारे सिर के ऊपर से गुजरता है। उत्तर और दक्षिणी छोर के सबसे अंतिम बिंदु जहां तक सूर्य की रोशनी लंबवत पड़ती है, जब वहां से सूर्य वापस दूसरे ध्रुव की ओर बढऩे लगता है तो उसे ही उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं। इसमें छह माह का अंतराल होता है। यही प्रक्रिया धरती पर जीवन का मूल है।
भारत में धर्म और विज्ञान के अनुसार समस्त शुभ कार्य इस आधार पर ही निर्धारित किए जाते हैं। बीएचयू में भू-भौतिकी विभाग के प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव के अनुसार सूरज जब, जिस गोलाद्र्ध में चमकता है, वहां त्वचा जलाने वाली पराबैगनी किरणों का प्रभाव बढ़ जाता है। इस समय धरती के दक्षिणतम हिस्से पर सबसे खतरनाक अल्ट्रावायलेट सी बैंड का विकिरण काफी ज्यादा होता है, जबकि मकर संक्रांति के दौरान भारत में इस खतरनाक पराबैगनी किरण का प्रभाव बिल्कुल न्यूनतम होता है और यह स्वास्थ्य के लिए सबसे आदर्श समय होता है। दक्षिणी हिस्से में जहां इससे कैंसर व त्वचा रोगों की समस्या बढ़ती है, वहीं भारत की स्थिति उसे बिल्कुल सुरक्षित रखती है। इस दौरान उत्तरी गोलाद्र्ध में ओजोन परत में भी सघनता आती है जिससे कई नुकसानदेय किरणें धरती तक नहीं पहुंच पाती हैं। प्रो. विनय कुमार पांडेय कहते हैं कि सूर्य की यह संक्रांति मानव के लिए बेहद पुण्यकारी व फलदायक होती है। स्नान, जप, दान, होम इत्यादि धार्मिक कृत्यों से सामान्य की अपेक्षा सौ गुना फल की प्राप्ति होती है।
पांच साल बाद बन रहा पंचग्रही योग
प्रो. पांडेय के अनुसार 14 जनवरी से दक्षिणतम बिंदु मकर रेखा से उत्तर की ओर सूर्य बढ़ेगा। सूर्य जब धनु राशि को छोड़कर मकर राशि अर्थात सबसे दक्षिणतम बिंदु में प्रवेश करता है तो उसे ही मकर संक्रांति कहते हैं। सबसे खास बात यह कि इस बार पांच वर्ष बाद गुरुवार के दिन मकर संक्रांति पड़ रही है जिसमें पांच ग्रहों का विशेष पंचग्रही योग भी बन रहा है। इसे मंदा संक्रांति कहते हैं अर्थात इस दिन सूर्य का राशि बदलना बहुत ही शुभ होता है। मकर राशि में सूर्य के साथ चंद्रमा, बुध, गुरु और शनि के योग हैं जो कि बड़े राजनीतिक और सामाजिक बदलाव लाने का ज्योतिषीय संकेत दे रही है। मयूरचित्रकम में ग्रहों की इस युति पर प्रशासनिक फेरबदल की संभावना जताई गई है।
क्षण भर का होता है संक्रांति काल
प्रो. पांडेय के अनुसार संक्रांति का काल क्षण भर का ही होता है जिससे जप, स्नान, पूजा व अनेक अनुष्ठान कर पाना संभव नहीं होता। इस स्थिति में फल प्राप्ति के लिए आचार्यों ने पुण्य काल घटी की अवधारणा दी है। 24 मिनट की एक घटी होती है और सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुल 16-20 से घटियां अनुष्ठानों के लिए बताई गईं हैं। अत: व्यक्ति पूरे दिन कभी भी पूजा, पाठ व दान-कर्म में स्वयं को लगा सकता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य जब दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो हम अंधकार से प्रकाश की ओर उन्मुख होते हैं। सूरज के उत्तरायण होते ही ऊर्जा का संचार उत्तरी गोलाद्र्ध में बढ़ जाता है और इससे हमारी कार्य शक्ति में कई गुना वृद्धि होती है। इस समय मान्यता है कि स्नान व दान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रयाग और गंगासागर में स्नान का सबसे ज्यादा महत्व है, क्योंकि मान्यता है कि प्रयाग में गंगा-यमुना और सरस्वती पर सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान करने आते हैं, इसलिए वहां पर स्नान-दान करते हैं, इससे अनंत मूल्यों का फल प्राप्त करते हैं।
-प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय, वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य व धर्माचार्य, काशी हिंदू विश्वविद्यालय