माहे रमजान : जकात अदा करने का यह सबसे उपयुक्त समय, जरूरतमंदों को तलाश कर उन्हें हस्बे हैसियत से रकम देनी चाहिए

उलेमा का कहना है कि मजहबे इस्लाम सिर्फ रोजा नमाज व अन्य इबादतों का दर्स (शिक्षा) नहीं देता बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों व मानवीय कर्तव्यों को लेकर भी संवेदनशील है। माहे रमजान में अदा किए जाने वाले जकात को नजीर के तौर पर देखा जा सकता है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 07:55 AM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 07:55 AM (IST)
माहे रमजान : जकात अदा करने का यह सबसे उपयुक्त समय, जरूरतमंदों को तलाश कर उन्हें हस्बे हैसियत से रकम देनी चाहिए
माहे रमजान में अदा किए जाने वाले जकात को नजीर के तौर पर देखा जा सकता है।

भदोही, जेएनएन। वैश्विक महामारी ने इस बार भी माह रमजान को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। महानगरों में कामकाज प्रभावित होने से बड़ी संख्या में लोग घर वापसी कर रहे हैं। जिस तरह के हालात बनते जा रहे हैं उसे देखते हुए आने वाले दिनों में स्थित बेहद दयनीय होने की आशंका है। रात्रि कफ्र्यू व लाकडाउन से इंकार नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि उलेमा-ए-कराम जकात की रकम गरीबों, जरूरतमंदों में जल्द से जल्द बांटकर उन्हें राहत पहुंचाने पर बल देने लगे हैं।

उलेमा का कहना है कि हालात बिगडऩे का इंतजार करने से बेहतर है कि जो लोग साहिबे हैसियत हैं वे जरूरतमंदों की मदद कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाएं। मजहबे इस्लाम सिर्फ रोजा, नमाज व अन्य इबादतों का दर्स (शिक्षा) नहीं देता, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों व मानवीय कर्तव्यों को लेकर भी संवेदनशील है। माहे रमजान में अदा किए जाने वाले जकात को नजीर के तौर पर देखा जा सकता है।  

जकात को इस्लामिक कानून बताते हुए मौलाना फैसल हुसैन अशरफी कहते हैं कि जकात हर उस शख्स को निकालना जरूरी है जो साहिबे निसाब यानी मालदार है। जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े 52 तोला चांदी या इसके बराबर की रकम हो उस पर जकात फर्ज है। यानी उसे ढाई फीसद रकम जकात के नाम से निकाल कर जरूरतमंदों में बांटना जरूरी है। कहा कि अल्लाह ताअला ने जकात के माध्यम से ऐसा निजाम बनाया है कि जिससे अमीरी व गरीबी के बीच फासला कम होता है। जकात के लेनदेन से आर्थिक रूप से पिछड़े तबके को हालात सुधारने का मौका मिलता है। मौलाना ने कहा कि जकात की रकम का सही उपयोग करने का इससे बेहतर अवसर नहीं मिलेगा। ऐसे में जकात की रकम गरीबों को काफी राहत पहुंचा सकती है।

जकात पर किसका हक, कैसे दें रकम

जकात की रकम पर सबसे पहले रिश्तेदारों, पड़ोसियों का हक बनता है। इसके बाद अन्य जरूरतमंदों को तलाश कर उन्हें हस्बे हैसियत रकम देनी चाहिए। मौलाना के अनुसार किसी हाजतमंद को पैसे देते समय यह जाहिर नहीं करना चाहिए कि यह रकम जकात की है। इसी तरह रकम बांटने से पहले तय कर लें कि कौन कितने रकम का हाजतमंद है। इसके अलावा जकात की रकम के लिए किसी को दरवाजे पर न बुलाएं बल्कि खामोशी के साथ उसके घर तक पहुंचा दें तो बेहतर है।

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