Maa Annapurna का 17 दिवसीय महाव्रत पांच दिसंबर से होगा प्रारंभ, 20 को समापन

मां अन्नपूर्णा का महाव्रत शनिवार से से आरंभ होने जा रहा है। यह व्रत 17 वर्ष 17 महीने 17 दिन का होता है। परंपरा के अनुसार इस व्रत के प्रथम दिन प्रातः मंदिर के महंत स्वयं अपने हाथों से 17 गांठ के धागे भक्तों को देते हैं।

By saurabh chakravartiEdited By: Publish:Thu, 03 Dec 2020 07:05 PM (IST) Updated:Thu, 03 Dec 2020 07:08 PM (IST)
Maa Annapurna का 17 दिवसीय महाव्रत पांच दिसंबर से होगा प्रारंभ, 20 को समापन
मां अन्नपूर्णा का महाव्रत शनिवार से से आरंभ होने जा रहा है।

वाराणसी, जेएनएन। मां अन्नपूर्णा का महाव्रत शनिवार से से आरंभ होने जा रहा है। यह व्रत 17 वर्ष 17 महीने, 17 दिन का होता है। परंपरा के अनुसार इस व्रत के प्रथम दिन प्रातः मंदिर के महंत स्वयं अपने हाथों से 17 गांठ के धागे भक्तों को देते हैं। मान्यता है कि मां अन्नपूर्णा के 17 दिवसीय महाव्रत व्रत करने से जीवन सुखमय रहता है। यह व्रत पांच दिसंबर से आरंभ होगा और 20 दिसंबर को समाप्‍त होगा।

माता अन्नपूर्णा के इस महाव्रत में भक्त 17 गांठ वाला धागा धारण करते हैं। इसमें महिलाएं बाएं व पुरुष दाहिने हाथ में इसे धारण करते हैं। इसमें अन्न का सेवन वर्जित होता है। केवल एक वक्त फलाहार किया जाता है वह भी बिना नमक का। 17 दिन तक चलने वाले इस अनुष्ठान का उद्यापन 20 दिसंबर को होगा। उस दिन धान की बालियों से मां अन्नपूर्णा के गर्भ गृह समेत मंदिर परिसर को सजाया जाएगा और धान के बाली का प्रसाद 21, दिसंबर को आम भक्तों में वितरण किया जावेगा। मान्यता की बात करें तो पूर्वांचल के किसान अपनी फसल की पहली धान की बाली  मां को अर्पित करते है और उसी बाली को प्रसाद के रूप में दूसरी धान की फसल में मिलाते हैं। वे मानते है कि फसल में बढ़ोतरी होती है। महंत रामेश्वर पूरी ने कहा मां अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैविक, भौतिक का सुख प्रदान करता है और अन्न-धन, ऐश्वर्य की कमी नहीं होती है।

पुराणों में अन्नपूर्णा महाव्रत का उल्लेख : अन्नपूर्णा व्रत की कथा का उल्लेख भविष्योत्तर पुराण में मिलता है। इसका वर्णन त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने किया तो द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने भी इससे संबंधित उपदेश दिया। काशी रहस्य में कहा गया है कि - अहो भवानी सदने निषीदतां प्रदक्षिणी कृत्य तथा यथा सुखम, न तत्सुखं योग-यागादि साध्यं अंबापुर: प्राण भृपदाति। अर्थात जो सुख योग-याग आदि से भी प्राप्त नहीं है वह भगवती अन्नपूर्णा के मंदिर में जाकर बैठने वालों और उस मंदिर की पैदल प्रदक्षिणा करने वाले प्राणियों को प्राप्त हो जाती है।

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