हमारे तीर्थस्थल : वाराणसी के माधो दास बागीचे में दुबक कर बैठा था बदहवासी लार्ड वारेन हेस्टिंग्स
शिवाला किले और रामनगर में हुए रक्तपात के बाद शहर के माधो दास बागीचे (अब स्वामी बाग) में दुबक कर बैठा लार्ड वारेन हेस्टिंग्स बदहवासी के आलम में था। हरकारे खबर लाए थे कि आज 31 अगस्त 1778 के दिन ही बनारस वाले माधोदास के बगीचे पर हमला बोलेंगे।
वाराणसी, कुमार अजय। शिवाला किले और रामनगर में हुए रक्तपात के बाद शहर के माधो दास बागीचे (अब स्वामी बाग) में दुबक कर बैठा लार्ड वारेन हेस्टिंग्स बदहवासी के आलम में था। हरकारे खबर लाए थे कि आज 31 अगस्त 1778 के दिन ही बनारस वाले माधोदास के बगीचे पर हमला बोलेंगे उन्हें मालूम है कि लार्ड साहब इसी बगीचे में छुपा हुआ है। खबर पुष्ट भी थी सुजान सिंह और सदानंद बक्शी के शिवाला कांड के बाद से ही माधो दास बाग पर हमलाकर वारेन को खत्म करने का मन बनाए हुए थे।
शाम तक खबर पर यकीन की मुहर लग गई कि राजा साहब की सेना नाव से इस पार उतर चुकी है। वैसे भी माधोदास का यह बागीचा रक्षात्मक युद्ध के लिए उपर्युक्त भी नहीं था। उस समय हेस्टिंग्स के पास कंपनी की सेना के 450 जवानों की टुकड़ी ही रक्षा में रह गई थी। घबराए-हड़बड़ाए हेस्टिंग्स ने उसी शाम जान बचाने के लिए चुनार भागने का निश्चय कर लिया था। रात आठ बजे जनाना वेश में पालकी पर सवार वारेन चुनार की ओर भाग निकला। हेस्टिंग्स को भगाने में बरार राजा के वकील पं. बेनी राम व उनके भाई पं. विश्वंभरनाथ ने बड़ी भूमिका निभाई। वारेन ने खुद लिखा है कि शाम को ये दोनों भाई मुझसे मिलने आए हमारी रवानगी होते ही वे बिना नौकर चाकर पैदल ही मेरे दल में शामिल हो गए। मैंने उनको चले जाने को कहा भी किंतु वे उसी तरह हमारे साथ चुनार तक गए। चुनार के सेठों से पैसा न मिलने की सूचना पर इन दोनों भाइयों ने अपने बनारस स्थित मकान पर मौजूद एक लाख रूपये की मदद को पेशकश भी की। यह बात और है कि कुछ बाधाओं के चलते यह योजना फेल हो गई।
भोजपूर के पहले विद्रोह के नाम से जानी जाने वाली इस घटना को सबसे पहले शब्दों में उकेरने वाले स्व. आरआर खाडिलकर ने बयां किया है कि राजा चेतसिंह के रामनगर प्रस्थान के समय यदि उनके सैनिक भी रामनगर न जाकर उसी दिन माधोदास के बगीचे पर चढ़ बैठते तो वारेन हेस्टिंग्स और उसके साथ के मुसाबिहों में से कुछ दिन कोई नहीं बचा होता। फिर शायद स्वातंत्र्य समर का इतिहास भी कुछ और ही होता। वैसे अगले दिन बनारस में रणविजय जैसा उल्लास था। क्या बच्चा और क्या बूढ़ा पूरे शहर में बस एक ही गूंज थी घोड़े पर हउदा अ हाथी पर जीन भागा रे भागा वारेन हेस्टिन।