Shardiya Navratri 2021 : सर्वप्रथम भगवान श्रीरामचन्द्र ने किया था शारदीय नवरात्र पूजन

लंका विजय का श्रीराम को देवी से आशीर्वाद प्राप्‍त हुआ था। इसी कामना के साथ ही प्रतिवर्ष नवरात्र के दौरान रामलीला और विजय दशमी के दिन लंका विजय और रावध वध के तौर पर भी यह दिन मनाने की परंपरा शुरू हुई थी।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Thu, 07 Oct 2021 11:19 AM (IST) Updated:Thu, 07 Oct 2021 11:19 AM (IST)
Shardiya Navratri 2021 : सर्वप्रथम भगवान श्रीरामचन्द्र ने किया था शारदीय नवरात्र पूजन
लंका विजय का श्रीराम को देवी से आशीर्वाद प्राप्‍त हुआ था।

वाराणसी [प्रमोद यादव]। सर्वप्रथम भगवान् श्रीरामचन्द्र ने इस शारदीय नवरात्र-पूजा का प्रारम्भ समुद्रतट पर किया था। अत एव यह राजस पूजा है। बीएचयू के पूर्व ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय के अनुसार इसमें जितना सम्भव हो उतनी पूजा सामग्रियों के साथ पूजा-विधान करना चाहिए तथा विविध प्रकार के प्रभूत नैवेद्य यथा सम्भव द्ववी को समर्पित करना चाहिए।

मान्‍यता है कि लंबा विजय की कामना से भगवान श्री राम ने शक्ति आराधना की थी। इसके बाद ही लंका विजय का उनको देवी से आशीर्वाद प्राप्‍त हुआ था। इसी कामना के साथ ही प्रतिवर्ष नवरात्र के दौरान रामलीला और विजय दशमी के दिन लंका विजय और रावध वध के तौर पर भी यह दिन मनाने की परंपरा शुरू हुई थी। इस लिहाज से नवरात्र और श्रीराम का संबंध अनन्‍य है। काशी में भगवान राम के द्वारा वरुणा नदी की रेत से स्‍थापित रामेश्‍वर की महत्‍ता किसी भी रूप से रामेश्‍वम से कम नहीं है।  

मान्‍यता है कि शक्ति आराधना के बाद ही विजयादशमी के दिन श्रीरामचन्द्रजी ने लङ्का-विजय के लिये प्रस्थान किया था -

अथ विजयदशम्यामाश्विने शुक्लपक्षे

दशमुखनिधनाय प्रस्थितो रामचन्द्रः।

द्विरदविधुमहाब्यूँथनाथैस्तथाऽन्यः

कपिभिरपरिमाणैर्व्याप्तभूदिक्खचक्रैः ॥

(हनुमत्नाटकम् ७।२)

अर्थात् आश्विन शुक्लपक्ष की विजयादशमी तिथि को

दशमुख रावण-वध के लिये श्रीरामचन्द्रजी ने प्रस्थान किया।

उनके साथ द्विरद, विधु, महाब्ज नाम के कपि सेनापति तथा

समग्र पृथ्वी, दिशा एवं गगन मण्डलोंको व्याप्त करते हुए

असंख्य सैन्य थे। इससे यह प्रमाणित होता है कि श्रीरामचन्द्रजी ने सर्वप्रथम शारदीय नवरात्र-पूजा की।

नवरात्र का वैज्ञानिक पक्ष

शरद्वसन्तनामानौ दानवौ द्वौ भयंकरौ।

तयोरुपद्रवशाम्यर्थ पूजां द्विधा मता।।

अर्थात् शरद् एवं वसन्त नाम के दो भयंकर दानव विभिन्न रोगों के कारण हैं, इन ऋतु- परिवर्तनों के समय विभिन्न रोग- महामारी, ज्वर, शीतला, कफ, खाँसी आदि के निवारणार्थ पूर्ण स्वच्छता पूर्वक शारदीय तथा वासन्ती ये दो नवरात्र दुर्गा- पूजा के लिए प्रशस्त हैं।

विधि पूर्वक स्थापित कलश में प्रदत्त सर्वौषधि, पंचरत्न, सुपारी, दूर्वा आदि द्रव्यों, पदार्थों को देखने से स्पष्ट होगा कि नौ दिनोंतक कलश में दिये गये उन पदार्थों से कलशजल अमृतमय हो जाता है और उससे अमृत रूप जल से महामन्त्रों द्वारा अभिषेक किया जाता है। वह सर्वपाप - रोगविनाशक है।

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