काशी विश्वनाथ कारिडोर में होगी दिव्य आनंद-कानन की अनुभूति, गंगा तट से मंदिर तक जाएंगे पौधे

श्रीकाशी विश्वनाथ का सज-संवर रहा धाम एक बार फिर आनंद-कानन की अनुभूति कराएगा। बाबा दरबार से गंगधार तक 527730 वर्गफीट में बनाए जा रहे कारिडोर में उन्हें प्रिय पेड़-पौधे लगाए जाएंगे। इनमें बेल व रुद्राक्ष के पेड़ तो होंगे ही अशोक नीम व कदंब की भी छाया मिलेगी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 26 Nov 2021 06:10 AM (IST) Updated:Fri, 26 Nov 2021 01:59 PM (IST)
काशी विश्वनाथ कारिडोर में होगी दिव्य आनंद-कानन की अनुभूति, गंगा तट से मंदिर तक जाएंगे पौधे
श्री काशी विश्वनाथ धाम कारिडोर : गंगा की ओर से इन्ही सीढि़यों से होते हुए श्रद्धालु पहुंचेंगे बाबा दरबार।

वाराणसी, प्रमोद यादव। श्रीकाशी विश्वनाथ का सज-संवर रहा धाम एक बार फिर आनंद-कानन की अनुभूति कराएगा। बाबा दरबार से गंगधार तक 5,27,730 वर्गफीट में बनाए जा रहे कारिडोर में उन्हें प्रिय पेड़-पौधे लगाए जाएंगे। इनमें बेल व रुद्राक्ष के पेड़ तो होंगे ही अशोक, नीम व कदंब की भी छाया मिलेगी। चुनार के लाल पत्थरों की दीवारों के बीच हरियाली निखरेगी तो परिसर हरसिंगार के श्वेत-धवल फूलों की भीनी-भीनी सुवास से महमह हो जाएगा। गमलों में बेला, कनेर व मदार-धतूरा के पौधे भी लगाए जाएंगे।

इसके लिए कारिडोर निर्माण के दौरान ही पेड़-पौधे लगाने की व्यवस्था कर ली गई है। मुख्य परिसर से लेकर मंदिर चौक और गंगा छोर तक पथरीली जमीन में चार फीट व्यास के गड्ढे बनाए गए हैैं। ये सीधे मिट्टïी के संपर्क में होंगे, इनमें पाइप लगा कर भीतर-भीतर ही हवा-पानी का इंतजाम किया गया है। स्थान अनुसार इन गड्ढों में छह से 15 फीट तक के पेड़-पौधे लगाए जाएंगे। इनकी संख्या लगभग 70 होगी। इसकी जिम्मेदारी कारिडोर का निर्माण कर रही कंपनी को दी गई है। पौधे 13 दिसंबर को लोकार्पण से ठीक पहले लगा दिए जाएंगे।

वास्तव में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर विस्तारीकरण-सुंदरीकरण परियोजना की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) में ही हरियाली का खाका खींच लिया गया था। तय किया गया था कि लगभग 30 फीसद स्थान खुला-खुला और हरियाली व रंग- बिरंगे फूलों से खिला-खिला होगा। यह पर्यावरण की दृष्टि से तो किया ही गया, इसके पीछे आध्यात्मिक बिंदु को भी ध्यान में रखा गया। कारण यह कि पूर्व में बाबा दरबार क्षेत्र आनंद-कानन के रूप में ही जाना जाता था। श्रद्धालु गंगा में स्नान कर हरे-भरे क्षेत्र से होते मंदिर तक आते थे और बाबा का दरस-परस (दर्शन-स्पर्श) व जलाभिषेक कर तृप्त हो जाते थे।

बेल : भगवान शिव को बेल पत्र प्रिय है। शास्त्रीय मान्यता है कि महादेव लोटा भर जल व बेल पत्र से प्रसन्न हो जाते हैैं।

रुद्राक्ष व अशोक: मान्यता है कि रुद्राक्ष व अशोक की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से है। रुद्राक्ष को शिव प्रसाद माना जाता है। अशोक शोक-चिंता को हरने वाला है।

फूल : भोले बाबा के पूजन में मदार, धतूरा, कनेर, बेला व हरसिंगार के फूलों का विशेष महत्व है।

श्रद्धालुओं को सुखद अनुभूति मिलेगी

काशी विश्वनाथ धाम का विस्तार व सुंदरीकरण मूल तत्व व प्रथा-परंपरा को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा। समस्त बिंदुओं को समाहित कर रहे जो श्रद्धालुओं को सुखद अनुभूति दें।

- दीपक अग्रवाल, मंडलायुक्त व अध्यक्ष श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कार्यपालक समिति।

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