काशी उत्सव : लोक के साथ अनूठा तादात्म्य है कबीर और रैदास का : डा. सदानंद शाही

संस्कृति मंत्रालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित काशी उत्सव के दूसरे दिन काशी परिचर्चा सत्र में बीएचयू के हिंदी विभाग के वरिष्ठ आचार्य डा. सदानंद शाही ने कहा कि संत कबीर और संत रैदास के भीतर लोक है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 17 Nov 2021 10:28 PM (IST) Updated:Wed, 17 Nov 2021 10:28 PM (IST)
काशी उत्सव : लोक के साथ अनूठा तादात्म्य है कबीर और रैदास का : डा. सदानंद शाही
बीएचयू के हिंदी विभाग के वरिष्ठ आचार्य डा. सदानंद शाही ने

जागरण संवाददाता, वाराणसी। संस्कृति मंत्रालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित काशी उत्सव के दूसरे दिन काशी परिचर्चा सत्र में विद्वानों ने संत कबीर और रैदास को याद किया। बीएचयू के हिंदी विभाग के वरिष्ठ आचार्य डा. सदानंद शाही ने कहा कि संत कबीर और संत रैदास के भीतर लोक है। लोक के भीतर दोनों विभूतियां हैं। इनका लोक के साथ अनूठा तादात्म्य है। इन दोनों ने बेगमपुर रूपी वैचारिक कालोनी की परिकल्पना को सत्य करने करने के यत्न किए हैं। जिसमें सब अव्वल हैं। दोयम, तेयर जैसा कोई दर्जा ही नहीं है। उन्होंने कहा कि

कबीर-रैदास का काल ऐसा था जब ईश्वर और भक्त के बीच बिचौलियों की जमात ने जड़ें जमा ली थीं। अपने-अपने स्वार्थों के अनुरूप ईश्वर और धर्म को व्याख्या दी जाने लगी थी। रैदास जिस बेगमपुरा को बसाना चाहते हैं कबीर अपना घर जला कर उसी बेगमपुरा की आधारशिला रखने की बात करते हैं। कबीर ईट-गारे से बने घर को नहीं बल्कि वैचारिकी के स्तर में मानव को छोटा साबित करने वाले घर को जला कर रैदास के बेगमपुरा का समर्थन करते हैं।

बिजली का तार तुलसी के राम, उसकी ऊर्जा कबीर के राम

कबीर गायक पद्मश्री भारती बंधु ने कबीर और रैदास की निर्गुण भक्तिधारा को बड़े ही सहज ढ़ंग से समझाया। पटना में आयोजित एक कार्यक्रम के संस्मरण को याद करते हुए कहा कि एक बालिका ने मुझसे पूछा कबीर के राम और तुलसी के राम में क्या अंतर है। मुझे तत्काल कुछ नहीं सूझा। तभी एक बिजली का तार दिखा। मैंने बालिका से पूछा वह क्या है। उसने बताया तार है। मैंने पूछा उसके अंदर क्या है। उसने कहा ऊर्जा है। तब मैंने कहा बिजली का तार तुलसी के राम हैं जो साकार हैं। उस तार के अंदर की ऊर्जा जो है तो मगर दिखती नहीं, वह कबीर के राम हैं।

साखी बाबा गोरखनाथ की, रैदास ने जोड़ा कठौती में गंगा

हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयागराज के अध्यक्ष डा. यूपी सिंह ने सार्वभौमिक धर्म के प्रवर्तक संत कबीर एवं संत रैदास विषय पर अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि मन चंगा तो कठौती में गंगा को भले ही रैदास से जोड़ दिया गया है लेकिन यह साखी बाबा गोरखनाथ की है जो रैदास से चार सौ वर्ष पूर्व से धरा राम पर थे। उनकी साखी में यह पंक्ति भी शामिल है। कबीर और रैदास दोनों ही आचार्य रामानंद के ही शिष्य थे। रामानंदाचार्य संस्कृत के साथ साथ हिंदी में भी लेखन करते थे। कालांतर में उनका प्रभाव इतना बढ़ा कि एक अलग संप्रदाय ही विकसित और प्रतिष्ठित हुआ।

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