Ram mandir Ayodhya : काशी की अडियों पर - 'जिन अटर-पटर बतियावा, लया रामनामी कॉफी भिड़ावा'

राम रस की फुहारों में नहाती रही खड़कती रहीं राम नामी कॉफी की गिलासें अड़ीबाजों की गोल रामनाम गुण गाते भादो में रामनवमी मनाती रहीं।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Thu, 06 Aug 2020 06:20 AM (IST) Updated:Thu, 06 Aug 2020 09:39 AM (IST)
Ram mandir Ayodhya : काशी की अडियों पर - 'जिन अटर-पटर बतियावा, लया रामनामी कॉफी भिड़ावा'
Ram mandir Ayodhya : काशी की अडियों पर - 'जिन अटर-पटर बतियावा, लया रामनामी कॉफी भिड़ावा'

वाराणसी [कुमार अजय]। न मिंगलों की मार ना कोई जहर बुझा ताना। न कांग्रेस का दुपट्टा न कमल छापा बाना सोशल डिस्टेंसिंग की बंदिशों से सिमटी सिकुड़ी अस्सी अड़ी आज सुबह से शाम तक राम रस की फुहारों में नहाती रही खड़कती रहीं राम नामी कॉफी की गिलासें, अड़ीबाजों की गोल रामनाम गुण गाते भादो में रामनवमी मनाती रहीं। अड़ी के ब्रह्मा मनोज ने सुबह सबेरे ही अटर-पटर बहसों के खिलाफ मुनादी पिटवा दी थी। सो हाथ में सैनिटाइजर पोतवा कर जो भी अंदर आया। उसने खुद को राम नाम के जादू से बंधा पाया। एक भोरहरी से शुरु हुआ रामरटन का सिलसिला गोधूलि बेला तक परवान चढ़ता रहा। अयोध्या में रामलला के मंदिर के भूमिपूजन के उल्लास का पारा। एक-एक डिग्री ऊपर चढ़ता रहा। 

शुरुआत की अक्कड़-फक्कड़ अड़ी बाज प्रवीण वर्मा (बच्चा भईया) ने आज की महत्ता के नाम रामनामी कॉफी की सबहर चुस्कियों का आदर पठाकर। अवकाश प्राप्त पुलिस अधिकारी शुक्ला जी ने भी लेमनी चाय का पैसरा खोल दिया और जय सियाराम का नारा बोलवाकर सबको श्रीराम रस में घोल दिया। अड़ी के बुढ़ऊ उदय नारायण पांडेय (बाऊ) भी आज सुबह से ही तूफान मेल पर सवार थे। किसी तरह आधा गिलास चाय गटक कर वाया गोबरहिया गली सिद्धेशवर महादेव मंदिर की राह पकड़ ली। जहां भूमि पूजन के उपलक्ष्य में रूद्राभिषेक चल रहा था। नुआंव वाले अभिषेक सिंह भी आज जल्दी में थे। उन्हें अपने गांव में भूमि पूजन के अवसर पर आयोजित कीर्तन समारोह का इंतजाम संभालना था। पर कहते हैं न कि छांव में छोड़े खेसारी क दाल... सोहे पंचों बचते बचाते भी आख्रिर गोट फंस गई। मध्यप्रदेश के दिग्विजय सिंह के बयानों की तल्खी विजय त्रिपाठी जी के करेजे में बबूल की कांट के मतिन ढंस गई। फिर क्या था। बहसबंदी की मोमानियत टूट गई। ताना सुनने के लिए रमाशंकर तिवारी की उपस्थिति न होने से सारी ठिकडिय़ा दिग्गी राजा के मत्थे फूट गईं। वह तो भला हो पीयूष मिश्रा का जिन्होंने बड़े करीने से बात संभाल ली समझदारी का परिचय देते हुए गेंद बाबू आरपी सिंह के पाले में डाल दी। बेचारे दिग्विजय बाबू ससूराली रिश्तों को मधुरता देने वाले कुछ संबोधनों की उपाधि पाकर सस्ते में ही छूट गए।

यह बात अलग है कि मुखरवार्ताओं से बचने की कोशिश में कोना अतरा थामकर बैठे कुछ लाल चोले वाले सजनी हमऊ राजकुमार... वाले अंदाज में महफिल से ही रूठ गए। बड़ी बात यह रही कि वैचारिक आलगाव के चलते सड़क ओह पार वाले कई डीह बाबाओं ने या तो आज आशन ही नहीं संभाला इधर-उधर कहीं टकराए भी तो बड़ी सावधानी से मुंह पर लगाए रखा। खालीस अलीगढ़ी ताला। आज की राममय अड़ीबाजी सच कहें तो इस एक इतिहास बना गई। स्वयं शिव शंभू द्वारा उचारे गए वचन जाके प्रिय न राम वैदेही, तजिए ताही कोटि बैरीसम यद्पि परम सनेही... का वास्तविक अर्थ बता गई। 

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