किसानों की किस्मत बदल रहा कलमी साग
जागरण संवाददाता वाराणसी देश के एकमात्र भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आइआइवीआर) द्वारा तक
जागरण संवाददाता, वाराणसी : देश के एकमात्र भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आइआइवीआर) द्वारा तकनीक से विकसित कलमी साग अब अन्य पत्तेदार सब्जियों की तरह सामान्य खेतों में भी उगाया जा रहा है। इसकी व्यावसायिक खेती शुरू हो गई है। इससे किसानों की किस्मत बदल रही है। पहले यह जल जमाव वाले ताल-तलैये, पोखरे व अन्य जलाशयों में जैसे-तैसे उग आता था। इस कारण इसमें नुकसानदायक तत्व होते थे। इसकी कटाई के लिए गहरे पानी में भी उतरना पड़ता था। कलमी साग की वीआरडब्लूएस-1 प्रजाति को सामान्य खेतों में मिट्टी में उगाया जा रहा है। इसमें खर्च भी न के बराबर है।
अलाऊद्दीनपुर के किसान प्रताप नारायण मौर्या बताते हैं कि उन्होंने संस्थान से संपर्क कर अपने खेत में कलमी पौधे लगाए। एक माह बाद से ही इसकी कटिग शुरू हो गई। उन्होंने इसे चंदुआ सट्टी में थोक के भाव 15-20 रुपये प्रति किलो बेचना शुरू किया। इसकी उपज व बिक्री बड़ी आसानी से हो रही है। इसे उगाने में किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद व दवाई की भी जरूरत नहीं है। प्रताप अब रोजाना इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं। इसके अलावा छितकपुर, मीरजापुर के किसान अखिलेश सिंह सहित अन्य कई किसान भी कलमी साग की खेती कर अपनी आय बढ़ा रहे हैं।
कलमी साग के पोषण महत्व के संबंध में आइआइवीआर के निदेशक डा. जगदीश सिंह बताते हैं कि कलमी साग पोषण का खजाना है। यह लौह तत्व की पूर्ति करता है और विटामिन सी, कैरोटिन और अन्य कई विटामिन्स समेत खनिज तत्व का भंडार है। इसे एक बार लगाने के बाद वर्ष भर उपज पाई जा सकती है। इसकी खेती में लागत नहीं के बराबर लगती है।
इस फसल पर शोध कर रहे संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. राकेश कुमार दुबे बताते हैं कि इस प्रजाति को सामान्य खेतों में बरसात के दिनों में लाइन से लाइन 20 सेंटीमीटर एवं पौध से पौध 10 सेंमी की दूरी पर 2 गांठ वाली कलमें लगाना चाहिए। इस प्रजाति की पौध कलम संस्थान पर उपलब्ध है।