वर्ष 2021 तक कालाजार मुक्त होगा Varanasi, उन्मूलन के लिए प्रभावित क्षेत्रों में शुरू हुआ कार्य

National Vector Borne Disease Control Program Varanasi स्वास्थ्य समिति अध्यक्ष जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने बताया कि 2021 तक कालाजार का उन्मूलन करना है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 12:02 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 01:20 PM (IST)
वर्ष 2021 तक कालाजार मुक्त होगा Varanasi, उन्मूलन के लिए प्रभावित क्षेत्रों में शुरू हुआ कार्य
वर्ष 2021 तक कालाजार मुक्त होगा Varanasi, उन्मूलन के लिए प्रभावित क्षेत्रों में शुरू हुआ कार्य

वाराणसी, जेएनएन। National Vector Borne Disease Control Program जिला स्वास्थ्य समिति अध्यक्ष जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत वर्ष 2021 तक कालाजार का पूरी तरह से उन्मूलन करना है। इसी के क्रम में कालाजार उन्मूलन अभियान के तहत दो प्रभावित विकास खंड में छिड़काव का कार्य किया जा रहा है। वर्ष में दो बार कीटनाशक छिड़काव का ही असर है कि कालाजार रोग जिले में सीमित हो चुका है। फिर भी अन्य जिले के साथ वाराणसी जनपद भी कालाजार उन्मूलन के लिए सरकार कृत संकल्पित है।

जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने सेवापुरी और काशी विद्यापीठ ब्लॉक जहां कालाजार उन्मूलन के लिए कार्य किया जा रहा है वहां के निवासियों से अपील किया कि क्षेत्र में भ्रमण कर रही टीमों को समुचित जानकारी प्रदान करें। सीएमओ डा. वीबी सिंह ने बताया कि कालाजार की वाहक बालू मक्खी को खत्म करने तथा कालाजार के प्रसार को कम करने के लिए प्रतिवर्ष दो चरणों में इंडोर रेसीडूअल स्प्रे (आइआरएस) किया जाता है। यह छिड़काव घर के अंदर दीवारों पर छह फीट की ऊंचाई तक होता है।

कालाजार प्रभावित दो में एक गांव काशी विद्यापीठ का हरपालपुर है जिसकी आबादी 2,538 है। यह पूर्व में 2009 तक कालाजार प्रभावित रहा है। 21 मरीज थे जिनका इलाज कर ठीक कर दिया गया। मरीजों में बेहद कमी आई है। जिला मलेरिया अधिकारी डा. शरद चंद्र पांडेय ने बताया कि दूसरा ग्राम सेवापुरी काअर्जुनपुर है। इसकी आबादी लगभग 1300 है। वर्ष 2018 में गांव में एक मरीज मिला था जिसका इलाज कर ठीक किया जा चुका है।

क्‍या है कालाजार

कालाजार धीरे-धीरे विकसित होने वाला एक देशी रोग है जो एक कोशीय परजीवी या जीनस लिस्नमानिया से होता है। कालाजार के बाद डरमल लिस्नमानियासिस (पीकेडीएल) एक ऐसी स्थिति है जब लिस्नमानिया त्वचा कोशाणुओं में जाते हैं और वहां रहते हुए विकसित होते हैं। यह डरमल लिसियोन के रूप में तैयार होते हैं। कई कालाजार में कुछ वर्षों के उपचार के बाद पी के डी एन प्रकट होते हैं।

     ये हैं लक्षण    बुखार अक्सर रुक-रुक कर या तेजी से तथा दोहरी गति से आता है।    भूख न लगना, पीलापन और वजन में कमी जिससे शरीर में दुर्बलता महसूस होती है।    प्लीहा का अधिक बढ़ना- प्लीहा तेजी से अधिक बढ़ता है और सामान्यतः यह नरम और कड़ा होता है।    जिगर का बढ़ना लेकिन प्लीहा के जितना नहीं, यह नरम होता है और इसकी सतह चिकनी होती है।     लिम्फौडनोपैथी- भारत में सामान्यतः नहीं होता है।    त्वचा-सूखी, पतली शल्की होती है तथा बाल झड़ सकते हैं। गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और           चेहरे का रंग भूरा हो जाता है। इसी से इसका नाम कालाजार पड़ा अर्थात काला बुखार।    खून की कमी-बड़ी तेजी से खून की कमी होती है।

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