Kaifi Azmi Death Anniversary : कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों ...

कैफी आजमी साहब का जन्म आजमगढ़ के फूलपुर तहसील अंतर्गत मेजवां गांव में 14 जनवरी 1919 को जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता सैय्यद फतेह हुसैन रिजवी ने शिक्षा को तवज्जो दी। शहर में नौकरी की ठानी जिससे बच्चों को नई दिशा मिले।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 08:10 AM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 08:10 AM (IST)
Kaifi Azmi Death Anniversary : कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों ...
कैफी आजमी ने अपने जीवन के आखिरी 20 वर्ष मेजवां में बिताए।

आजमगढ़, राकेश श्रीवास्तव । वर्ष 2002 की तारीख 10 मई। मेजवां गांव के लोगों के लिए यह तिथि मनहूस थी। जब उन्हें अपने हृदय सम्राट कैफी आजमी साहब के मुंबई में इंतकाल की सूचना मिली। गरीब-अमीर ऐसा कोई न था, जो भागकर उनकी हवेली फतेह मंजिल तक न पहुंचा हो। लाजिमी कि उर्दू के तरक्की पसंद मशहूर शायर और गीतकार कैफी आजमी साहब ने दुनिया में अपनी पहचान बनाई तो उनका पैतृक गांव मेजवां भी उससे महरूम नहीं रहा। जमींदार होने के बावजूद गरीबों के दुख-दर्द को न सिर्फ जीए, बल्कि उनकी आवाज इंकलाब बनी। उनकी पुण्यतिथि पर बरबस लोग उनकी हवेली, बगिया पहुंच उनके गीत ‘कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों...’ इत्यादि गुनगुनाकर उन्हें अपने दिलों में आज भी जीवंत किए हैं।

कैफी आजमी साहब का जन्म आजमगढ़ के फूलपुर तहसील अंतर्गत मेजवां गांव में 14 जनवरी 1919 को जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता सैय्यद फतेह हुसैन रिजवी ने शिक्षा को तवज्जो दी। शहर में नौकरी की ठानी, जिससे बच्चों को नई दिशा मिले। इसी अवसर ने बचपन के अख्तर हुसैन रिजवी को कैफी आजमी बना दिया। उन्हाेंने गरीबों के दर्द को अपनी शायरी में इस कदर पिरोया के मजलूमों की आवाज इंकलाब बनकर उभरे। उनकी ‘कोई तो सूद चुकाए, कोई तो जिम्मा ले, उस इंकलाब का जो आज तक उधार सा है’ पंक्तियां किसी को भी झकझोर देती हैं। कैफी साबह ने अपनी रचनाओं में आजीवन इंकलाब की वकालत की। उनका जज्बा ही था कि उनके पैतृक गांव मेजवां में एक आदर्श गांव की सारी सुविधाएं हैं। भारत की आजादी के बाद जिन लेखकों और शायरों ने अपनी लेखनी और कर्म से सांस्कृतिक और सामाजिक आंदोलन खड़ा किया, उनमें कैफी आजमी खास थे।

कैफी दुनिया में ऐसे छाए कि लोगों की दिलो-दिमाग में आज भी जीवंत हैं

अपनी मेधा को धार देेने के लिए कैफी आजमी को गांव से निकलने को कई तरह के जतन करने पड़े तो प्रगतिशील साहित्यकारों के संपर्क ने उनके लेखन ओर व्यक्तिव को कुछ इस तरह माजा कि उर्दू के न सिर्फ प्रगतिवादी शायरों में शुमार हुए, बल्कि हजारों गीत, गजल, शायरी की रचनाएं कर सफलता की ऊंचाइया छूते राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, फिल्म फेयर पुरस्कार कई पुरस्कार जीत दुनिया में ऐसे छाए कि लोगों के दिलो-दिमाग में आज भी जीवंत हैं।

एक मुशायरा पढ़ने के एवज में मिली थी बड़ी रेल लाइन की सौगात

कैफी आजमी ने अपने जीवन के आखिरी 20 वर्ष मेजवां में बिताए। गांव के विकास के लिए संघर्ष किए तो मऊ-आजमगढ़-शाहगंज को बड़ी रेल लाइन की सौगात मिली। उनके आंदोलन से तत्कालीन रेल मंत्री सीके जाफर मुरीद हाे गए थे। 1992-93 के दशक में दिल्ली स्थिति सीपीआइ के अजय भवन में मौजूद कैफी आजमी ने रेलमंत्री से मुलाकात की पेशकश की तो जवाब मिला मैं वहीं पहुंच रहा हूं। सीके जाफर शरीफ से कैफी आजमी की मुलाकात हुई तो बड़ी रेल लाइन, खोरासन रोड व फरिहां हाल्ट अस्तित्व में आ गया। दरअसल, रेलमंत्री ने वचन दिया था कि दस काम कर दूंगा, बस आप हमारे यहां बेंगलुरु में मुशायरा पढ़ दीजिए।

...जब तत्कालीन रेल मंत्री ने कैफी के लिए कानपुर में रोकवा दी थी ट्रेन

कैफी आजमी के सुख-दुख व आंदोलन में साथी रहे 78 वर्षीय शिक्षक नेता कामरेड हरिमंदिर पांडेय ने बताया कि तत्कालीन रेलमंत्री बड़ी रेल लाइन का शिलान्यास करने जजी मैदान में पहुंचे थे, लेकिन कैफी साहब ट्रेन से मुंबई जा रहे थे। रेलमंत्री को भनक लगी तो ट्रेन को कानपुर में रोकवाकर उन्हें उतरवाए और दूसरी ट्रेन से लखनऊ बुलावाए, जहां से कार द्वारा कैफी आजमी जजी मैदान पहुंचकर शिलान्यास कार्यक्रम में शामिल हुए।

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