कबीर फेस्टिवल के अंतिम दिन सुबह-शाम सजी निर्गुण व सूफी संगीत की महफिलें

काशी में श्रम साधना को आराधना का स्वर बनाने वाले संत कबीरदास की वाणियों से रविवार को गंगा का किनारा गूंज उठा, इस दौरान सुबह-शाम संगीत की महफिलें सजीं।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sun, 18 Nov 2018 10:16 PM (IST) Updated:Sun, 18 Nov 2018 10:16 PM (IST)
कबीर फेस्टिवल के अंतिम दिन सुबह-शाम सजी निर्गुण व सूफी संगीत की महफिलें
कबीर फेस्टिवल के अंतिम दिन सुबह-शाम सजी निर्गुण व सूफी संगीत की महफिलें

वाराणसी [प्रमोद यादव] । श्रम साधना को आराधना का स्वर बनाने वाले संत कबीरदास की वाणियों से रविवार को गंगा का किनारा गूंज उठा। महिंद्रा कबीर फेस्टिवल की तीसरी कड़ी हर भाव में कबीर के तहत सुबह-शाम संगीत की महफिलें सजीं। महिंद्रा ग्रुप व टीम वर्क आर्ट्स के इस आयोजन में तीसरे व अंतिम दिन निर्गुण व सूफियाना अंदाज में राग कबीर निहाल करता रहा।    

सुबह शिवाला घाट पर पं. रवींद्र नारायण गोस्वामी ने सितार के तार छेड़े और राग कबीर भैरव में आलाप, रूपक और तीन ताल में गत प्रस्तुत किया। कबीर का भजन 'देस विराना है...' की धुन प्रस्तुत की। तबले पर डा. रजनीश तिवारी, तानपुरे पर दिव्यांश शुक्ला व गायन में उनके शिष्य मानस राज ने साथ दिया। ठुमरी-दादरा गायिका विद्या राव ने अपनी सधी प्रस्तुति में कबीर काव्य के साथ ही  नानक का छंद भी शामिल कर विभोर कर दिया। तबले पर शांति भूषण व हारमोनियम पर बदलू खान ने साथ दिया। 

शिवाला घाट पर संगीत संध्या में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित सारंगी वादक व गायक लाखा खान ने कबीर व मीरा के भजनों के साथ ही सूफी कलाम से झूमने पर विवश किया। 'नाथजी भया वैरागी...', 'गुरु बिन कौन संगी...', 'उड़ जाएगा हंस अकेला...' व 'झीनी चदरिया' जैसे गीतों से भावों से भर दिया। गुजरात के कच्छ से आए सूफी लोकगीत गायक मूरालाला मारवाडा ने दिल को छू लेने वाली प्रस्तुतियां दीं। कबीर, मीराबाई, रविदास समेत अन्य कवियों की कविताएं  संगीत की 'काफी' शैली में सुनाईं। शास्त्रीय गायिका कौशिकी चक्रवर्ती ने कबीर के दोहों पर आधारित 'जल में कुंभ, कुंभ मे जल है...', 'मोको कहां ढूंढ़े रे बंदे...', 'सुभान तेरी कुद्रत को कुर्बान...' समेत गीत-भजनों से महफिल में जान भरी। 

धरोहर दर्शन कर विभोर हुए जिज्ञासु : कबीर इनिशिएशन वॉक में प्रतिभागियों को गुलेरिया घाट से कबीर मठ मूलगादी तक भ्रमण कराया गया। पंचगंगा, आमेर की कंगन वाली हवेली, माधवराव धरहरा, जैन मंदिर के साथ ही बनारस की गलियों ने जिज्ञासाओं को पंख लगाए। गोपाला हवेली व फव्वारेवाली मस्जिद समेत अन्य स्थल होते कबीर मठ में विराम दिया गया। 

कबीर हर दौर में प्रासंगिक : साहित्यिक सत्र में प्रतिभागियों ने कबीर की काव्य धारा के साथ ही उनके दर्शन का श्रवण किया। कबीर और भक्ति विद्वान पुरुषोत्तम अग्रवाल ने इससे अवगत कराया। बताया कि किस तरह कबीर हर दौर में प्रासंगिक हैं।

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