बुधाष्टमी योग में बुधवार को मनाया जाएगा जीवितपुत्रिका व्रत, 28 को दोपहर 3:06 बजे से 29 की शाम 4:55 तक रहेगी अष्टमी

Jeeveeputrika 2021 दीर्घायु कामना और निसंतानों को संतान प्राप्ति के लिए किया जाने वाला जीवित पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। जीवित पुत्रिका व्रत 29 सितंबर को पड़ रहा है। अष्टमी तिथि 28 सितंबर को दोपहर 306 बजे लग रही है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 06:59 PM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 06:59 PM (IST)
बुधाष्टमी योग में बुधवार को मनाया जाएगा जीवितपुत्रिका व्रत, 28 को दोपहर 3:06 बजे से 29 की शाम 4:55 तक रहेगी अष्टमी
इस बार जीवितपुत्रिका अष्टमी व्रत पर बुधाष्टमी का विशेष संयोग प्राप्त हो रहा है।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। Jeeveeputrika 2021 सनातन धर्म में संतान की दीर्घायु कामना और निसंतानों को संतान प्राप्ति के लिए किया जाने वाला जीवित पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार इस बार जीवित पुत्रिका व्रत 29 सितंबर को पड़ रहा है। आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि 28 सितंबर को दोपहर 3:06 बजे लग रही है। जो 29 सितंबर को शाम 4:55 बजे तक रहेगी। व्रत का पारणा 30 सितंबर को सुबह किया जाएगा।

बुधाष्टमी का बन रहा है विशेष संयोग

इस बार जीवितपुत्रिका अष्टमी व्रत पर बुधाष्टमी का विशेष संयोग प्राप्त हो रहा है। इसके साथ ही वरियान योग भी बन रहा है। जो अपने आप में बेहद खास होगा। इस दिन चंद्रमा की स्थिति मिथुन राशि पर है। जिसका स्वामी बुध ग्रह है। वहीं बुधवार को अष्टमी तिथि मिल रही है इसलिए यह श्रेष्ठ योग बन रहा है। जो व्रत के फल को कई गुना वृद्धिकारक बनाएगा।

यह है व्रत का महत्व

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार संतान की लंबी आयु, आरोग्यता, खुशहाली, कल्याण के लिए रखा जाने वाला व्रत तीन दिन तक चलता है। व्रत विधान के अनुसार पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन निर्जला व्रत, तीसरे दिन पारणा किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से निसंतान महिला की कोख जल्द भर जाती है। उसे सामाजिक तानों से मुक्ति मिल जाती है।

यह है व्रत का विधान

बीएचयू के ज्योतिष विभाग के प्रो. विनय पांडेय के अनुसार व्रती महिलाओं को तिथि विशेष पर स्नान आदि से निवृत होकर संतान प्राप्ति व दीर्घायु का संकल्प लेकर निर्जला व्रत आरंभ करना चाहिए। उसके बाद शाम को पूजा स्थल पर गोबर से लेपकर जिमूतवाहन का कुश से प्रतिमा बनाना चाहिए। जल या मिट्टी के पात्र में पीला और लाल रूई अलंकृत करें। गाय के गोबर से चिल्हो (मादा चील) और सियारिन की मूर्ति बनाकर उसको लाल सिंदूर से विभूषित करें। उसके बाद पंचोपचार विधि से पूजन कर वंश वृद्धि और प्रगति की कामना करें। पूजन के बाद कथा का श्रवण करें। व्रत के तीसरे दिन ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा प्रदान कर व्रत का पारणा करें।

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