कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम होना मुश्किल, पुरानी इकाइयों को बंद करने की बढ़ाई गई है मियाद

कोयले के अभूतपूर्व संकट ने भले ही देशव्यापी हलचल पैदा की हैलेकिन बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए फिलहाल कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम होना मुश्किल है। इसमें भी ज्यादा हिस्सा कोयला आधारित बिजली का ही है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 05:28 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 05:28 PM (IST)
कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम होना मुश्किल, पुरानी इकाइयों को बंद करने की बढ़ाई गई है मियाद
बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए फिलहाल कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम होना मुश्किल है।

जागरण संवाददाता, सोनभद्र। कोयले के अभूतपूर्व संकट ने भले ही देशव्यापी हलचल पैदा की है,लेकिन बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए फिलहाल कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम होना मुश्किल है। कार्बन उत्सर्जन जैसी समस्याओं के बावजूद ग्रिड के स्थायित्व को देखते हुए कोयला आधारित बिजली पर ज्यादा जोर है। बढ़ती बिजली की मांग के साथ सभी घरों तक बिजली पंहुचाने के सरकार के वायदे को देखते हुए केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण देश में स्थापित क्षमता लगभग 3.49 लाख मेगावाट के सापेक्ष 4.28 लाख मेगावाट से ज्यादा नए उत्पादन बढ़ाने की योजना पर काम कर रहा है।

इसमें भी ज्यादा हिस्सा कोयला आधारित बिजली का ही है। खासकर कोल इंडिया द्वारा अपने उत्पादन में भारी वृद्धि की योजना से भी प्राधिकरण को मदद मिल रही है। इसी वर्ष पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कोयला बिजली घरों के लिए कड़े पर्यावरण मानकों को लागू करने की समय अवधि बढ़ाने के निर्देश भी कोयला पर निर्भरता के संकेत हैं। इस आदेश से ओबरा और अनपरा परियोजना सहित प्रदेश की कई पुरानी इकाइयों को कुछ वर्षों का जीवनदान मिल गया है। मंत्रालय द्वारा जारी पूर्व आदेश के तहत 25 वर्ष से ज्यादा पुरानी कोयला आधारित इकाइयों को 31 दिसंबर 2022 तक बंद करना था। नए आदेश में यह सीमा 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी गयी है।

यूपी को सबसे ज्यादा लाभ

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के नए आदेश का सबसे ज्यादा लाभ उत्तर प्रदेश को मिलेगा। 25 वर्ष से पुरानी इकाइयों को बंद करने की अवधि तीन वर्ष बढ़ाने से उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम की 17 इकाइयों को राहत मिली है। इनमें अनपरा की 210 मेगावाट की तीन, 500 मेगावाट की दो, ओबरा की 200 मेगावाट वाली पांच, परीछा की 110 मेगावाट की दो, 210 मेगावाट की दो, 250 मेगावाट की दो तथा हरदुआगंज की 110 मेगावाट की एक इकाई शामिल है। पर्यावरण सहित कुछ अन्य कारणों से ही पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश की सबसे पुरानी 21 इकाइयों को बंद किया जा चुका है। जिसमें ओबरा की 50 मेगावाट की पांच, 100 मेगावाट की तीन, पनकी की 32 मेगावाट वाली दो, 110 मेगावाट वाली दो, हरदुआगंज की 30 मेगावाट वाली तीन, 50 मेगावाट वाली दो, 55 मेगावाट वाली दो तथा 60 मेगावाट वाली दो इकाइयां शामिल है। इन इकाइयों के बायलर का नान रिहीट टाइप का बना होना इनके बंद होने का प्रमुख कारण साबित हुआ। नान रिहीट इकाइयों में कोयले की खपत ज्यादा होती है, जिससे प्रदूषण ज्यादा होने के साथ ऊर्जा ह्रास भी ज्यादा होता है।

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