प्रेरणास्रोत है पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जीवन, स्मारक ट्रस्ट रामपुर में आज किया जाएगा स्मरण

चंद्रशेखर स्मारक ट्रस्ट पर आठ जुलाई को समाजवादी विचारक व पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की 12वीं पुण्यतिथि को प्रेरणा दिवस के रूप में शारीरिक दूरी का पालन करते हुए मनाया जाएगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2020 08:10 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2020 09:39 AM (IST)
प्रेरणास्रोत है पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जीवन, स्मारक ट्रस्ट रामपुर में आज किया जाएगा स्मरण
प्रेरणास्रोत है पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जीवन, स्मारक ट्रस्ट रामपुर में आज किया जाएगा स्मरण

आजमगढ़, जेएनएन। समाजवादी विचारक, युवा तुर्क नेता पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का समूचा जीवन संघर्षों से भरा रहा है। साधारण परिवार में जन्म लेने के बाद प्रधानमंत्री जैसी महत्वपूर्ण कुर्सी तक पहुंचना उनके कुशल व्यक्तित्व का परिचायक है। आज देश में सत्ता के लिए जहां संघर्ष हो रहा है, लेकिन चंदशेखर ने सत्ता को त्‍यागकर संघर्षों का रास्ता चुना और इसी का परिणाम है कि लोकतंत्र जब तानाशाही की ओर चलती है तो चंद्रशेखर के संघर्षो की याद आती है।

उन्होंने समाजवादी आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए आचार्य नरेंद्रदेव, जयप्रकाश, लोहिया के विचारों को जन-जन तक पहुंचाया। चंद्रशेखर के बिना 70 के बाद भारतीय राजनीति का इतिहास अधूरा है। वह जो ठान लेते थे उस पर चलने से उन्हें कोई विरक्त नहीं कर सकता था। बेबाक वक्ता तथा अन्याय के विरुद्ध संघर्षों के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा। देश में इमरजेंसी के समय जब कोई कुछ बोलने का साहस नहीं कर रहा था उस समय कांग्रेसी हुकूमत की बगावत करके पूरे देश में चंद्रशेखर ने लोकप्रियता हासिल की। एक बार जब देश आरक्षण की आग में झुलस रहा था, नौजवान आत्मदाह कर रहे थे तो ऐसा लगता था कि देश बिखर जाएगा परंतु अपनी वाणी की शीतलता एवं अपनी कार्यकुशलता के बल पर धधकती आग को बुझाने का काम चंद्रशेखर ने किया।

चंद्रशेखर तीन बार राज्यसभा सदस्य एवं आठ बार लोकसभा सदस्य चुने गए और जीवन के अंतिम क्षणों तक अपराजित रहे। 1995 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद चुना गया। 1975 में इमरजेंसी लगने पर उन्होंने सरकार की घोर ङ्क्षनदा की तथा कांग्रेस छोड़कर जयप्रकाश नारायण के साथ हो गए। आंदोलन में सक्रियता के चलते उन्हें 18 माह 17 दिनों तक जेल में भी रहना पड़ा था। अपार दुख सहने के बाद भी उन्होंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया और 1983 में देश की गरीब जनता के दुख दर्द को करीब से समझने के लिए 6 जनवरी से 15 जून तक के दौरान उन्होंने कन्याकुमारी से राजघाट तक 4260 किलोमीटर की लंबी पदयात्रा की। क्षेत्र के चंद्रशेखर स्मारक ट्रस्ट पर आठ जुलाई को उनकी 12वीं पुण्यतिथि को प्रेरणा दिवस के रूप में शारीरिक दूरी का पालन करते हुए मनाया जाएगा।

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