Income Tax : फेसलेस स्कीम से व्यवस्था पारदर्शी, योजना का असर धरातल पर दिखा
आयकर विभाग में पारदर्शिता लाने और कार्यों को ऑनलाइन करने की योजना का असर अब धरातल पर दिखने लगा है। यहां चेहरे कम अब फाइलें ही ज्यादा दिखाई देती हैं। फेसलेस स्कीम से जहां व्यवस्था पारदर्शी हुई है वहीं विभाग की कार्यप्रणाली में भी बदलाव हुआ है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। आयकर विभाग में पारदर्शिता लाने और कार्यों को ऑनलाइन करने की योजना का असर अब धरातल पर दिखने लगा है। यहां चेहरे कम अब फाइलें ही ज्यादा दिखाई देती हैं। फेसलेस स्कीम से जहां व्यवस्था पारदर्शी हुई है वहीं विभाग की कार्यप्रणाली में भी बदलाव हुआ है। इससे व्यापारी अब सीए और कर अधिवक्ताओं पर निर्भर हो गए हैं।
ऑनलाइन व्यवस्था ने बढ़ाई मुश्किलें : ऑनलाइन व्यवस्था ने व्यापारियों की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। सबसे अधिक दिक्कत ऑनलाइन अपील में आ रही है। इसमें करदाताओं को अपना जवाब ऑनलाइन देना होता है। जवाब की फाइल पांच एमबी से अधिक नहीं होनी चाहिए। ऑनलाइन व्यवस्था में व्यापारी अपना पूरा पक्ष नहीं रख पा रहे हैं। इससे कर निर्धारण उनके खिलाफ हो जा रहा है। सीए और कर अधिवक्ता भी इस समस्या से व्यापारियों को निजात नहीं दिला पा रहे हैं। पक्ष रखने के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा तो उपलब्ध है लेकिन सर्वर की समस्या के कारण इसका लाभ व्यापारियों को नहीं ले पा रहे हैं।
बदली है विभाग की कार्यप्रणाली : आयकर विभाग की कार्यप्रणाली में भी बदलाव हुआ है। कार्यालयों में अधिकारी तो हैं लेकिन अलग-अलग क्षेत्र में बैठे अधिकारियों को रिपोर्ट करते हैं। विंग असेसमेंट, रिव्यू, ज्यूरिडिक्शन तथा सर्च कार्य अलग-अलग क्षेत्रों में बैठे अधिकारी कर रहे हैं। कर निर्धारण में अब प्रादेशिक क्षेत्राधिकार समाप्त हो गया है। किसी शहर का आयकर अधिकारी कर निर्धारण करता है तो दूसरे शहर का अधिकारी रिव्यू बनाता है। आइटीआर दाखिल करते ही इसकी कॉपी नेशनल सर्विस सेंटर में पहुंच जाती है। इसके बाद शुरू होती है फेसलेस असेसमेंट की प्रक्रिया। इसमें किसी दस्तावेज की आवश्यकता होने पर ऑनलाइन करदाता को स्क्रूटनी नोटिस भेजा जाता है। फिर असेसमेंट रिव्यू तैयार किया जाता है और इसकी समीक्षा की जाती है। एक शहर के रिव्यू का ड्राफ्ट दूसरे शहर में तैयार किया जाता है। वहीं इसकी समीक्षा दूसरे तो फाइनल तीसरे शहर में होता है।
क्या कहते हैं सीए : फेसलेस स्कीम से अब कर निर्धारण अधिकारी की पहचान नहीं होती है। पारदर्शिता जरूर बढ़ी है। लेकिन कर निर्धारण और अपील में जवाब देने में दिक्कत होती है। - फैजानुल्लाह सीए
आयकर में कागजात एक-दूसरे से लिंक रहते हैं। सामने बैठे अधिकारी को समझाया जा सकता है। उसके सवाल के जवाब में सम्बंधित प्रपत्र भी दिया जा सकता है। ऑनलाइन व्यवस्था में आयकर अधिकारी अपलोड कागजों के आधार पर अपना मन बना लेता है। जिसे बदलना मुश्किल होता है। व्यापारी भी टेक्नोलॉजी से अपग्रेड नहीं हैं।
- अमित राय, कर अधिवक्ता