बलिया के ददरी मेले में वर्ष 1884 में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने दिया था देशवासियों को 'भारत वर्षोन्‍नति' का मंत्र

वर्ष 1884 में भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा दिया गया भारतवर्षोन्नति का मंत्र उस मंच के साथ आज फिर जीवंत है। साल-दर-साल इस भारतेंदु मंच को सजा रहा ददरी मेला गौरवशाली परंपरा का संवाहक बन चुका है। 13 दिसंबर तक चलने वाला यह मेला कार्तिक पूर्णिमा के साथ शुरू हो चुका है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 23 Nov 2021 07:10 PM (IST) Updated:Tue, 23 Nov 2021 07:10 PM (IST)
बलिया के ददरी मेले में वर्ष 1884 में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने दिया था देशवासियों को 'भारत वर्षोन्‍नति' का मंत्र
ददरी मेला बलिया में गंगा और सरयू के मिलन का भी साक्षी है।

बलिया, जागरण संवाददाता। 'आज बड़े आनंद का दिन है। छोटे से नगर बलिया में हम इतने मनुष्यों को एक बड़े उत्साह से एक स्थान पर देख रहे हैं। इस अभागे-आलसी देश में जो कुछ हो जाए वही बहुत है। बनारस जैसे बड़े नगरों में जब कुछ नहीं होता तो हम यह यही कहेंगे कि बलिया में जो कुछ हमने देखा वह बहुत ही प्रशंसा के योग्य है...।' 

वर्ष 1884 में भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा दिया गया 'भारतवर्षोन्नति का मंत्र' उस मंच के साथ आज फिर जीवंत है। साल-दर-साल इस भारतेंदु मंच को सजा रहा ददरी मेला गौरवशाली परंपरा का संवाहक बन चुका है। 13 दिसंबर तक चलने वाला यह मेला कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के साथ ही शुरू हो चुका है। कोरोना के कारण एक साल स्थगित रहे इस मेले की रौनक देखने लायक है। मवेशियों के व्यापार के लिए तो देशभर में प्रसिद्ध इस मेले की महत्ता तब और बढ़ जाती है जब आधुनिक हिंदी के उन्नायक भारतेंदु हरिश्चंद्र के बलिया व्याख्यान' की याद दिलाने वाला ऐतिहासिक 'भारतेंदु कला मंच' सजता है। इस मंच पर देश के प्रमुख साहित्यकार पहुंचते हैं और भारतेंदु जी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए देश-समाज के हालात पर चर्चा करते हैं।

गंगा-सरयू के मिलन का साक्षी है ददरी मेला : ददरी मेला बलिया में गंगा और सरयू के मिलन का भी साक्षी है। 'भृगु क्षेत्र महात्म्य' पुस्तक में उल्लेख मिलता है कि महर्षि भृगु ने अपने शिष्य दर्दर मुनि द्वारा सरयू नदी की जलधारा को अयोध्या से लाकर बलिया में गंगा से संगम कराया था। यह संगम अब सिताबदियारा के बड़का बैजू टोला में होता है। मान्यता है कि भृगु क्षेत्र में गंगा-तमसा के संगम पर स्नान करने पर वही पुण्य प्राप्त होता है जो पुष्कर और नैमिषारण्य तीर्थ में वास करने, साठ हजार वर्षों तक काशी में तपस्या करने अथवा राष्ट्र धर्म के लिए रणभूमि में वीरगति प्राप्त करने से मिलता है। 

ये आयोजन लगाते हैं मेले में चार चांद : मुगल सम्राट अकबर के जमाने से 'मीना बाजार' यहां महिलाओं को श्रृंगार की सामग्री उपलब्‍ध कराता है तो वहीं चेतक प्रतियोगिता, भारतेंदु कला मंच पर दंगल, खेल, सत्संग, मुशायरा, कवि सम्मेलन, कव्वाली, ददरी महोत्सव भी इसमें चार चांद लगाते हैं। मेले में 600 से अधिक दुकानें सजती हैं। इनमें 450 से अधिक गैर जनपद के कारोबारियों की होती हैं। हरियाणा, पंजाब, बिहार, बंगाल तक के किसान और पशुपालक पशुधन बेचने और खरीदने यहां आते हैं।

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