वाराणसी में महाश्मशान की लूट और संक्रमण से बचने के लिए गांव के शवदाहगृहों पर लगी कतारें

कोरोना संक्रमण काल में लोगों को सिर्फ जीवन ही नजर नहीं आया बल्कि मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए गांव के ही शवदाहगृह नजर आने लगे हैं। महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट जहां मुक्ति के लिए आसपास के जिले ही नहीं बल्कि बिहार के लोग अंतिम संस्कार के लिए आते हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 22 Apr 2021 06:36 PM (IST) Updated:Thu, 22 Apr 2021 06:36 PM (IST)
वाराणसी में महाश्मशान की लूट और संक्रमण से बचने के लिए गांव के शवदाहगृहों पर लगी कतारें
वाराणसी में महाश्मशान की लूट और संक्रमण से बचने के लिए गांव के शवदाहगृहों पर कतारें लगी

वाराणसी [रवि पांडेय]। कोरोना संक्रमण काल में लोगों को सिर्फ जीवन ही नजर नहीं आया बल्कि मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए गांव के ही शवदाहगृह नजर आने लगे हैं। काशी का ऐतिहासिक महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट जहां मुक्ति के लिए आसपास के जिले ही नहीं बल्कि बिहार तक के लोग अंतिम संस्कार के लिए आते हैं। सत्यवादी और ईमानदार राजा हरिश्चंद्र के घाट पर कोरोना काल के मरने वाले परिवारीजनों से जिस तरह की लूट मची है उससे लोगों का मन विचलित हो जा रहा है।कोरोना संक्रमण के शव के नाम पर अंतिम संस्कार के 20 से 30 हजार तक लग रहे हैं।ऐसे समय में गांवों में बने शवदाहगृह लोगों के लिए काफी राहत बना है।रोहनिया क्षेत्र के बेटावर ,मुदादेव और लंका के रमना गांव में बने शवदाहगृह पर लाइन लगी हुई है।इन घाटों पर लोग अपने साधन ,मैजिक या एम्बुलेंस पर शवों के साथ लकड़ी लेकर पहुंच रहे हैं जहां मामूली खर्च में ही अंतिम संस्कार हो जा रहा है।

जहां कभी कभी जलती थी चिता वहां बुझ नही रही है चिता की आग

बेटावर गांव के रहने वाले लोगों का कहना है कि इस घाट पर शायद हफ्ते में कोई शव जलाने आता था लेकिन लगातार जल रही चिताओं ने दहशत का माहौल बना दिया है।गांव के लोगों ने कभी ऐसी भयावह स्थिति नहीं देखी थी।पिछले चार पांच दिनों से यहां 20 से 30 शवों को प्रतिदिन जलाया जा रहा है ।वैसे यह घाट बनारस ही नहीं पीपा पुल के कारण मिर्जापुर जिले को भी जोड़ दिया है।मुड़ादेव घाट पर भी प्रतिदिन 10 से ज्यादा शवों को जलाया जा रहा है।रमना गांव में बने शवदाहगृह का रास्ता बस्ती से होने के कारण यहां बाहरी कम जा रहे हैं लेकिन महीने में कभी चिताओं में आग लगने वाली जगह पर चार से पांच शव प्रतिदिन जलाए जा रहे हैं।

राहत के लिए ही मलहिया में बनाया गया अस्थायी शवदाह स्थल

अंतिम संस्कार करने आये परिवार वालों के साथ हो रही लूट और कई घंटे तक इंतजार से बचने के लिए ही प्रशासन की तरफ से मलहिया में गंगा किनारे अस्थायी शवदाह स्थल बनाया गया है जिसका ग्रामीणों ने संक्रमण के डर से विरोध भी किया।मलहिया में बने अस्थायी शवदाह स्थल पर भी फोर्स और नगर निगम की उपस्थिति में प्रतिदिन 20 से 25 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है।

जिले में मरने वालों की संख्या सैकड़ों लेकिन आंकड़े इकाई में

कोरोना संक्रमण काल में पहली बार इतने शवों का अंतिम संस्कार देख लोगों में डर का माहौल है।हर शख्स की जुबान पर एक ही सवाल है कि आखिर मरने वालों की संख्या सैकडों में हैं तो फिर मौत के आंकड़े इकाई तक ही सीमित कैसे हैं।जिले के सबसे बड़े महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर तो पूर्वांचल के शव आने से संक्या अक्सर ज्यादा रहती है लेकिन हरिश्चंद्र घाट पर आम दिनों में 8 से 10 शव आते थे जो आज 100 के ऊपर पहुंच गया है।यहां एम्बुलेंस से आने वाले शव भी 25 से कम नहीं हैं जो पीपीई किट में आ रहे हैं ।इसके अलावा अन्य गांवों में भी कोरोना के शव जला दिए जा रहे हैं फिर भी मौत का आंकड़ा लोगों की समझ से बाहर है।

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