प्रयागराज Kumbh में आजमगढ़ के ढोंढ़ से बनती है मड़ई, दूर-दराज से आते हैं खरीदार
आजमगढ़ में सगड़ी तहसील के उत्तर हिस्से में बहने वाली सरयू नदी हर साल यदि तबाही मचाती है तो उसके बाद आसपास के ग्रामीणों के लिए रोजी-रोटी का भी इंतजाम कर जाती है। इससे आम ग्रामीणों के अलावा मजदूर भी लाभांवित होते हैं।
आजमगढ़, जेएनएन। सगड़ी तहसील के उत्तर हिस्से में बहने वाली सरयू नदी हर साल यदि तबाही मचाती है तो उसके बाद आसपास के ग्रामीणों के लिए रोजी-रोटी का भी इंतजाम कर जाती है। इससे आम ग्रामीणों के अलावा मजदूर भी लाभांवित होते हैं। किसी का उजड़ा आशियाना बनता है तो किसी को नकदी प्राप्त होती है। बाढ़ के पानी में ही एक विशेष प्रकार की घास (ढोंढ़-कास या सरपत की तरह) उगती है और दीपावली के बाद उसे काटकर मंडई बनाने में प्रयोग किया जाता है।
सरयू किनारे के ब्लाक महराजगंज के लगभग 35 व हरैया के 69 गांव बाढ़ से प्रभावित होते हैं। फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है। शासन की ओर से सहायता तभी मिलती है जब उस गांव को लेखपाल व तहसीलदार पानी से घिरा हुआ घोषित करते हैं, लेकिन ग्रामीणों के घावों पर सही मायने में मरहम लगाने का कार्य घाघरा ही करती है। प्रकृति प्रदत्त ढोंढ़ की मांग क्षेत्र ही नहीं, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों में भी होती है, क्योंकि इससे बनी मंडई सरपत और कास से बेहतर होती है।
जिनकी जमीन में ढोंढ़ वही उसका मालिक
ढोंढ़ जिनकी जमीन में उगता है वही उसका मालिक होता है। कोई अपने प्रयोग में लेता है तो कोई उसे बेचकर धन प्राप्त कर लेता है। ग्राम सभा की भूमि में उगने वाली इस घास को काटने के लिए कुछ ग्राम पंचायतों द्वारा मजदूर लगाए जाते हैं। इसी बहाने गांव में ही मजदूरी मिल जाती है। बाहर भी इसकी मांग होने के कारण इसकी कीमत प्रति बंडल 30 से 60 रुपये तक होती है। कुछ बड़े व्यापारी खेत में खड़ी फसल ही खरीद लेते हैं और उसे कटवाकर अच्छी कीमत प्राप्त करते हैं।
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क्या कहते है ठेकेदार, प्रधान व किसान
ठेकेदार हरिश्चंद यादव ने बताया कि प्रतिवर्ष यहां ढोंढ़ ट्रक से प्रयागराज में लगने वाले कुंभ मेले में प्रयोग किया जाता है। प्रकृति प्रदत्त इस ढोंढ़ से क्षेत्र में हजारों किसान और मजदूर लाभांवित होते हैं।
ग्राम प्रधान दाममहुला रामसमुझ यादव ने बताया कि घाघरा नदी के किनारे उत्पन्न होने वाले ढोंढ़ से हजारों किसान व मजदूर लाभांवित होते हैं। ढोंढ़ बेचकर कई परिवारों की रोजी-रोटी चलती है।
किसान गिल्लू मद्धेशिया ने बताया कि अपने आशियाने का निर्माण करने के बाद बची हुई ढोंढ़ को बेचकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं।
ग्राम प्रधान सहबदिया पुल्लू सिंह पटेल ने बताया कि ग्राम समाज की जमीन में भी ढोंढ़ पैदा होता है, लेकिन गांव के गरीब किसान और मजदूर अपने आशियाना निर्माण के लिए उन्हें काट कर लाते हैं। नीलामी अब नहीं की जाती है।