संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में ऑडियो से करेंगे लुप्त ऋचाओं का संरक्षण, प्रथम चरण के लिए पहल शुरू

द की लुप्त हो रही शाखाओंकाे संरक्षित करने के लिए ‘श्रुतिनि स्वन’ नामक एक आडियो बनवाया जा रहा है। इसके तहत लुप्त हो रही वेद की शाखाओं व ऋचाओं की तलाश कर रिकार्डिंग कराया जा रहा है। इसे विश्वविद्यालय के फेसबुक यू-ट्यूब पेज पर भी अपलोड किया जाएगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sun, 16 May 2021 08:40 AM (IST) Updated:Sun, 16 May 2021 08:40 AM (IST)
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में ऑडियो से करेंगे लुप्त ऋचाओं का संरक्षण, प्रथम चरण के लिए पहल शुरू
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ने आडियो के माध्यम से सामवेद की राणायनीय शाखा को संरक्षित करने की पहल शुरू की है।

वाराणसी, जेएनएन। वेद मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। सनातन धर्म के सभी दर्शन, उपनिषद और पुराणों का मूल वेदों में निहित है। दुनिया की सबसे प्राचीनतम धर्म ग्रंथ होने केे बावजूद हम वेद संरक्षित नहीं कर सके हैं। यही कारण है कि वेद की हजारों शाखाएं लुप्त हो गई है। इसी तरह अब सामवेद की राणायनीय शाखा भी लुफ्त हो रही है। वर्तमान में इसकी ऋचाएं सिर्फ दक्षिण भारत के कर्नाटक (गोकर्णन) में देखने व सुनने को मिलती है। इसे देखते हुए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ने आडियो के माध्यम से सामवेद की राणायनीय शाखा को संरक्षित करने के लिए पहल शुरू की है।

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद कुल चारों वेद 1131 शाखाएं थी। सबसे अधिक 1000 शाखाएं सामवेद हैं। वहीं चाराें वेदों में वर्तमन में महज 12 शाखाएं ही बची है। सामवेद में कोथुमीय, जैमिनीय व राणायनीय तीन शाखाएं ही रह गई हैं। राणायनीय शाखा का भी अस्तित्व खतरे में हैं। उत्तर भारत में यह शाखाएं पूरी तरह से लुप्त हो चुकी थी। इसे देखते हुए कुलपति प्रो. राजा राम शुक्ल की पहल पर वेद विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. विजय कुमार शर्मा ने दक्षिण भारत के कर्नाटक (गोकर्णन) के संस्कृत के प्रकांड विद्वानों से संपर्क किया ताकि राणायनीय शाखा को उत्तर भारत में भी लाया जा सके। प्रथम चरण उन्होंने प्राचीन ग्रंथों के माध्यम से साम वेद के राणायनीय शाखा के 27 अध्यायों संरक्षित करने का संकल्प लिया। इसके तहत उन्होंने 1875 ऋचाओं को 12 घंटे के आडियो में समेटा गया है। इस प्रकार तकनीकी के माध्यम से वेद की शाखाओं को संरक्षित करने की रूपरेखा बनाई गई है। भविष्य से अन्य शाखाओं की पड़ताल कर आडियो में समटेने का प्रयास होगा। उनके इस कार्य में व्याकरण विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. ज्ञानेंद्र सापकोटा, ज्योतिष विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. राजा पाठक व डा. मधूसुदन मिश्र उल्लेखनीय सहयोग रहा है।

‘श्रुतिनि: स्वन:’ नामक एक आडियो बनवाया जा रहा है

वेद की लुप्त हो रही शाखाओंकाे संरक्षित करने के लिए ‘श्रुतिनि: स्वन:’ नामक एक आडियो बनवाया जा रहा है। इसके तहत लुप्त हो रही वेद की शाखाओं व ऋचाओं की तलाश कर रिकार्डिंग कराया जा रहा है। इसे विश्वविद्यालय के फेसबुक, यू-ट्यूब पेज पर भी अपलोड किया जाएगा। ताकि वह लंबे समय तक संरक्षित रह सके। इसके अलावा वेद की शाखाओं को पुस्तक का भी रूप दिया जाएगा। प्रथम चरण में ‘श्रुतिनि: स्वन:’ आडियो लगभग तैयार है। इसी माह में इसका लोकार्पण करने की योजना है।

-प्रो. राजाराम शुक्ल, कुलपति

chat bot
आपका साथी