मीरजापुर में मात्र 18 हजार रुपये में बने ऐतिहासिक धरोहर पर चढ़ी उपेक्षा की परतें

विंध्य क्षेत्र का ऐतिहासिक घंटाघर उपेक्षा का शिकार है। घंटाघर के शिखर पर लगी घड़ी की रफ्तार कब की थम चुकी है। ऐसे ही हालात रहे और धरोहरों पर चढ़ी उपेक्षा की परतों को नहीं हटाया गया तो आने वाली पीढ़ी धरोहरों को सिर्फ इतिहास के पन्नों पर देख सकेगी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sat, 24 Oct 2020 03:50 PM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 03:50 PM (IST)
मीरजापुर में मात्र 18 हजार रुपये में बने ऐतिहासिक धरोहर पर चढ़ी उपेक्षा की परतें
मीरजापुर के विंध्य क्षेत्र में करीब दो सौ वर्ष पूर्व घंटाघर का निर्माण किया गया था।

मीरजापुर , जेएनएन। विंध्य क्षेत्र का ऐतिहासिक घंटाघर उपेक्षा का शिकार है। घंटाघर के शिखर पर लगी घड़ी की रफ्तार कब की थम चुकी है। वर्षों से लोगों को घड़ी की सुइयां चलती नहीं दिख सकी है। कभी सैकड़ों लोगों को घंटाघर से ही समय की जानकारी हो पाती थी। कारण यह था कि तब घड़ी सिर्फ रइसों के पास ही हुआ करती थी। ऐसे में आम लोगों को समय की जानकारी घंटाघर में लगी घड़ी से ही हो पाती थी। उस समय काफी दूर तक घड़ी की मीठी आवाज सुनाई पड़ती थी। अब घंटाघर अपने अस्तित्व से जूझता नजर आ रहा है। ऐसे ही हालात रहे और धरोहरों पर चढ़ी उपेक्षा की परतों को नहीं हटाया गया तो आने वाली पीढ़ी धरोहरों को सिर्फ इतिहास के पन्नों पर देख सकेगी।

नगर पालिका अध्यक्ष मनोज जायसवाल ने पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ऐतिहासिक घंटाघर का विकास कराने व म्यूजियम बनवाने के लिए पर्यटन एवं सांस्कृतिक राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रहलाद सिंह पटेल को पत्र लिखा है। कहा कि गुलाबी देशी पत्थरों पर की गई अद्भुत महीन नक्काशियों से बने घंटाघर जैसी विशाल इमारत कहीं और देखने को नहीं मिलती। इस कलात्मक घंटाघर को बनाने में यहां के कारीगरों ने अपनी कारीगरी का बखूबी इस्तेमाल किया है। जो वाकई काबिले तारीफ है। ऐसी दुर्लभ नक्काशियां कम ही देखने को मिलती हैं। फिलहाल यह इमारत इस वक्त नगर पालिका की अभिरक्षा में है। नपा अध्यक्ष ने कहा कि यदि इस इमारत का उचित तरीके से विकास कराया जाए तो पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। लोगों का भी कहना है कि यदि घंटाघर को म्यूजियम बनाया जाता है तो यह पग जनता के हित में होगा।

मात्र 18 हजार रुपये में बना है घंटाघर

करीब दो सौ वर्ष पूर्व घंटाघर का निर्माण हुआ था। इसके निर्माण की तिथि घंटाघर के आखिर मंजिल की खिड़कियों पर अंकित है। उस समय इसके निर्माण में 18 हजार रुपये खर्च आए थे। सबसे खास इस इमारत की घड़ी है जिसे मीरजापुर की धड़कन कहा जाता था। इसकी मीठी आवाज नगर के चारों ओर सुनाई पड़ती थी और लोगों को समय पता चलता था। खास बात यह है कि घड़ी गुरुत्वाकर्षण बल से चलती है। ऐसी टेक्नोलाजी आज के समय में असंभव है।

समृद्ध धरोहर की कहानी बयां कर रहा घंटाघर

ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से घंटाघर समृद्ध धरोहर की कहानी बयां कर रहा है लेकिन इस धरोहर को प्रशासनिक उपेक्षा की नजर लगी हुई है। लोगों का कहना है कि ऐतिहासिक घंटाघर को पर्यटन विभाग अपने संरक्षण में ले ले और सही तरीके से विकास हो तो घंटाघर की सुंदरता और बढ़ जाएगी। कहा कि यदि घंटाघर को म्यूजियम बनाया जाता है तो यह पग जनता के हित में होगा। ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इसका संरक्षण बेहद जरूरी है।

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