IIT-BHU के वैज्ञानिक ने फसल अवशेष से बनाया सबसे शुद्ध हाइड्रोजन, हजारों वर्षों के चक्र को 36 घंटे में समेटा

आइआइटी-बीएचयू में सेरामिक इंजीनयरिंग विभाग के वैज्ञानिक डा. प्रीतम सिंह ने फसलों के अवशेष (पराली-पुआल गेहूं गन्ने का छिलका और काष्ठ अवशेष आदि) से दुनिया का सबसे शुद्ध हाइड्रोजन बनाया है। एनटीपीसी को डा. प्रीतम 600 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से हाइड्रोजन बेच रहे हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 24 Feb 2021 06:30 AM (IST) Updated:Wed, 24 Feb 2021 09:11 PM (IST)
IIT-BHU के वैज्ञानिक ने फसल अवशेष से बनाया सबसे शुद्ध हाइड्रोजन, हजारों वर्षों के चक्र को 36 घंटे में समेटा
आइआइटी-बीएचयू में सेरामिक इंजीनयरिंग विभाग के वैज्ञानिक ने फसलों के अवशेष से दुनिया का सबसे शुद्ध हाइड्रोजन बनाया है।

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। आइआइटी-बीएचयू में सेरामिक इंजीनयरिंग विभाग के वैज्ञानिक डा. प्रीतम सिंह ने फसलों के अवशेष (पराली-पुआल, गेहूं, गन्ने का छिलका और काष्ठ अवशेष आदि) से दुनिया का सबसे शुद्ध हाइड्रोजन बनाया है। 99.99 फीसद तक शुद्ध इस हाइड्रोजन की ऊर्जा क्षमता सेटेलाइट प्रक्षेपण में सहायक यान जियोस्टेशनरी सेटेलाइट लांच व्हीकल (जीएसएलवी) के ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले हाइड्रोजन जितनी है।
डा प्रीतम ने थर्मल एसॉर्टेड एनारोबिक डाइजेशन (टाड) तकनीक की मदद से मीरजापुर के चुनार में चार रिएक्टर बनाए हैैं और एनटीपीसी बरौनी व मुजफ्फरपुर हर सप्ताह 140 किलोग्राम हाइड्रोजन प्रति सप्ताह खरीद रही हैं। एनटीपीसी सोनभद्र के साथ भी बातचीत चल रही है। एनटीपीसी को डा. प्रीतम 600 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से हाइड्रोजन बेच रहे हैं, जबकि वैश्विक बाजार में इसकी कीमत 2100-2400 रुपये प्रति किलोग्राम है। इजरायल व अमेरिकी कंपनियों ने भी डा. प्रीतम से हाइड्रोजन खरीदने की इच्छा जताई है। इसके अलावा रिएक्टर में मीथेन (एलएनजी-तरलीकृत प्राकृतिक गैस व सीएनजी-संपीडित प्राकृतिक गैस) और विश्व की सबसे उच्च ईंधन क्षमता वाले कोयले का उत्पादन भी हो रहा है।


हजारों वर्षों के चक्र को 36 घंटे में समेटा
धरती के भीतर दबे जीवाश्म को ईंधन बनने में हजारों साल का समय लगता है। टाड तकनीक की मदद से डा प्रीतम ने इस चक्र को 36 घंटे में समेट दिया है। इस तकनीक में लकड़ी को जलाया नहीं जाता, बल्कि उसकी पूरी गैस निकाल ली जाती है। एक बार में रिएक्टर में 1500-2000 किलोग्राम बायोमास डाला जाता है। रिएक्टर में ताप बढ़ते ही सबसे पहले पहले कार्बन व आक्सीजन के बांड टूटते हैैं। इससे कार्बन डाइआक्साइड गैस निकलती है, जिसे एक चैैंबर में इकट्ठा कर लिया जाता है। इसी क्रम में हाइड्रोजन टूटता है और कार्बन के साथ क्रिया करके मीथेन बनाता है। तापमान जब थोड़ा और बढ़ाया जाता है तो सबसे शुद्ध हाइड्रोजन मिलती है। इसे एक क्रायो स्टोरेज(बेहद निम्न तापमान पर संपीडित करके रखना) टैंक में इकट्ठा कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में कुल 36 घंटे लगते हैैं। सबसे आखिर में बचता है शून्य कार्बन उत्सर्जन वाला बेहद शुद्ध कोयला। भारत में सबसे उच्च कोटि का कोयला एंथ्रेसाइट (85 फीसद कार्बन) है। रिएक्टर से प्राप्त कोयले की गुणवत्ता एंथ्रेसाइट से दो गुना अधिक बेहतर है।


नोबल विजेता के साथ किया है काम
अमेरिका की यूनिवर्सिटी आफ टेक्सास में केमेस्ट्री के नोबेल विजेता प्रो. जान.बी. गुडइनफ के साथ सोडियम आयन बैटरी पर शोध करके डा. प्रीतम 2016 में भारत लौटे। आइआइटी-बीएचयू में अध्यापन करते हुए 2018 में गुडइनफ और इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस (आइआइएससी), बेंगलुरु के डा. शिवा कोंडा के साथ बीजल ग्रीन एनर्जी कंपनी बनाई। इसस पहले वर्ष 2004-11 तक आइआइएससी से पोस्ट ग्रेजुएशन और डा. एमएस हेगड़े के मार्गदर्शन में पीएचडी की। इस दौरान ही उन्होंने हाइड्रोजन की इस तकनीक पर कार्य किया।

 

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