विश्‍व मधुमे‍ह दिवस 2021 : डायबिटीज के तीन प्रमुख प्रकारों को इस तरह से पहचान कर पाएं निदान

प्रमेह का मुख्य कारण है वह है जीवन शैली में व्यायाम की कमी और अधिक गुरु स्निगध और मधुर भोजन का आवश्‍यकता से अधिक सेवन। आनुवांशिक कारणों से भी प्रमेह का रोग होने की संभावना बढ़ती है। इस रोग में अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sat, 13 Nov 2021 07:09 PM (IST) Updated:Sat, 13 Nov 2021 07:09 PM (IST)
विश्‍व मधुमे‍ह दिवस 2021 : डायबिटीज के तीन प्रमुख प्रकारों को इस तरह से पहचान कर पाएं निदान
आनुवांशिक कारणों से भी प्रमेह का रोग होने की संभावना बढ़ती है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। डायबिटीज यानी मधुमेह या प्रमेह चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक रक्त में शर्करा का स्तर अधिक बना रहता है। इस रोग को आयुर्वेद में महारोग भी कहा जाता है क्योंकि इस रोग में शरीर के हर अंग-प्रत्यंग और शरीर की हर कोशिका पर बुरा प्रभाव पड़ता है| आयुर्वेद के अनुसार प्रमेह के 20 प्रकार होते हैं जिसमें से 10 प्रकार कफ की विकृति से उत्पन्न होते हैं, छह पित्त की विकृति से एवम 4 वात दोष की विकृति से उत्पन्न होते हैं।

प्रमेह का जो मुख्य कारण है वह है जीवन शैली में व्यायाम की कमी और अधिक गुरु, स्निगध और मधुर भोजन का आवश्‍यकता से अधिक सेवन। आनुवांशिक कारणों से भी प्रमेह का रोग होने की संभावना बढ़ती है | इस रोग में अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है तथा शरीर की कोशिकायें इस इंसुलिन को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाती है जिससे शर्करा का स्तर लगातार बढ़ता चला जाता है। इस रोग का समय पर इलाज नहीं करने पर आंखों की रोशनी पर बुरा प्रभाव पड़ता है, उच्च रक्तचाप हो जाता है और किडनी पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

मधुमेह कितने प्रकार के होते हैं?

1. टाइप 1 मधुमेह – इसमें अग्न्याशय ग्रंथि पर्याप्त मात्र में इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है।

2. टाइप 2 मधुमेह – यह इंसुलिन प्रतिरोध से शुरू होता है, एक हालत जिसमें कोशिका इंसुलिन को ठीक से ग्रहण करने में विफल होती है।

3. गर्भावधि मधुमेह - इसका तीसरा मुख्य रूप है| इसमें बिना किसी कारन के गर्भवती महिलाओं को रक्त शर्करा के स्तर बढ़ा होता है।

मधुमेह का प्रमुख कारण –

क. अनुवांशिक

ख. मोटापा

ग. शारीरिक श्रम का अभाव

घ. अधिक देर तक सोना और आलस

ङ. अत्यधिक मीठे और वसायुक्त आहार का सेवन

च. तनाव, शोक, क्रोध आदि मानसिक कारण

मुझे कैसे पता चलेगा मधुमेह है या नहीं ?

निम्न लक्षण मधुमेह के शुरूआती लक्षण हैं| इन लक्षणों के उत्पन्न होते ही चिकित्सक से मिलकर स्वस्थ्य और रक्त शर्कर की जांच कराये -

क. अत्यधिक प्यास लगना

ख. अत्यधिक भूख लगना

ग. नजर का धुंधलापन

घ. बार-बार मूत्र त्याग (जब रात में आपको 3 बार या उससे ज्यादा उठना पड़े)

ङ. थकान (खासकर खाना खाने के बाद) एवं चिड़चिडापन

च. घाव न भर रहे हों या धीरे-धीरे भरें

क्या है आयुर्वेद मे मधुमेह का उपचार ?

आयुर्वेद में प्रमेह रोग उपचार में विभिन्न पहलूओ पर ध्यान देना पड़ता है , जिनमें शारीरिक व्यायाम, योग , पथ्य आहार एवं विहार , पंचकर्म एवम औषधि का प्रयोग महत्वपूर्ण हैं. इस रोग के उपचार में प्रायः तिक्त, कषाय व कटु औषधियों का प्रयोग किया जाता है | इनसे कफ आदि दोषों का शमन होता है तथा मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिलती है | निम्न औशधियो एवं आहार विहार का प्रयोग कर हम इसपर काबू पा सकते है -

औषधियों द्वारा उपचार -

• विजयसार - इस औषधि के त्वचा का रस तिक्त और कषाय है एवं कटु विपाक और शीत वीर्य है जो प्रमेह के उपचार में अति लाभदायक है।

• जामुन बीज चूर्ण :- जामुन के सूखे हुए बीजों का चूर्ण दिन में 2-3 बार पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है.

• गुडमार पत्र चूर्ण - एक चम्मच गुडमार के सूखे पत्तों का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लेने से रोग के उपचार मी लाभ मिलता है।

• न्यगरोधात्वक चूर्ण - बरगद के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से भी इस रोग मेी सुधार आता है।

• शिलाजीत – यह कफज रोगो एवं प्रमेह बहुत ही उत्तम बताया है | यह एक रसायन औषधि है जो मधुमेह के कारण उत्पन्न कमज़ोरी को नियंत्रित करने में बहुत सहायक है।

• मेथी दाना - एक चम्मच मेथी के दाने गिलास पानी में रात भर भिगोकर रखकर सुबह में उनका पानी पीना चाहिए।

• करेले का रस - 20 मिली करेले का जूस हर रोज़ सुबह लेने से रोगी को लाभ मिलता है।

• आमला - 20 मिली ताज़ा अमला का जूस या ३ से ५ ग्राम चूर्ण प्रतिदिन लेने से रोग में निश्चित लाभ मिलता है।

• हरिद्रा (हल्दी) (Curcuma longa): हल्दी का सेवन अमला के रस के साथ अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। हल्दी को दूध के साथ भी सेवन कर सकते हैं।

• इसके अलावा वसंतकुसुमाकर रस, शिलाजत्वादी वटी, प्रमेहगज केसरी रस, चन्द्रप्रभा वटी, हरिशंकर रस आदि शास्त्रोक्त औशादियो का प्रयोग करके मधुमेह पर विजय पायी जा सकती है। 

आहार विहार एवं योग द्वारा उपचार –

• ऐसा कच्चा भोजन अधिक मात्र में खाए जिनमें फाइबर अधिक अधिक होता है , इससे शरीर में ब्लड शुगर का लेवल संतुलित रहता है।

• अपने चिकित्सक से मिलकर अपना डाइट चार्ट प्लान बनाकर उसके अनुसार आहार ले | केवल आहार संतुलित मात्र में लेकर भी बिना औषधियों के रक्त शर्करा को नियंत्रित कर सकते है।

• एक बार में बहुत सारा खाना खाने की बजाय धीरे-धीरे व थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।

• खाना समय पर और रात को सोने से एक घंटा पहले ज़रूर खायें और रात के खाने के बाद जरुर टहलना चाहिए|

• किसी भी प्रकार का शारीरिक व्यायाम अथवा योगासन इस रोग के उपचार में सहायक हैं. योगासनों को योगचार्य के दिशानिर्देश में ही करें।

• प्राणायाम जब नित्य रूप से किए जायें तो प्रमेह के उपचार में बहुत सहायता मिलती हैं।

• रोगी को दिन में शयन नही करना चाहिए।

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