पूरी सदी ही बन गई सवाली, आखिर मुंशी प्रेमचंद्र के अमर किरदार 'मैकू' के घर कैसे मने दिवाली!

दीवाली दर दीवाली बीतती गई मगर अमर कथा के असल किरदार का वह कुनबा आज भी दीनहीन है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 22 Oct 2019 09:30 PM (IST) Updated:Wed, 23 Oct 2019 06:15 PM (IST)
पूरी सदी ही बन गई सवाली, आखिर मुंशी प्रेमचंद्र के अमर किरदार 'मैकू' के घर कैसे मने दिवाली!
पूरी सदी ही बन गई सवाली, आखिर मुंशी प्रेमचंद्र के अमर किरदार 'मैकू' के घर कैसे मने दिवाली!

वाराणसी [अभिषेक शर्मा]। यह खबर नहीं बल्कि एक सदी की मुकम्मल दास्तान है उस अमर कथा के किरदार की जिसकी कहानी में सदी भर बाद भी दीवाली रोशन होने से इनकार कर रही है। दीवाली दर दीवाली बीतती गई मगर अमर कथा के असल किरदार का वह कुनबा आज भी दीनहीन है। जी हां, बात हो रही है उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के अमर किरदार 'मैकू' की। जिनका परिवार आज भी एक सदी पुराने हालातों के बीच दूसरों के घर रोशन करने में व्यस्त है।

मुंशी प्रेमचंद की लमही में रचा गया मैकू का वह किरदार इस तरह अमरत्व को प्राप्त हुआ कि एक उम्र के साहित्य प्रेमियों के बीच 'मैकू' काशी की छवि का ही पर्याय बन गया। अमूमन कहानियों में किरदार काल्पनिक होते रहे हैं मगर मुंशी जी की सफल साहित्य साधना में जमीन से जुड़े किरदारों ने चार चांद लगाए और साहित्य की दुनिया में वह आज भी दैदीप्यमान हैं। मगर मुंशी जी की सफलता में शामिल आम जनता के इन सत्य किरदारों की आज भी वही जमीनी हकीकत है जो अमर कृतियों में दशकों पहले रही है। साहित्य प्रेमियों के बीच प्रेमचंद जितना पहचान रखते हैं उससे कम पहचान मैकू की भी नहीं है।

परंपराओं के अनुसार दीपावली पर अमावस की रात जब भगवान राम अयोध्‍या लौटे तो उनके आगमन की खुशी में लोगों ने माटी के दीये में देसी घी को ईंधन बनाकर रोशनी की थी। समय के साथ माटी के दीयों की त्रेतायुगीन यह परंपरा दम तोड़ती जा रही है। दीपावली पर वैसे तो बाजार में रौनक रहती है अौर आज दीपावली में लोग डिजाइनर दीये तक ऑनलाइन लोग मंगाने लगे हैं। वहीं घरों में रोशनी भी होती है तो चाइनीज झालरों या मोमबत्तियों से जो कि गैर परंपरागत है। मगर लोग भूल जाते हैं कि इस दीवाली पर्यावरण की सुरक्षा के लिए मैकू जैसे लाखों कुनबे माटी के दिये बनाकर परंपरागत दीवाली के लिए मेहनत करते हैं।

नहीं बदले घर के हालात

सुबह से घर में चहल पहल है, आखिर हो भी क्यों न दीवाली पर दीयों से दूसरों का घर भी जो रोशन करना है। रात से ही भीगी मिट्टी अब दीयों को आकार देने के लिए तैयार है और तैयार है मैकू की तीसरी पीढ़ी भी। वर्ष 2011 में मैकू के निधन के बाद से परिवार की धुरी अब भी सौ वर्ष से अधिक उम्र की मैकू की पत्नी 'कलावती' के हाथ में है। बीए तीसरे साल की पढ़ाई कर रही मैकू की पोती मधु चाक की गति बढ़ाती है तो कलावती का निर्देश भी सुनते और गुनते एक-एक कर दीयों को सधे हाथों से आकार देती है। क्या ये ई कामर्स प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध होंगे? सवाल पर मधु बोल उठती है - 'लोकल मार्केट में बिक जाए गनीमत है, चाइना के उत्पादों के बीच माटी का दीया जले तो भी इस दीवाली मुस्कुराने की वजह हम गरीबों को मिल जाएगी।

किरदार का ऐसे हुआ जन्म

वर्ष 1936 में कुंभकारी से जुड़े मैकू प्रजापति को नदेसर क्षेत्र में शराबी ने साइकिल से टक्कर मार दी और शराबियों के उत्पात पर मैकू का सहज आक्रोश देख मुंशी प्रेमचंद को अमर किरदार का नायक मिला था। वहीं से मुंशी जी मैकू को लेकर रामकटोरा स्थित सरस्वती प्रेस गए और काम भी दिया। प्रेस बंद होने के बाद दोबारा कुंभकारी से जुड़ गए और आज भी उनकी तीसरी पीढ़ी इसी से रोजी रोटी चला रही है।

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