जयप्रकाश नारायण का गांव जहां देश में समाजवाद की विचारधारा ने लिया था जन्म Ballia news
बलिया के अंतिम छोर पर स्थित गंगा और घाघरा दो नदियों के बीच की धरती को बहुत पहले द्वाबा नाम मिला।
बलिया [लवकुश सिंह]। बलिया के अंतिम छोर पर स्थित गंगा और घाघरा दो नदियों के बीच की धरती को बहुत पहले द्वाबा नाम मिला। नए परिसीमन के बाद से वही द्वाबा बैरिया विधान सभा के नाम से सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हो गया। सभी कहते हैं समाजवाद की असल खुश्बू जेपी रुप में इसी धरती से निकली और पूरे देश में अपना सुगंध बिखेरने लगी। द्वाबा का सिताबदियारा, जयप्रकाशनगर वह स्थान है जहां संपूर्ण क्रांति आंदोलन के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जन्म लिया और देश को एक नई दिशा दी। समाजवाद व सर्वोदय शब्द को भी जेपी ने ही सही रुप से परिभाषित किया। आचार्य विनोबा सहित देश के कई महापुरुषों की यादें आज भी इस गांव में कैद हैं, लेकिन दुखद कि आज तक इस गांव को पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिला। जेपी के नाम पर तो वहां बहुत कुछ है लेकिन सभी सुविधाएं रोते हाल में हैं।
जी हां! आप सही सही समझ रहे हैं मै उसी लोकनायक जयप्रकाश नारायण के गांव जयप्रकाशनगर, सिताबदियारा की बात कर रहा हूं जो आजादी की जंग तो लड़े ही, आजाद देश में भी पनपती तानाशाही के विरुद्ध 75 वर्ष की अवस्था में भी उन्हें मैदान संभालना पड़ा। उनके सार्थक प्रयोगों का ही नतीजा रहा कि 1977 में सत्ता परिवर्तन भी हुआ था। यह बात अलग है कि उनकी मर्जी की सरकार बनने के बाद भी उनके अनुयायी उसी राह पर चलने लगे जिसके मुखालफत में 1974 में देश भर में आंदोलन चला था। उसी जेपी की विरासत को संजोने में देश में कोई नाम आता है तो वह हैं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर।
जिन्होंने जेपी के गांव सिताबदियारा के जयप्रकाशनगर को तीर्थ मानकर जेपी के पैतृक निवास के बगल में जयप्रकाश नारायण स्मारक प्रतिष्ठान का निर्माण 1986 में कराया। जेपी के गांव जाने के लिए बीएसटी बांध वाली सड़क का निर्माण भी 1982 में पूर्ण कराया। उससे पहले जेपी के गांव में आवागमन के कोई साधन नहीं थे। लोग पैदल ही टोला शिवनराय से गाड़ी पकड़कर बैरिया या बलिया जाते थे या फिर नाव से घाघरा और गंगा को पार कर छपरा और आरा जाते थे। अब सुविधाएं बढ़ चुकी हैं। इस गांव से अब लगभग 150 वाहन बैरिया, छपरा, बकुल्हा और पटना के लिए चलते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के निधन के बाद भी जेपी निवास से लेकर स्मारक और परिसर उचित देखभाल से पहले से भी बेहतर हाल में हैं। यहां के सचिव रविशंकर सिंह पप्पू के बदौलत वहां की हरियाली, दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों को देख हर किसी का मन यूं ही खींचे चला जाता है। स्मारक के बगल में जेपी नारायण ग्रामीण प्रौद्योगिकी केंद्र की स्थापना है, जहां विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिए जाते हैं। पांच हजार से भी ज्यादा पुस्तकों का संग्रह रखने वाला प्रभावती पुस्तकालय भी जयप्रकाशनगर में मौजूद है जहां कई महापुरुषों द्वारा लिखित पुस्तकें मौजूद हैं। लेकिन नहीं है तो पर्यटन स्थल की मान्यता।
सबने टेका मत्था, लेकिन बाद में बिसरा दिया
यह समय का चक्र कहा जाएगा। कभी दिल्ली की सरकार के लिए बलिया की सीमा में पडऩे वाला जयप्रकाशनगर का जेपी निवास खास था। जेपी जयंती पर संपूर्ण दिल्ली जयप्रकाशनगर में ही जमा होती थी, लेकिन अब जेपी के नाम पर सियासी राजनीति ने करवट ले लिया है। जेपी के जीवन काल में ही बना जेपी निवास अब केंद्र सरकार के खरा पूरी तरह उपेक्षित कर दिया गया है। केंद्र सरकार की नजरों में अब जेपी मतलब बिहार, ही रच बस गया है। यह स्थिति वर्ष 2010 से पहले नहीं थी। वर्ष 2001 से 2003 तक के जेपी जयंती समारोह पर ही हम गौर करें तो वर्ष 2002 और 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के नेतृत्व में यहां जेपी जन्म शताब्दी समारोह का आयोजन था। तब के समय में उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत से लेकर, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी, डा. मुरली मनोहर जोशी, जगमोहन, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, मुलायम ङ्क्षसह यादव, गोविंदाचार्य, सुष्मा स्वराज, राजनाथ सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित दर्जनों कदावर लोगों ने जयप्रकाश नगर में ही जेपी की प्रतिमा पर अपना मत्था टेका था। यह क्रम लगातार जारी था, तभी चंद्रशेखर चल बसे, और केंद्र सरकार का नाता भी इस स्थान से खत्म हो गया।
जेपी के पैतृक घर को चंद्रशेखर ने दी सुंदरता
जेपी ने अपने जीवन काल में ही जयप्रकाशनगर में अपना नया मकान बनवााए थे। यह मकान 1952 में बनकर पूरी तरह तैयार हो गया। वर्ष 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रयासों से यहां जेपी स्मारक ट्रस्ट के तहत विशाल जेपी स्मारक का निमार्ण कराया गया। कहते हैं इस ट्रस्ट के निमार्ण के समय खुद चंद्रशेखर जी खड़ा होकर एक-एक कार्य कराते थे। यहां जेपी के निवास को उसी हाल में छोड़ दिया गया है। केवल उसकी मरम्मत की जाती है, आज भी जेपी का सबकुछ यहां बेहतर तरीके से संजो कर रखा गया है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रयासों से ही केंद्रीय पर्यटन मंत्री जगमोहन ने इसे पूरी तरह सजाने का जिम्मा लिया। तब से यह स्मारक सारे देश में अलग स्थान रखता है। इतना ही नहीं, इसी स्थान पर जेपी की एक-एक निशानी उनके निजी कमरे में सजा कर रखी गई हैं। जहां घूमने के लिए हर दिन सैकड़ो लोग आते हैं।
नीतीश व मोदी ने बिहार में दी बड़ी सौगात
बिहार सीमा के सिताबदियारा का लाला टोला 14 फरवरी 2010 से पहले कोई खास चर्चा में नहीं था। इससे पहले इस गांव को लोग सिर्फ इतना ही जानते थे कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण का यही गांव है। इस गांव की तकदीर बदलनी शुरू हुई 14 फरवरी 2010 से। इसी दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी बिहार विकास यात्रा की शुरूआत करने सिताबदियारा आए थे। तभी लोगों की जिद पर उन्होंने लाला टोला को करीब से देखा और वहां जेपी संग्रहालय की घोषणा कर दी। इसके बाद केंद्र सरकार ने भी लाला टोला में 25 जून 2015 को राष्ट्रीय म्यूज्यिम कांप्लेक्स बनाने की घोषणा की। अब दोनों संग्रहालयों का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। बिहार सीमा के इस राष्ट्रीय स्मारक में शोध अध्ययन केंद्र, ध्वज निमार्ण व कांफ्रेंस हाल भी बना है। वहीं यूपी सीमा के जयप्रकाशनगर में अब सबकुछ खुद के बदौलत ही करना है।
सरकारी उदासीनता से लचर हाल में सभी सुविधाएं
यूपी में जेपी की धरती पर सरकारी उदासीनता से लगभग सुविधाएं भी मृत समान हो चली हैं। जयप्रकाशनगर में जेपी के नाम पर स्थापित प्रभावती देवी राजकीय बालिका इंटर कालेज जिसे साइंस से मान्यता प्राप्त है। सात सौ की संख्या में छात्राएं भी हैं लेकिन वहां मात्र प्रभारी प्रधानाचार्या के रुप एक शिक्षिका की तैनाती है। वही हाल यहां के अस्पताल का भी है। कहने को तो यह सीएचसी है लेकिन अस्पताल में सुविधाओं के नाम पर कुछ भी हैं। पानी टंकी है तो वह पूरे नगर को लगातार दो घंटे भी जल उपलब्ध नहीं करा पाता। गांव की सड़कें भी बिखरी पड़ी हैं।
जेपी के गांव के लाइफ लाइन सबसे ज्यादा बदहाल
अब सिताबदियारा में यूपी-बिहार दोनों सीमा में एक-एक राष्ट्रीय स्तर के जेपी स्मारक हैं। एक जयप्रकाशनगर तो दूसरा सिताबदियारा के लाला टोला में। सिताबदियारा में चाहे बिहार में वाले हिस्से में जाना हो या यूपी वाले हिस्से के गांवों में, इसके लिए मात्र एक लाइफ लाइन बीएसटी बांध वाली पतली सड़क है। यह सड़क चौड़ी करण की आस में ही अब बूढ़ी हो चली है। हालात तो ऐसे हो चले हैं कि सिताबदियारा जयप्रकाशनगर जाने वाले शोधकर्ताओं की कहानी जेपी उखड़ी सड़क के हिचकोले में ही पूरी हो जाती है। इस सड़क को लेकर बहुत से लोग सवाल उठाते हैं कि जब दोनों तरफ जेपी के नाम पर इतना बड़ा स्मारक बना है तो वहां पहुंचने के लिए ऐसी सड़क क्यों।
घूमने के लिए हैं यहां हैं कई स्थान
सिताबदयारा में पर्यटकों के घूमने के लिए यहां कई स्थान हैं जो सभी को काफी पसंद आते हैं। जयप्रकाशनगर में जेपी निवास, पुस्तकालय, चंद्रशेखर वाटिका, गेस्ट हाउस, जेपी संग्रहालय, जेपी के बेड से लेकर उनका व्यक्तिगत सबकुछ। इसी तरह अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कृपा से बिहार वाले सीमा के लाला टोला में बने जेपी म्यूजिम कांपलेक्स सहित और भी देखने लायक बहुत कुछ है। गंगा व घाघरा नदी का संगम भी इसी गांव में होता है। इसके अलावा आप इसी गांव में पड़ताल कर सकते हैं यूपी-बिहार सरकार की उन तमाम योजनाओं का भी कि किस ओर कौन सी योजना बेहतर हाल में है और किस ओर बदतर।