Holi 2022 : काशी में 18 और देश में 19 मार्च को मनेगी होली, भद्रा समाप्ति के पश्चात होलिका दहन

परंपराओं और मान्‍यताओं की होली काशी में जहां 18 मार्च को मनाई जा रही है वहीं दूसरी ओर देश में 19 मार्च को होली मनाई जाएगी। भद्रा समाप्ति के पश्चात जहां होलिका दहन का आयोजन किया जा रहा है वहीं परंपराओं को लेकर लोगों की ज्‍योतिषीय विधि पर नजर है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 16 Mar 2022 01:01 PM (IST) Updated:Wed, 16 Mar 2022 01:01 PM (IST)
Holi 2022 : काशी में 18 और देश में 19 मार्च को मनेगी होली, भद्रा समाप्ति के पश्चात होलिका दहन
होली को लेकर देश विदेश में समय को लेकर इस बार संशय की स्थिति है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। होली एक अच्छा मौका होता है, होलिका दहन के साथ अपनी बुरी आदतों का भी दहन करने का। होलिका के पास वरदान होने के बावजूद भी उसका अग्नि में जल जाना इस बात का प्रमाण है कि बुराई चाहें कितनी भी कोशिश कर लें पर उसका अंत निश्चित है। शास्त्रीय विधान के अनुसार होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा की रात्रि काल तथा प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा में भद्रा रहित रात्रि मान्य होती है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र ज्योतिषाचार्य पंडित प्रकाश शास्त्री बताते है कि फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 17 मार्च को दोपहर 1:03 बजे लग रही है, जो 18 मार्च को दोपहर 12:52 बजे तक है। तिथि प्रारंभ के साथ ही भद्रा काल भी प्रारंभ हो रही है जो रात्रि 12:57 तक रहेगी। ऐसे में भद्रा समाप्ति के पश्चात् ही होलिका दहन करना शुभप्रद है।

धर्मशास्त्र के अनुसार होलिका दहन के बाद सूर्योदय व्यापिनी चैत्र प्रतिपदा में ही रंगोत्सव मनाना चाहिए। इस बार प्रतिपदा 18 मार्च को 12:53 बजे लग रही है जो 19 मार्च को 12:15 तक है।

अब लोगों में प्रश्न यह उठ रहा है कि काशी में 18 को होली और अन्यत्र 19 को ऐसा क्यों? तो आपको बता दें कि काशी की होली चतु:षष्ठी यात्रा से जुड़ी है। जो प्राचीन काल से ही होलिका दहन की अगली सुबह होती आ रही है। यह यात्रा ढोल-नगाड़ें, रंग-गुलाल के साथ की जाती है, इसलिए प्राचीन परंपरा होने के कारण काशी के लिए होलिका दहन के अगले दिन ही उपयुक्त किया गया है। अतः काशी में 18 मार्च को एवं काशी से इतर स्थानों पर शास्त्रीय विधान के अनुसार 19 मार्च को उदया तिथि में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा मिलने पर रंगोत्सव मनाया जाएगा।

पूजन विधि :

आचार्य पंडित राहुल शास्त्री बताते है कि रोली, अक्षत, पुष्प, हल्दी, नारियल, कच्चा सूत, सुपारी आदि पूजन सामग्री के साथ जल लेकर

देशकालौ संकृत्य मम सकुटुम्बस्य ढुण्ढा़राक्षसीपीडा परिहारार्थं होलिका पूजनाऽहं करिष्ये। ऐसा संकल्प कर

असृक्याभयसंत्रस्तै: कृत्वा त्वं होलिवालिशै:।

अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।।

इस मंत्र से ध्यान कर "ॐहोलिकायै नमः" से पूजन करें तत्पश्चात्

दीपयाम्यद्य ते घोरेचितिराक्षसिसप्तमे।

हिताय सर्व जगता प्रीतये पार्वतीपते।। से दीप दान करें। इसके बाद होलिका की तीन परिक्रमा करें। मान्यता है कि होलिका दहन के पश्चात् होलिका की भस्म अपने मस्तक पर लगाने से आरोग्य लाभ के साथ सुख-समृद्धि व खुशहाली में बढ़ोतरी होती है।

होली सम्मीलन, मित्रता एवं एकता का पर्व है। भक्त का भगवान के प्रति अटूट आस्था का पर्व है- होली में रंग लगाने के साथ साथ यह भी जरूरी है कि किसी की उदास बेरंग जिंदगी में खुशियों के रंग भरें जाएं। यही इस पर्व का मूल उद्देश्य है एवं संदेश भी है।

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