वाराणसी के सेवई के जायके का कोई जोड़ नहीं, ईद ही नहीं अन्य मौकों पर भी होती है डिमांड
बनारसी साड़ी लकड़ी के खिलौने पीतल के वर्तन सहित करीब डेढ़ दर्जन कुटीर उद्योग वाराणसी को भारत ही नही वरन विश्व स्तर पर लोकप्रियता को बनाये रखे है। इनमें वाराणसी की सेवई भी विश्व में अपनी पहचान बनाए रखने में सफल है।
वाराणसी [नवनीत रत्न पाठक]। बनारसी साड़ी, लकड़ी के खिलौने, पीतल के वर्तन सहित करीब डेढ़ दर्जन कुटीर उद्योग वाराणसी को भारत ही नही वरन विश्व स्तर पर लोकप्रियता को बनाये रखे है। भले ही लॉकडाउन का दौर चल रहा हो और लॉकडाउन 17 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया हो लेकिन बनारस के में कारोबारी ईद के लिए सिवईंं का कारोबार आगे बढ़ाने के लिए जी जान से लगे हुए हैं।
शहर का भदुई चुंगी क्षेत्र सेवई की मंडी के रुप में पहचान रखता है। यहां करीब 50 से 60 परिवार हैं जो अपने पूर्वजों के इस उद्योग को जिंदा रख कर कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं। इनके यहां यूं तो बारहों महीने सेवईं बनाने का काम होता है लेकिन रमजान माह के दो तीन महीने पहले काम में तेज़ी आ जाती है लेकिन इस बार कोई रौनक नहीं आई।
बनारस की सेवईं केवल मुस्लिम परिवारों के लोगों की ही पसन्द नहीं बल्कि सभी इसे बड़े चाव से खाते है। होली बकरीद पर भी इसकी बिक्री ठीक होती है लेकिन हर वर्ष ईद पर सेवईं का कारोबार सबसे ज्यादा होता है। बनारसी सेवईंयों के दीवाने पूरे विश्व में हैं। इन सेवइयों की सबसे बड़ी खासियत इनकी बारीकी और साफ-सफाई है। वाराणसी युवा व्यापार मंडल के उपाध्यक्ष अचल कुमार मौर्य बताते है कि यहां की सेवईंयां बाल के बराबर जितनी बारीक होती हैं। जीरो नंबर, मोटी, मध्यम किमामी स्पेशल आदि सेवईं जो मार्केट में अलग अलग रेट में बेची जाती है। इस बार समान थोड़ा महंगा पड़ रहा तो बाज़ार में थोड़ा महंगा बिक रहा है।
बनारस में अब केवल राजघाट स्थित भदऊं में ही सेवईं बनाने का कारोबार जिंदा है। पहले रेवड़ी तालाब, मदनपुरा और दालमंडी में भी सेंवइयां बनती थीं। रोजाना एक प्लांट से करीब चार से पांच क्विंटल सेंवई तैयार होती थी। सेवईं के लिए बनारस पूर्वांचल की सबसे बड़ी मंडी है ही इसके साथ ही यहां की सेवईं का स्वाद देश के आधा दर्जन से ऊपर राज्यों तक पहुंचता है।