वाराणसी की गलियों से गायन की गंगा बनकर निकले हेमंत कुमार, बचपन में नानी के यहां था प्रवास

हेमंत कुमार मुखोपाध्याय का परिवार बंगाली टोला के केदार घाट इलाके में रहता था। बचपन में ही वे कोलकाता चले गए लेकिन बनारस से उनका प्यार अंत तक कम नहीं हुआ। यहां आयोजित कई समारोह में उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 05:16 PM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 05:16 PM (IST)
वाराणसी की गलियों से गायन की गंगा बनकर निकले हेमंत कुमार, बचपन में नानी के यहां था प्रवास
हेमंत दा का परिवार वाराणसी के बंगाली टोला इलाके में रहता था।

वाराणसी, जेएनएन। काशी की संगीत परंपरा में कई महान हस्तियां रंग बिखेर चुकी हैं। इनमें कुछ ऐसे हैं जिनकी नींव इसी परंपरा ने डाली। ऐसे ही एक शख्स हैं हेमंत कुमार मुखोपाध्याय (जन्म :16 जून 1920, निधन : 26 सितंबर 1989) हेमंत दा का जन्म 16 जून 1920 को काशी के केदारघाट इलाके में अपनी नानी के घर हुआ था। वे अक्सर नानी के साथ बनारस की गलियों और घाटों पर टहलने जाते थे। यहीं सबसे पहले इनका परिचय संगीत से हुआ। धीरे-धीरे यह परिचय जबरदस्त रूझान में बदल गया। करीब सात साल की अवस्था में जब वे बनारस छोड़कर कोलकाता के लिए रवाना हुए तब तक संगीत को समझने वाला एक गंभीर कलाकार उनके अंदर जन्म ले चुका था। 1927 के आसपास उनका परिवार कोलकाता में बस गया। इसके बाद वे वहीं पले-बढ़े और अपनी शिक्षा पूरी की लेकिन इस दौरान बनारस से उनका नाता नहीं टूटा। यहां उनका आना जाना बराबर बना रहा।

संगीत के लिए छोड़ दी अभियांत्रिकी की पढ़ाई 

इंटरमीडिएट पास करने के बाद हेमंत कुमार ने जादवपुर विश्वविद्यालय में अभियांत्रिकी की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया, लेकिन बनारस द्वारा उनमें बोया गया संगीत का बीज अब वृक्ष बनने को बेताब था। इसी वजह से उन्होंने इस कोर्स को बीच में ही छोड़ दिया और संगीत के क्षेत्र में करियर बनाने की ठानी। उन्होंने उस्ताद फैय्याज खान से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली, लेकिन उस्ताद की मौत के बाद उनको एक झटका लगा लेकिन वे जल्द ही इससे उबर गए। इससे पहले कुछ समय के लिए उन्होंने साहित्य में भी हाथ आजमाया था। उनकी कुछ लघुकथाएं बंगला पत्र-पत्रिकाओं में छपी भी थीं।

मित्र के प्रभाव में आकर पहला गीत रिकार्ड करवाया 

अपने मित्र सुभाष मुखर्जी के प्रभाव में आकर 1933 में आल इंडिया रेडियो के लिए हेमंत दा ने अपना पहला गीत रिकार्ड कराया। पहली बार में उनका गाना सुनकर लोगों के मुंह से वाह, निकल गया।

अंत तक काशी से कम नहीं हुआ प्यार : बंगीय समाज के सचिव देवाशीष दास के अनुसार हेमंत दा का परिवार बंगाली टोला इलाके में रहता था। बचपन में ही वे कोलकाता चले गए लेकिन बनारस से उनका प्यार अंत तक कम नहीं हुआ। यहां आयोजित कई समारोह में उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

संगीत का सफरनामा : हेमंत कुमार ने 1944 में बंग्ला फिल्म प्रिया बंगधाबी के लिए पहली बार संगीत रिकार्ड कराया। इसी साल उन्होंने कोलंबिया लाबेल के लिए गैर-फिल्मी रवींद्र संगीत का रिकार्ड करवाया। 1947 में बंगला फिल्म अभियात्री के लिए संगीत निर्देशन किया।

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