तन मायानगरी में तो दिल काशी में था बसा, अंजान ने अपने नगमों से बनारस को वैश्विक शिखर पर पहुंचाया

हिंदी फिल्मों में दो दशक से अधिक समय तक राज करने वाले गीतकार लालजी पांडेय अंजान (जन्म 28 अक्टूबर 1930 ओदार वाराणसी निधन 13 सितम्बर 1997 मुंबई)का तन भले ही मायानगरी रहता था लेकिन उनका दिल हमेशा काशी में बसा था।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 08:10 AM (IST) Updated:Thu, 28 Oct 2021 01:05 PM (IST)
तन मायानगरी में तो दिल काशी में था बसा, अंजान ने अपने नगमों से बनारस को वैश्विक शिखर पर पहुंचाया
गीतकार लालजी पांडेय अंजान का तन भले ही मायानगरी रहता था लेकिन उनका दिल हमेशा काशी में बसा था।

वाराणसी,  सौरभ चंद्र पांडेय। हिंदी फिल्मों में दो दशक से अधिक समय तक राज करने वाले गीतकार लालजी पांडेय अंजान (जन्म : 28 अक्टूबर 1930, ओदार, वाराणसी, निधन : 13 सितम्बर 1997, मुंबई)का तन भले ही मायानगरी रहता था लेकिन उनका दिल हमेशा काशी में बसा था। बनारस के संस्कारों को उन्होंने गीतों के माध्यम से वैश्विक फलक तक पहुंचाया। उनके बेटे ख्यात गीतकार समीर बताते हैं कि उनके पिता ने एक गीत लिखा था ...खईके पान बनारस वाला, इस गीत को स्वर देने में किशोर कुमार को खईके शब्द अटपटा लग रहा था। तब अंजान ने उनसे कहा कि यदि खईके शब्द का कोई विकल्प जोड़ा जाएगा तो गीत से बनारसीपन खत्म हो जाएगा। यह सुनकर किशोर कुमार ने खईके शब्द का प्रयोग करके यह गीत गाया। उन्होंने एक गीत लिखा ...मानो तो मैं गंगा मां हूं, न मानो तो बहता पानी। अपने गीतों में उन्होंने पान-भांग शब्द को जोड़कर बनारसी रंग को सहेजे रखा।

गुरु की इच्छा थी उनको कवि हरिवंश राय बच्चन के समकक्ष बनाने की

गीतकार समीर अंजान अपने पिता की स्मृतियों के बारे में कहते हैं कि पिता के गुरु रूद्रकाशिकेय उनको कवि हरिवंशराय बच्चन के समकक्ष का कवि बनाना चाहते थे। शर्त थी कि बनारस कभी नहीं छोडऩा है, लेकिन अस्थमा की बीमारी ने गीतकार अंजान को गंगा का किनारा छोड़वा दिया। मुंबई में 17 वर्षों तक संघर्ष करने के बाद उनके नसीब में कवि हरिवंशराय बच्चन नहीं, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का साथ था, जिनसे जुड़कर उन्होंने सफलता के शिखर को छुआ।

...जब काशी नरेश के आमंत्रण को ठुकरा दिया

गीतकार समीर अपने पिता की स्मृतियों को ताजा करते हुए बताते हैं कि एक बार उन्होंने काशी नरेश विभूति नारायण सिंह के निमंत्रण को भी ठुकरा दिया था। उन्होंने बताया कि मेरे दादा शिवनाथ पांडेय (सेंट्रल बैंक आफ इंडिया) में कार्यरत थे। इसके साथ ही वह रामलीला में पात्रों का मंचन भी करते थे। दादा और पिता के मंचन को देखकर काशी नरेश विभूति नारायण सिंह ने उनको रामनगर की रामलीला समिति में मंचन करने का आमंत्रण दिया। जिसे उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि हम लोग शिवपुर की रामलीला समिति से जुड़े हैं।

पिता के नाम पर भी बने संगीत संग्रहालय

गीतकार समीर अंजान कहते हैं कि मेरी दिली इच्छा है कि पिता लालजी पांडेय अंजान के नाम पर काशी में एक संगीत संग्रहालय बनना चाहिए। हाल ही में उनकी मुलाकात एलबीएस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे बाबतपुर की निदेशक अर्यमा सान्याल से हुई। उन्होंने एक प्रस्ताव दिया था कि बनारस संगीत की भूमि है। हमारी इच्छा है कि यहां के विभूतियों की थाती को आडियो-विजुअल स्वरूप दिया जाए, जिसे हम हवाई अड्डे पर आए यात्रियों से रूबरू करा सकें। इस दिशा से प्रयास जारी है।

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