इतिहास बनकर रह जाएगा भदोही का हस्तनिर्मित कालीन, ठप हो गया हाई क्वालिटी के हैंडनाटेड कालीनों का उत्पादन
बुनकरों का अभाव इसी तरह बना रहा तो भदोही की पहचान हैंडनाटेड कालीन इतिहास बन रह जाएगी। हाई क्वालिटी के कालीनों का उत्पादन लगभग ठप हो चुका है। जबकि लोवर क्वालिटी के कालीनों का उत्पादन कराना भी निर्यातकों के लिए टेढी खीर साबित हो रहा है।
जागरण संवाददाता, भदोही। भदोही की पहचान हैंडनाटेड कालीन से होती है। आलम यह है कि हाई क्वालिटी के कालीनों का उत्पादन ठप हो चुका है। जबकि लोवर क्वालिटी के कालीनों का उत्पादन कराना भी निर्यातकों के लिए टेढी खीर साबित हो रहा है। बुनकरों की कमी के चलते हैंंडनाटेड कालीन इतिहास बनकर रह जाएगा।
विश्व बाजार में आज भी भदोही निर्मित हैंडनाटेड कालीनों की मांग में कोई कमी नहीं है। मखमली व कलात्मक हैंडनाटेड कालीनों का उपयोग करने वाले ग्राहक अभी भी हैं लेकिन बुनकरों की कमी के कारण उत्पादन पर ग्रहण लग गया है। लोवर क्वालिटी के हैंडनाटेड का उत्पादन तो हो रहा है लेकिन महज नाममात्र का। अधिकतर निर्यातक शाहजहांपुर में कालीनों की बुनाई कराने के लिए विवश हैं। बताते हैं कि वहां महिलाएं बड़ी संख्या में बुनाई कार्य से जुड़ी हैं जिसके कारण बेहतर उत्पादन हो रहा है। जबकि यहां यह हाल है कि पुरुष भी अब कालीनों की बुनाई में रूचि नहीं ले रहे हैं। भविष्य में भी कुशल बुनकर मिलने की संभावना नहीं है। ऐसे में हैंडनाटेड के भविष्य पर खतरा उत्पन्न हो गया है। दो दशक पहले तक भदोही-मीरजापुर में हस्तनिर्मित कालीनों का 90 फीसद उत्पादन होता था। जबकि वर्तमान समय 30 से 35 फीसद पर सिमट गया है। पहले परिक्षेत्र के हर गावं में दो चार लूम मिल जाते थे जहां 20 से 25 बुनकर काम करते थे। हैंडनाटेड का उत्पादन कराने वालों के प्रदेश के लगभग हर जिले में एक दो ब्रांच हुआ करते थे। कुछ लोग तो बिहार, मालदा व पश्चिम बंगाल में भी लूम लगवाकर उत्पादन कराते थे लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है।
बुनकरों के अभाव का कारण
कारोबारियों की उपेक्षा के शिकार अधिकतर बुनकरों ने दूसरा काम करना शुरू कर दिया। पुराने बुनकर पानीपत, जयपुर जैसे शहरों को पलायन कर गए। नई पीढ़ी को कालीन बुनाई में कोई रूचि नहीं है। अभिभावक भी नहीं चाहते कि उनके बच्चे बुनाई करें। ऐसे में कुशल बुनकरों की कमी हो गई है।
बंद हो गए बुनाई प्रशिक्षण केंद्र
तीन दशक पहले केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा कालीन बुनाई प्रशिक्षण केंद्र संचालित किया जाता था। हर जनपद में एक-दो केंद्र हुआ करते थे जहां बच्चों को बुनाई सिखाने के साथ-साथ तीन से चार सौ रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जाते थे। प्रशिक्षित बुनकरों की बदौलत हैंडनाटेड कालीनों का उत्पादन होता था लेकिन बालश्रम को लेकर बने कानून व अन्य कारणों से प्रशिक्षण केंद्रों पर ताला लगा दिया गया।