वाराणसी में स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी परशुराम राय का निधन, परिजनों ने इलाज में लापरवाही का लगाया आरोप

वाराणसी जिले में कोरोना संक्रमण के दौरान जिला प्रशासन से समुचित इलाज न मिलने के कारण सारनाथ में रह रहे 94 वर्षीय स्वतंत्रता सग्राम सेनानी परशुराम राय का मंगलवार को सुबह निधन हो गया। परिजनों ने देखरेख में अभाव का आरोप लगाया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 04:52 PM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 04:52 PM (IST)
वाराणसी में स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी परशुराम राय का निधन, परिजनों ने इलाज में लापरवाही का लगाया आरोप
स्वतंत्रता सग्राम सेनानी परशुराम राय का मंगलवार को सुबह निधन हो गया।

वाराणसी, जेएनएन। कोरोना संक्रमण के दौरान जिला प्रशासन से समुचित इलाज न मिलने के कारण सारनाथ में रह रहे 94 वर्षीय स्वतंत्रता सग्राम सेनानी परशुराम राय का मंगलवार को सुबह निधन हो गया। बताया जाता है कि श्वास लेने में दिक्कत होने पर गत 8 अप्रैल को काफी प्रयास के बाद पं. दीनदयाल अस्पताल में बेड मिला। अस्पताल के चिकित्सकों द्वारा न ही चेस्ट का सिटी स्केंन कराया गया और न ही  कोई चिकित्सक देखने आया जिससे फेफड़े संक्रमित हो गए, इस लापरवाही व समुचित व्यवस्था न मिलने से खिन्न परिजनों ने पहड़िया स्थित निजी अस्पताल में उपचार हेतु भर्ती कराया जहां ऑक्सीजन की कमी को लेकर परेशान होना पड़ा।

वहीं परिजनों का आरोप है कि चिकित्सकों की लापरवाही के चलते संक्रमण बढ़ता  गया, जिससे स्वतंत्रता सेनानी की मौत हो गयी। इनकी पत्नी का देहांत वर्ष 2011 को हुआ था। वे अपने पीछे दो पुत्र व तीन पुत्रियों से भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। इनका अंतिम संस्कार हरिश्चन्द्र घाट पर राजकीय सम्मान के साथ किया गया। इनके पुत्र अंजनी कुमार रॉय ने मुखाग्नि दी। 

अंग्रेजी हुकूमत में दो बार गये थे जेल

21 जुलाई 1927 को बलिया के उजियार घाट में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने की वजह से 19 अगस्त 1942 को चित्तु पांडेय के नेतृत्व में बलिया कलेक्ट्रेट पर पहली बार तिरंगा फहराये। इसके बाद जनवरी 1942 को स्वतंत्रता सेनानी पूर्व सांसद स्व गौरी शंकर राय और महानंद मिश्र सहित अन्य साथियों के साथ 39 डी आई आर में गिरफ्तार कर बलिया जेल भेज दिया गया। जिसमें उन्हें कालेज से निष्कासित कर दिया गया। वे हाई स्कूल की परीक्षा से वंचित रह गए।दूसरी बार जनवरी 1943 में बलिया में ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जुलूस निकाला जिसमे जेल गये।

काशी में शिक्षा पूरी कर वन विभाग में नोकरी शुरू की

देश की आजादी के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय होने की वजह से किसी विद्यालय में प्रवेश नही मिल रहा था। वर्ष 1945 में बनारस के डी ए वी इंटर कालेज से हाई स्कूल व इंटर की परीक्षा पास करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बी एस सी व जूलॉजी से एम एस करने के बाद देवरिया के एक विद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे। इसके बाद 1954 में वन विभाग में नोकरी शुरू की। 30 जून 1988 को प्रभागीय वनाधिकारी पद से सेवानिवृत्त होकर सारनाथ में किराए के मकान में निवास कर रहे थे। 

खादी के कपड़ो में बिता पूरा जीवन

आजादी के आंदोलन से लेकर अब तक इनका पूरा जीवन खादी के कपड़े पहने और सादा भोजन ही किये।

chat bot
आपका साथी