फ्रांस और आइआइटी बीएचयू मिलकर सुधारेंगे वरुणा-असि की सेहत, फरवरी में आएगा फ्रांसीसी विशेषज्ञों का दल
गंगा की सहायक और वाराणसी की पहचान धार्मिक-पौराणिक नदियों वरुणा व असि की सेहत सुधारने के लिए आइआइटी बीएचयू और फ्रांस मिलकर काम करेंगे। दोनों नदियों को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए तकनीक अनुभव और ज्ञान का परस्पर आदान-प्रदान किया जाएगा।
वाराणसी, शैलेश अस्थाना। गंगा की सहायक और वाराणसी की पहचान धार्मिक-पौराणिक नदियों वरुणा व असि की सेहत सुधारने के लिए आइआइटी बीएचयू और फ्रांस मिलकर काम करेंगे। दोनों नदियों को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए तकनीक, अनुभव और ज्ञान का परस्पर आदान-प्रदान किया जाएगा। इस योजना का उद्देश्य सहायक नदियों को साफ कर गंगा को मध्य बेसिन तक निर्मल बनाना है। इस काम को आगे बढ़ाने के लिए फ्रांसीसी विज्ञानियों का दल फरवरी में बनारस आएगा।
आइआइटी बीएचयू में 'सहायक नदियों की बात : मध्य गंगा बेसिन में वरुणा और अस्सी नदियां विषय पर हुए दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में यह तय हुआ है। इसमें देश-विदेेश की अनेक संस्थाएं, संगठन, विश्वविद्यालयों तथा तकनीकी व प्रौद्योगिकी संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए। आइआइटी बीचएचयू के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. पीके सिंह ने बताया कि फ्रांस सहित यूरोप की अनेक नदियों की सेहत सुधार चुके साइंटिफिक रिसर्च नेशनल सेंटर आफ फ्रांस (सीएनआरएस) के प्रो. हार्वे पीजे और ईएनएस ल्योन ने अपने अनुभव साझा किए। दोनों ने आइआइटी बीएचयू के साथ पायलट प्रोजेक्ट के रूप में गंगा की सहायक नदियों वरुणा और असि को स्वच्छ बनाने की योजना पर काम करने पर सहमति जताई। सबसे पहले वरुणा पर शास्त्री घाट और असि नदी पर संकट मोचन घाट को स्नान आदि के उद्देश्य से विकसित किया जाएगा।
इस तरह किया जाएगा काम
- वरुणा और असि नदी में प्रदूषण के मुख्य कारकों की पहचान कर आंकड़ों व तथ्यों का विश्लेषण किया जाएगा।
- दुनिया भर में नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए उपकरण और दृष्टिकोण की अवधारणाओं को ध्यान में रखा जाएगा।
- नदियों के जीर्णोद्धार के लिए नवीन और समकालीन प्रौद्योगिकियों का आकलन कर उपयोग में लाया जाएगा।
फ्रांस कर चुका है यूरोप की कई नदियों का कायाकल्प
सीएनआरएस ने यूरोप का सीवरेज कही जाने वाली यमुना के बराबर लंबी और कई देशों से होकर बहने वालीं राइन नदी, डेन्यूब नदी, एल्ब, मोजेल और सार नदियों का कायाकल्प कर डाला है। कभी जैविक रूप से मृत घोषित की जा चुकी लंदन से होकर बहने वाली टेम्स नदी का कायाकल्प भी एक उदाहरण है।
ये संस्थान और देशों के प्रतिनिधि हुए थे शामिल
सम्मेलन में आइआइटी रुड़की, दिल्ली, कानपुर, गुवाहाटी समेत एमएनएनआइटी इलाहाबाद, एनआइटी पटना के अलावा फ्रांस, आस्ट्रेलिया, कनाडा, इजरायल, थाईलैंड और दक्षिण कोरिया के विशेषज्ञ शामिल हुए। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, स्वच्छ गंगा के लिए राज्य मिशन (एसएमसीजी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) और राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान जैसे एनईईआरआइ ने भी सम्मेलन में सहभागिता की।