काशी में परंपराओं ने ली करवट तो बेटियों ने पिता को कंधा ही नहीं बल्कि मुखाग्नि भी देकर निभाया फर्ज

चारों पुत्रियों ने न सिर्फ शव यात्रा में कंधा दिया बल्कि शव को बड़ी बेटी ने मुखाग्नि देकर मोक्ष नगर काशी में करवट ले रही परंपराओं की कडी में एक और फेहरिश्‍त जोड़ दी।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Thu, 14 Nov 2019 01:49 PM (IST) Updated:Thu, 14 Nov 2019 10:33 PM (IST)
काशी में परंपराओं ने ली करवट तो बेटियों ने पिता को कंधा ही नहीं बल्कि मुखाग्नि भी देकर निभाया फर्ज
काशी में परंपराओं ने ली करवट तो बेटियों ने पिता को कंधा ही नहीं बल्कि मुखाग्नि भी देकर निभाया फर्ज

वाराणसी, जेएनएन। वाराणसी विकास समिति के सदस्य और शव वाहिनी के संचालक व यूनियन बैंक के डीजीएम रहे सच्चिदानंद त्रिपाठी का गुरुवार को निधन हो गया तो उनकी चारों पुत्रियों ने न सिर्फ शव यात्रा में कंधा दिया बल्कि शव को बड़ी बेटी ने मुखाग्नि देकर मोक्ष नगर काशी में करवट ले रही परंपराओं की कडी में एक और फेहरिश्‍त जोड़ दी। सच्चिदानंद त्रिपाठी (65) मूल रुप से निवासी भभुआ, बिहार के रहने वाले थे जिनको लगभग एक वर्ष पूर्व गले में कैंसर की शिकायत हो गई थी।

जानकारी होने के बाद से ही उनका इलाज निजी अस्पताल में कराया जा रहा था। लेकिन तकलीफ होने के साथ-साथ परेशानी धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही थी आखिरकार उन्‍होंने अंतिम सांस ली तो बेटियों ने वैदिक परंपराओं के अनुसार ही बेटों का फर्ज निभाकर एक नजीर पेश की। परिजनों के अनुसार डॉक्टरों ने ऑपरेशन के लिए परिवार वालों को बताया था, जिसके बाद 14 जनवरी 2019 को मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में गले का ऑपरेशन किया गया। कुछ समय ठीक होने के बाद लगभग दो महीने से परेशानी उनकी दोबारा बढ़ने लगी थी, जिसके बाद परिजन डॉक्टर से दोबारा इलाज करा रहे थे। लेकिन गुरुवार को अपने महमूरगंज निवास पर उनका लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।

परिवार में पत्नी सत्या त्रिपाठी और चार पुत्री में बड़ी पुत्री सरोजिनी, अन्नपूर्णा, अर्चना अौर सुधा ने मिलकर अपने पिता को बेटों की ही भांति कंधा दिया। घाट तक शव ले जाकर बड़ी पुत्री सरोजिनी ने पिता को मुखाग्नि देकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। परिवार वालों ने बताया कि सच्चिदानंद त्रिपाठी सामाजिक कार्यों में भी रुचि रखते थे और दूसरों की सहायता के लिए सदा तत्पर रहकर उनकी सेवा किया करते थे। बेटियों को उन्‍होंने बेटों की ही भांति परवरिश दी थी लिहाजा बेटियों ने बेटा बनकर सभी परंपराओं का विधि विधान पूर्वक निर्वहन कर परिवार ही नहीं देश दुनिया और समाज के लिए एक नजीर पेश की है। 

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