Former Prime Minister Chandrasekhar Death Anniversary अब मुमकिन नहीं राजनीति में चंद्रशेखर के जैसा किरदार...
भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली और संसदीय राजनीति में अटूट श्रद्धा रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की आठ जुलाई को पुण्यतिथि है।
बलिया, जेएनएन। भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली और संसदीय राजनीति में अटूट श्रद्धा रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की आठ जुलाई को पुण्यतिथि है। युवा तुर्क के नाम से ख्यात पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जन्म 1927 में जिले के इब्राहिमपट्टी गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। चंद्रशेखर ने हमेशा शक्ति व पैसे की राजनीति को किनारे कर समाजिक बदलाव व लोकतांत्रिक मूल्यों की राजनीति की। चंद्रशेखर के राजनीतिक किरदार को जानने वाले मानते हैं कि अब की राजनीति में उनके रास्ते पर चलना मुमकिन नहीं है।
युवाओं के माध्यम से देश को समाजवादी दिशा में ले जाने का किया प्रयास
चंद्रशेखर ने कांग्रेस में रहते हुए भी युवाओं के माध्यम से देश को समाजवादी दिशा में ले जाने का प्रयास किया। उन्हें लगा कि कांग्रेस को कुछ निरंकुश ताकतें चलाना चाहतीं हैं तो वे बिना वक्त गंवाए जयप्रकाश नारायण के साथ खड़े हो गए। इसकी कीमत उन्हें जेल में नजरबंदी के रूप में चुकानी पड़ी। इसके बावजूद वे झुके नहीं बल्कि समाजवाद के प्रति उनकी धारणा और मजबूत हुई।
जेपी के जाति तोड़ो आंदोलन का किया संचालन
सिताबदियारा के चैनछपरा में अब भी खड़ा वह बुढ़ा पीपल का वृक्ष इस गवाह है, जब जेपी के नेतृत्व में 1974 में जनेऊ तोड़ो..जाति प्रथा मिटाओ आंदोलन का शंखनाद हुआ था। बुजुर्ग उस दिन को याद कर रोमांचित हो जाते हैं। जेपी सहित सिताबदियारा और आसपास के 10 हजार लोग उस आंदोलन का हिस्सा बनकर जनेऊ तोड़ संकल्प लिया था कि वे जाति प्रथा नहीं मानेंगे। हालांकि उस आंदोलन का असर लंबे समय तक नहीं रहा।
राजनीति को लेकर चंद्रशेखर के विचार
चंद्रशेखर राजनीति के बदलते स्वरूप पर बेबाक बोलते थे। राजनेताओं के मान कम होने के सवाल पर उन्होंने कहा था कि आज राजनीति के दो उद्देश्य रह गए हैं। पहला समाज में लोगों का समर्थन कैसे मिले, कुछ भी, कैसे भी, चाहे गलत या सही कर। दूसरा पैसा कैसे मिले। आज की राजनीति भी इन्हीं दो चीजों पर आधारित है, पैसे पर और असरदार लोगों के समर्थन पर। वैसे, मेरा मानना है कि यह न किया जाए तो भी उतना ही लाभ मिलता है जितना और किसी तरीके से। राजनीति में भटकाव की इस प्रक्रिया को एक व्यक्ति नहीं चला रहा है। हम जब जनता से दूर हो जाते हैं, समस्याओं पर कम ध्यान देते हैं तो राजनीतिक गतिविधियां चलने लगतीं हैं। हमें राजनीति करनी चाहिए, राजनीतिक सौदेबाजी नहीं।