विदेशी धरती पर काशी का मान : अमेरिका, साउथ कोरिया व जापान के छात्र गुलाबी मीनाकारी का ले रहे हैं ज्ञान

हथकरघा व हस्तकला को वैश्विक मंच देने के लिए वैसे तो तमाम प्रयास जारी हैं। मगर अब इसमें एक नया अध्याय भी जुड़ गया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 02 Oct 2019 11:24 AM (IST) Updated:Wed, 02 Oct 2019 07:10 PM (IST)
विदेशी धरती पर काशी का मान : अमेरिका, साउथ कोरिया व जापान के छात्र गुलाबी मीनाकारी का ले रहे हैं ज्ञान
विदेशी धरती पर काशी का मान : अमेरिका, साउथ कोरिया व जापान के छात्र गुलाबी मीनाकारी का ले रहे हैं ज्ञान

वाराणसी [मुहम्मद रईस]। हथकरघा व हस्तकला को वैश्विक मंच देने के लिए वैसे तो तमाम प्रयास जारी हैं। मगर अब इसमें एक नया अध्याय भी जुड़ गया है। काशीवासियों के साथ अब विदेश भी इसके प्रचार-प्रसार का जिम्मा संभालेंगे। जी हां..., बात गुलाबी मीनाकारी की हो रही है, जिसकी अद्भुत कलाकारी ने दुनियाभर के कला प्रेमियों को आकर्षित किया है। 

शायद यही वजह है कि अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल ने इस कला की बारीकियों को सीखने के लिए 20 छात्रों का प्रतिनिधिमंडल काशी भेजा था। इन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत कुंजबिहारी सिंह सहित लोकेश कुमार सिंह, तरुण कुमार सिंह व कृष्ण कुमार सिंह ने 21 से 26 सितंबर तक गायघाट स्थित अपने आवास पर प्रशिक्षण दिया। इनमें अमेरिका, साउथ कोरिया, जापान, मोरक्को, सर्बिया व यूगोस्लोवाकिया के छात्र शामिल थे। कला की बारीकियों से वाकिफ कराते हुए छात्रों को जीआई (भौगोलिक संकेतक) की जानकारी दी गई। इसके बाद सभी ने स्वयं की डिजाइन के आधार पर कई उत्पाद तैयार किए, जिन्हें वे अपने साथ भी ले गए। छात्रों का कहना था कि इस कला को अपनी संस्कृति के अनुरूप विस्तार देकर दुनियाभर में काशी का मान बढ़ाएंगे। 

लुप्त हो रही कला को जीआई से मिली संजीवनी : करीब पांच वर्ष पूर्व कुंजबिहारी सिंह सहित बचे हुए करीब 50 शिल्पियों ने पलायन का मन बना लिया था। मगर जीआइ पंजीयन के बाद न सिर्फ उनमें आस जगी, बल्कि सालाना कारोबार भी बढ़ा। इसका नतीजा रहा कि पलायन कर चुके शिल्पी दोबारा इससे जुडऩे लगे। रोजगार की आस में युवाओं ने भी इस ओर रुख किया। वर्तमान में 200 से अधिक कारीगर इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। यहां से तैयार उत्पाद यूरोप, अमेरिका संग खाड़ी देशों में निर्यात किए जाते हैं। इसका सालाना कारोबार लगभग दस करोड़ रुपये है। 

निश्चित तापमान में चढ़ता है रंग : पुराने बनारस के पक्के महाल, भैरवगली, आसभैरव, गायघाट की गलियों में कई पीढिय़ों से यह काम होता आया है। कारीगर चांदी और सोने पर गुलाबी रंग की इनेमलिंग का कार्य एक निश्चित तापमान में पक्के रंगों के प्रयोग द्वारा करते हैं। यह कार्य सोने-चांदी के आभूषणों, सजावटी सामानों-मसलन हाथी, घोड़े, ऊंट, चिडिय़ा, मोर आदि पर किया जाता है। गुलाबी रंग चढ़ाने की विशेष तकनीक के कारण ही यहां का मीनाकारी दुनियाभर में मशहूर है। 

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