भारत में पहली बार बायोटेक प्रणाली से गंगा होंगी निर्मल, इंडो-यूरोपीय यूनियन प्रोजेक्ट स्प्रिंग के तहत होगा काम
इंडो-यूरोपीय यूनियन प्रोजेक्ट स्प्रिंग के तहत भारत में पहली बार बायो टेक्नोलॉजी विधि से गंगा को निर्मल किया जाएगा।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। इंडो-यूरोपीय यूनियन प्रोजेक्ट स्प्रिंग के तहत भारत में पहली बार बायो टेक्नोलॉजी विधि से गंगा को निर्मल किया जाएगा। इस तकनीक के परीक्षण के लिए देश में गंगा और गोदावरी दो नदियां चुनी गई हैं। गंगा के लिए बनारस शहर चयनित किया गया है।
आइआइटी-गुवाहाटी और आइआइटी- बीएचयू व अन्य संस्थान के साथ इंडियन रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट की मदद से गंगा में मिलने वाले गंदे पानी के ज्ञात और अज्ञात स्रोतों को खोजकर इनका भौतिक, रासायनिक और जैविक तीनों प्रदूषकों के स्तरों पर सूक्ष्म परीक्षण किया जाएगा। इसके बाद प्रदूषक तत्वों की एक लाइब्रेरी तैयार की जाएगी, जिसके आधार पर यूरोप में बायोटेक फिल्टर तैयार किए जाएंगे। यह प्रणाली गंगा में मिलने वाले प्रदूषक अवयवों को फिल्टर करने में पूरी तरह सक्षम होंगे। इसके बाद उन फिल्टरों को यहां परिस्थिति के मुताबिक आइआइटी और पार्टनर संस्थानों द्वारा जांचकर बनारस के चिह्नित दो स्थल (वरुणा और अस्सी संगम) पर इंस्टाल कर दिया जाएगा। इसके बाद आइआइटी-बीएचयू द्वारा फिल्टर के आउटपुट की मॉनिटरिंग और परीक्षण कर एक सफल प्रोटोटाइप वाटर ट्रीटमेंट सिस्टम सरकार को सौंप दी जाएगी। सरकार इसके बाद इस प्रणाली का उपयोग बड़े स्तर पर गंगा को निर्मल करने में करेगी।
नॉवेल बायो सेंसिंग प्रणाली का प्रयोग
आइआइटी-बीएचयू में इंजीनियरिंग विभाग के अध्यापक प्रो. पी के सिंह, डा. शिशिर गौर और डा. अनुराग ओहरी वहीं गुवाहाटी से प्रो. संजुक्ता पात्रा के नेतृत्व में यह शोध कार्य 36 महीनों तक चलेगा। मॉनिटरिंग के दौरान नॉवेल बायो सेंसिंग प्रणाली की मदद भी ली जाएगी, जिससे शहर से निकलने वाले दूषित जल के तमाम हानिकारक तत्वों की पहचान स्वत: हो जाए। इसके बाद जो भी सुधार होगा उसे पूराकर आइआइटी-बीएचयू केंद्र सरकार को एक प्रोटोटाइप (लो कॉस्ट एडवांस्ड बायो-ऑक्सिडेशन) ट्रीटमेंट सिस्टम से अवगत कराएगा। बता दें कि इस प्रोजेक्ट में आइआइटी खडग़पुर, डा. डी वाइ पाटिल स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे सहित यूरोप के कई शीर्ष संस्थान भी शामिल हैं।
गंगा में मिलने वाले पानी को हर स्तर पर जांचकर ही बायोटेक फिल्टर तैयार किया जाएगा
गंगा में मिलने वाले पानी को हर स्तर पर जांचकर ही बायोटेक फिल्टर तैयार किया जाएगा, जो गंगा निर्मल रखने में अब तक की कारगर प्रणाली साबित होगी। इसकी जिम्मेदारी आइआइटी, बीएचयू को दी गई है। यह प्रणाली गंगा सहित देश की नदियों स्वच्छ बनाने में अग्रणी भूमिका निभाएगा।
प्रोफेसर प्रमोद कुमार जैन, निदेशक, आइआइटी-बीएचयू, वाराणसी।
अन्य जानकारी
स्प्रिंग- स्ट्रेटजिक प्लानिंग फॉर वाटर रिसोर्सेज एंड इम्प्लीमेंटेशन ऑफ नॉवेल बायो टेक्निकल ट्रीटमेंट सॉल्यूशन एंड गुड प्रैक्टिसेज
कार्य अवधि - 36 माह
स्वीकृति धनराशि - करीब 611 लाख रुपये