खेती किसानी : नाशी जीवों और खरपतवार से बचाएं अपनी फसल, खेतों में दीमक लगने पर रसायन का करें प्रयोग
एकीकृत नाशी जीव प्रबंधन (आइपीएम) नाशी जीवों एवं खरपतवार के नियंत्रण करने की सबसे कारगर विधि है। इसमें कृषि संबंधी विभिन्न परिस्थितियों और पर्यावरण के साथ अनुकूल समन्वय रखते हुए नाशीजीवों एवं खरपतवारों के धनत्व को आर्थिक क्षति स्तर से नीचे रखते हैं।
मीरजापुर, जेएनएन। एकीकृत नाशी जीव प्रबंधन (आइपीएम) नाशी जीवों एवं खरपतवार के नियंत्रण करने की सबसे कारगर विधि है। इसमें कृषि संबंधी विभिन्न परिस्थितियों और पर्यावरण के साथ अनुकूल समन्वय रखते हुए नाशीजीवों एवं खरपतवारों के धनत्व को आर्थिक क्षति स्तर से नीचे रखते हैं, जिससे आर्थिक हानि न पहुंचा सके। नाशी जीवों एवं खरपतवार से फसलों को बचाने के लिए उप कृषि निदेशक डा. अशोक उपाध्याय ने सुझाव दिया। बताया कि रासायनिक कीटनाशकों को उचित मात्रा में उसी उसी समय प्रयोग करें जब कीट रोगों की स्थिति बहुत ज्यादा या आर्थिक क्षति स्तर को पार कर रही हो।
बीज व भूमि शोधन के लिए प्रयोग करें ट्राइकोडर्मा
भूमि और बीज शोधन के लिए ट्राइकोडर्मा, कीड़े लगने होने पर नीम का तेल, दीमक लगने पर डीबेरिया, चना में कीड़े लगने पर ट्राइको ड्रामा कार्ड को लगा देते हैं। फेरोमैन ट्रैप लगाने से भी अंकुश लगता है।
आइपीएम के सिद्धांत
फसलों को बोने से लेकर कटने तक साप्ताहिक निगरानी करके मित्र व शत्रु कीटों के बारे में जानकारी रखना। कीटों को नष्ट करने के लिए उन्हीं तरीकों को पहले अपनाएं, जिनसें वातावरण प्रदूषित न हो। कीट एवं रोगों को आइपीएम के तरीकों को समयानुसार अपनाकर उनको आर्थिक क्षति स्तर के नीचे रखना।
आइपीएम की आवश्यकता
रसायनों के प्रयोग से कुछ कीटों की रसायनों के प्रति प्रतिरोधकता पैदा हो सकती है, जिससे वह नहीं मरते हैं। रसायनों के प्रयोग से नाशी जीवों के प्राकृतिक शत्रु भी मर जाते हैं, जिससे परिस्थिति का संतुलन बिगडऩे से कुछ समय बाद नाशी जीव उग्र रूप से बढ़ सकते हैं। रसायन अधिक महंगे होते हैं। रसायनों के प्रयोग से भूमि की संरचना बदल जाती है। उसमें रहने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता प्रभावित होने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। पर्यावरण प्रदूषण फैलता है। रसायन स्प्रे किए फसल में कटाई के लिए प्रतिक्षा समय देना होता है। उपचारित फसल में रसायन अवशेषों के कारण निर्यात में परेशानी होती है।
आइपीएम के उद्देश्य
नाशी जीव का शस्य क्रियाओं, यांत्रिक तथा जैविक नियंत्रण का अधिकतम तथा विषम परिस्थितियों में रसायनों का न्यूनतम उपयोग करना चाहिए, जिससे प्रभावी आर्थिक नियंत्रण हो सके। इससे पर्यावरण प्रदूषण कम होत है। खाद्य पदार्थों में कीटनाशी रसायनों की मात्रा को कम रखा जा सकता है।