तिल की खेती से खिल सकते हैं किसानों के चेहरे, जानिए खेती के पूरे आधुनिक तौर तरीके
तिल बहुपयोगी है। रेवड़ी लडड् बनाने के साथ अन्य रूपों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके तेल का उपयोग पूजा-पाठ व शरीर में लगाने के लिए किया जाता है। वर्तमान समय में तिल के तेल की मांग बढ़ गई है। इससे इसकी कीमतों में भी उछाल आया है।
बलिया, जेएनएन। तिल बहुपयोगी है। रेवड़ी, लडड् बनाने के साथ अन्य रूपों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके तेल का उपयोग पूजा-पाठ व शरीर में लगाने के लिए किया जाता है। वर्तमान समय में तिल के तेल की मांग बढ़ गई है। इससे इसकी कीमतों में भी उछाल आया है। किसान तिल की खेती कर मालामाल हो सकते हैं। हल्की रेतीली, दोमट मिट्टी तिल उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। किसान तिल की तकनीकी रूप से खेती कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। जुलाई के द्वितीय पखवारे में तिल की बोआई अवश्य कर देनी चाहिए। इसकी खेती के लिए भूमि की दो-तीन जोताई कल्टीवेटर से कर एक पाटा लगाना होता है। इससे भूमि बोआई के लिए तैयार हो जाती है। इसमें लागत कम और मुनाफा अधिक होता है।
पकने की अवधि : 80-85 दिन एवं उपज क्षमता 2.0-2.50 क्विंटल प्रति बीघा है।
खेती की विधि : इसकी खेती अकेले या सहफसली के रूप में अरहर, मक्का एवं ज्वार के साथ की जा सकती है। तिल की बोआई कतारों में करनी चाहिए। इससे खेत में खरपतवार एवं अन्य कृषि कार्य में आसानी होगी। बोआई 30-45 सेंटीमीटर कतार से कतार एवं 15 सेमी पौध से पौध की दूरी एवं बीज की गहराई दो सेमी रखी जाती है।
बोले कृषि अधिकारी : किसानों को एक बीघा में एक किलोग्राम स्वच्छ एवं स्वस्थ बीज की बोआई करनी चाहिए। बीज का आकार छोटा होने के रेत, राख या सूखी हल्की बलुई मिट्टी में मिलाकर बोआई की जाती है। तिल की उन्नतशील प्रजातियां टा-78,शेखर, प्रगति, तरूण आदि की फलियां एकल एवं सन्मुखी तथा आरटी 351 प्रजाति की फलियां बहुफलीय एवं सन्मुखी होती हैं। - प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव।