संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रकाशन घोटाले की विवेचना के लिए ईओडब्ल्यू ने 13 कर्मचारियों को किया तलब

आर्थिक अपराध अनुसंधान संस्थान (ईओडब्ल्यू) ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रकाशन घोटाले की विवेचना शुरू कर दी है। इस क्रम में बयान के लिए ईओडब्ल्यू के पुलिस अधीक्षक ने विश्वविद्यालय के 13 कर्मचारियों को सिगरा-सिद्धगिरीबाग स्थित कार्यालय तलब किया है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 30 Sep 2020 09:27 PM (IST) Updated:Wed, 30 Sep 2020 09:27 PM (IST)
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रकाशन घोटाले की विवेचना के लिए ईओडब्ल्यू ने 13 कर्मचारियों को किया तलब
आर्थिक अपराध अनुसंधान संस्थान ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रकाशन घोटाले की विवेचना शुरू कर दी है।

वाराणसी, जेएनएन। आर्थिक अपराध अनुसंधान संस्थान (ईओडब्ल्यू) ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रकाशन घोटाले की विवेचना शुरू कर दी है। इस क्रम में बयान के लिए ईओडब्ल्यू के पुलिस अधीक्षक ने विश्वविद्यालय के 13 कर्मचारियों को सिगरा-सिद्धगिरीबाग स्थित कार्यालय तलब किया है। सभी कर्मचारियों को दो दिनों के भीतर अपना पक्ष रखने का निर्देश है। ईओडब्ल्यू की नोटिस को लेकर विश्वविद्यालय में खलबली मची हुई है।

शासन ने दुर्लभ पांडुलिपियों के प्रकाशन के लिए विश्वविद्यालय को करीब वर्ष 2001 से 2010 के बीच दस करोड़ 20 लाख 22 हजार रुपये का अनुदान दिया था। वहीं दुर्लभ पांडुलिपियों के प्रकाशन के मद में तीन करोड़ 66 लाख 96 हजार 237 रुपये का ही उपयोग किया गया। आरोप है कि शेष 6 करोड़, 53 लाख 23 हजार 763 रुपये बगैर ग्रंथों का प्रकाशन केे ही मुद्रकों को फर्जी तरीके से भुगतान कर दिया गया। इसके लिए तत्कालीन कुलपति प्रो. अशोक कुमार कालिया के हस्ताक्षर के फर्जी मुहर का इस्तेमाल किया गया। इस फंडाफोड़ में आठ जुलाई 2009 में कुलपति आवास पर मिले फर्जी मुहर से हुआ। उस समय फर्जी मुहर का प्रकरण काफी सुखियों में था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने बड़े पैमाने पर प्रकाशन घोटाले को देखते हुए प्राथमिकी भी दर्ज करवाई थी। वहीं शासन ने इसे गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच ईओडब्ल्यू् को सौंप दी। प्रकाशन घोटाले की फाइल लगभग दस वर्षों तक दबी रही। प्रकाशन घोटाले की फाइल अब एक बार फिर खुल गई है। विवेचना कर रहे ईओडब्ल्यू् के इंस्पेक्टर विश्वजीत प्रताप सिंह ने बताया कि 13 कर्मचारियों को दो दिनों के भीतर बयान देने को कहा गया है।

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