भारत में पहली बार बीएचयू में शुरू होगा एनवायर्नमेंटल हाइड्रोलाजी का कोर्स, आस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त बैरी ओ फरेल ने जताई सहमति
भारत में पहली बार बीएचयू में एनवायर्नमेंटल हाइड्रोलाजी पर कोर्स की शुरूआत होगी। आरंभिक स्तर पर इसमें मास्टर डिग्री के लिए एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है। अब भारत में भी इन्हीं तकनीक के आधार पर देश में पानी की समस्याओं से निबटा जा सकेगा।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। भारत में पहली बार बीएचयू में एनवायर्नमेंटल हाइड्रोलाजी पर कोर्स की शुरूआत होगी। आरंभिक स्तर पर इसमें मास्टर डिग्री के लिए एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है। इस कोर्स में भारत के रिवर बेसिन सिस्टम, मरूभूमि, सूखे और रेतीले क्षेत्रों में धरा जल की पर्याप्तता और जल की गुणवत्ता को बेहतर करने पर कार्य किया जाएगा। पिछले दिनों बीएचयू के दौरे पर रहे आस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बैरी ओ फरेल का विज्ञान संस्थान में एक कार्यक्रम था, जहां पर ग्लोबल मानकों पर एक एनवायर्नमेंटल हाइड्रोलाजी कोर्स के प्रस्ताव की जानकारी सामने आई। कार्यक्रम में फरेल ने कहा कि गंगा जितना बड़ा रिवर बेसिन सिस्टम आस्ट्रेलिया में नहीं है, और इस विधा की पढ़ाई के लिए बनारस ही सबसे बेहतर स्थल है। दरअसल आस्ट्रेलिया का अधिक्तर क्षेत्र मरूस्थलीय है, जिस कारण से जल संकट को खत्म करने के लिए कई नई तकनीकों का सफल प्रयोग किया गया है। अब भारत में भी इन्हीं तकनीक के आधार पर जल्द ही देश में पानी की समस्याओं से निबटा जा सकेगा।
पर्याप्त जल होते हुए भारत में सूखे का संकट
पाठ्यक्रम के अंतर्गत गंगा के स्त्रोत गंगोत्री में हेड वाटर मैनेजमेंट और बहाव से लेकर मुहाने बंगाल की खाड़ी तक रिवर बेसिन मैनेजमेंट पर काम होगा। कोर्स के प्रस्तावक विज्ञान संकाय के प्रमुख प्रो. मल्लिकार्जुन जोशी और डा. एस पी राय हैं। प्रो. जोशी ने बताया कि पर्याप्त जल होते हुए भी भारत का कई हिस्सा गर्मियों में जल संकट और सूखे की चपेट में आता है। इससे बचने के लिए देश में इस कोर्स के तहत जल संग्रह की तकनीक पर व्यापक शोध होगा। हिमालय और भाबर इलाके के दरारों में जहां पानी जमा होते हैं, वहां हेड वाटर मैनेजमेंट के तहत बारिश के पानी को रोकने की व्यवस्था की जाएगी। आस्ट्रेलिया की तर्ज पर इस क्षेत्र में भी काफी मात्रा में तालाब, टैंक, ड्रैनेज और गड्ढे आदि बनाकर अतिरिक्त जल को संग्रहित किया जा सकता है और इस पानी को गंगा घाटी में गर्मी के दिनों में छोड़ा जाएगा।
बीएचयू भारतीय उपमहाद्वीप में जल संरक्षण की दिशा में एक आदर्श स्थापित करेगा
इस कोर्स के लागू हो जाने से बीएचयू भारतीय उपमहाद्वीप में जल संरक्षण की दिशा में एक आदर्श स्थापित करेगा। आस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त के दौरे के बाद पर कोर्स पर सहमति बन गई है। करीब तीन माह पूर्व इंडिया-आस्ट्रेलिया वाटर सेंटर के तहत जब एमओयू हुआ, तभी से नदी और भूजल संरक्षण के लिए तकनीकी सहयोग बढ़ाने पर बीएचयू का जोर रहा था।
प्रो. ए के त्रिपाठी, निदेशक, विज्ञान संस्थान, बीएचयू।