इंग्लैैंड से आजमगढ़ लौटे इंजीनियर ने बनाया पूर्वांचल का सबसे बड़ा जरबेरा का पालीहाउस

बेंगलुरु में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के तुरंत बाद वर्ष 2008 में अभिनव का कैंपस सेलेक्शन हो गया। 16 माह काम करने के बाद एक परीक्षा के जरिए लंदन में पोस्टिंग पा ली। वहां छह साल नौकरी की लेकिन परदेस की धरती पर मन नहीं रमा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 07:10 AM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 07:10 AM (IST)
इंग्लैैंड से आजमगढ़ लौटे इंजीनियर ने बनाया पूर्वांचल का सबसे बड़ा जरबेरा का पालीहाउस
साफ्टवेयर इंजीनियर अभिनव सिंह को इंग्लैंड में 80 लाख रुपये सालाना पैकेज की ठाठ-बाट वाली नौकरी भी रास नहीं आई।

आजमगढ़, राकेश श्रीवास्तव। यह अपनी माटी और अपने लोगों का प्रेम ही था कि साफ्टवेयर इंजीनियर अभिनव सिंह को इंग्लैंड में 80 लाख रुपये सालाना पैकेज की ठाठ-बाट वाली नौकरी भी रास नहीं आई। उन्होंने पहले 25 लाख के पैकेज पर वतन लौटना स्वीकारा, फिर अपने साथ गांव वालों की तकदीर संवारने की ठानी और फूलों की खेती शुरू की। सरकार की योजनाएं संबल बनीं तो ऊसर जमीन को उपजाऊ बना जरबेरा फूल की खेती से करीब सौ घरों में खुशियों की सुगंध फैलाने लगे। पहले उन्होंने अपने गांव चिलबिला में बंजर जमीन पर 60 लाख का प्रोजेक्ट लगाया तो गांव के लोगों को लगा कि पैसा और श्रम व्यर्थ ही जाएगा, लेकिन अब वही लोग फूलों की खेती से राज्य पुरस्कार हासिल कर रोजगार सृजन करने वाले चिलबिला गांव के बेटे पर गर्व करते हैैं।

यूं बने इंजीनियर से राज्य पुरस्कार प्राप्त किसान

बेंगलुरु में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के तुरंत बाद वर्ष 2008 में अभिनव का कैंपस सेलेक्शन हो गया। 16 माह काम करने के बाद एक परीक्षा के जरिए लंदन में पोस्टिंग पा ली। वहां छह साल नौकरी की, लेकिन परदेस की धरती पर मन नहीं रमा। ऊबे तो वर्ष 2015 में आधे से भी कम के पैकेज पर इंडिया आ गए। गुरुग्राम में एक साल नौकरी की फिर कुछ नया करने के लिए गांव लौट आए। वर्ष 2019 में उन्होंने गांव में 4000 वर्ग फीट के पालीहाउस में जरबेरा की खेती शुरू की। यह पूर्वांचल का सबसे बड़ा पालीहाउस है जहां जरबेरा की खेती हो रही है।

पिता की प्रेरणा और सरकारी योजनाएं बनीं संबल

अभिनव अपने गांव पहुंचकर मिट्टी में संभावनाएं तलाशते रहे। दरअसल, उनके किसान पिता अरविंद सिंह कहा करते थे कि मिट्टी में ही सबकुछ छिपा है। 50 फीसद सब्सिडी वाला पालीहाउस प्रोजेक्ट लगाकर उन्होंने जरबेरा की खेती शुरू की। यह फूल वाराणसी की मंडी में पहले लखनऊ, पुणे और बेंगलुरु से आता था। ऐसे में अभिनव के फूल को बाजार आसानी से मिल गया। अब मंडी में पहले अभिनव के पालीहाउस से जरबेरा के फूल पहुंचते हैैं। अभिनव के मुताबिक जरबेरा के एक फूल पर लागत करीब डेढ़ रुपये आती है और इसकी बिक्री औसतन चार रुपये में होती है। इस खेती से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सौ परिवार जुड़े हैं।

घर पर रहकर डेढ़ लाख रुपये महीने की कमाई नोएडा में 25 लाख सालाना पाने के बराबर

घर पर रहकर डेढ़ लाख रुपये महीने की कमाई नोएडा में 25 लाख सालाना पाने के बराबर है। वहां 30 फीसद टैक्स देना पड़ता था। सरकार ने राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजना में फूलों की खेती को टैक्स फ्री किया है। कृषि से बड़ा दूसरा कोई कारोबार नहीं है। 20 और युवाओं के प्रोजेक्ट लगवा रहा हूं। इससे गांव सशक्त होंगे। पुणे, बेंगलुरु से फूल दो दिन बाद मंडी में पहुंचने से डिमांड पूरी नहीं हो पाती है। मेरी पत्नी संवेदना सिंह ने भी मेरा साथ दिया।

- इंजीनियर अभिनव सिंह, राज्य पुरस्कार प्राप्त किसान, चिलबिला, आजमगढ़।

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